पर्यावरण सुधार, वनों की सुरक्षा और विकास में संतुलन जरूरी
भोपाल : शुक्रवार, फरवरी 21/ मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है पर्यावरण सुधार, वनों की सुरक्षा और विकास में संतुलन जरूरी है। मध्यप्रदेश में आज भी 30 प्रतिशत क्षेत्र में वन हैं। वन बचाने वाले राज्यों को पुरस्कृत और प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। मध्यप्रदेश में वनांचल निवासियों को वनों के लाभ से जोड़ने के सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं।
श्री चौहान आज यहाँ केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के दो दिवसीय चिंतन शिविर को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत की सोच एकात्मवादी है। हमारा दर्शन पशु, पक्षी, कीट पतंग सहित सभी जड़-चेतन में वही चेतना मानता है, जो मानव में है। विश्व में आज ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण सुधार आदि पर चर्चाएँ हो रही हैं जबकि हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पहले जल, वायु, चन्द्र, सूर्य, नदी, पर्वत, वनस्पति, पशु पर ध्यान दिया, उनकी पूजा की। इसका सार था कि यदि यह नहीं बचे तो मानव भी नहीं बचेगा। वर्तमान में प्रकृति के अंधाधुंध दोहन से भू-जल नीचे जा रहा है, नदियाँ सूख रही हैं। विकास के नाम पर खिलवाड़ किया गया। वन्य-प्राणियों के लिये भी जगह नहीं छोड़ी। वनों की बेतहाशा कटाई हुई। दुष्परिणाम यह कि प्रकृति अपना चक्र बदल रही है। असमय वर्षा, ठंड, गर्मी हो रही है। प्राकृतिक आपदाएँ आ रही हैं। श्री चौहान ने कहा कि पिछले वर्ष प्राकृतिक आपदा से पीड़ित मध्यप्रदेश के किसानों को 3200 करोड़ रूपये बाँटे गये।
मुख्यमंत्री ने कहा प्रकृति का संतुलित दोहन किया जाये, शोषण नहीं। इसके लिये दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। लकीर के फकीर की तरह काम की बजाय ऐसा संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाये जिससे न पर्यावरण बिगड़े और वनांचल के निवासियों को भी कष्ट नहीं पहुँचे। विकास भी प्रभावित नहीं हो।
चिन्तन शिविर में श्री चौहान ने महत्वपूर्ण सुझाव देकर विशेषज्ञों और उपस्थितों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि बिगड़े वनों के सुधार में क्रांतिकारी सोच जरूरी है। वनोपज तथा अन्य लाभ में साझीधारी का अधिकार देकर जन-भागीदारी से ऐसे वनों का सुधार किया जा सकता है। सुरक्षित वन भी जन-भागीदारी से बढ़ाये बचाये जा सकते हैं। छोटे-बड़े झाड़ों का जंगल कहे जाने वाले क्षेत्र, जहाँ न तो वृक्ष हैं और न ही भविष्य में उम्मीद है, ऐसे क्षेत्रों में अन्य विकास कार्यों की अनुमति दी जा सकती है। बचे जंगलों को बचाने और घना करने के ठोस उपाय किये जाये तथा बिगड़े वनों को सुधारा जाय।
श्री चौहान ने बताया कि मध्यप्रदेश में यह प्रयोग सफल हुए हैं। इन प्रयोगों की सफलता में उन्होंने वन अधिकारियों के सकारात्मक सहयोग की सराहना की। श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में 21 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति की है। वे महानगरीय चकाचौंध से प्रभावित हुए बगैर अनादि काल से वनांचल में रह रहे हैं। ये कभी जंगल नष्ट नहीं करते। नष्ट दूसरे लोग करते हैं। मध्यप्रदेश में अचार, महुआ, निंबोली, करंज, लाख आदि लघु वनोपज का न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया गया है। वनों को रोजगार से जोड़ा गया। बाँस की पूरी आय स्थानीय आदिवासियों को देने का निर्णय लिया गया।
श्री चौहान ने कहा कि मानव विरोधी कानून बदलने की भी जरूरत है। सैकड़ों वर्षों पहले वन क्षेत्रों में बनी सड़कों को सुधारा क्यों नहीं जा सकता। वहाँ के निवासियों की जमीन सिंचित करने के लिये नवीन बाँध क्यों नहीं बनाये जा सकते। वहाँ बिजली क्यों नहीं पहुँचायी जा सकती। केवल शहरी या गैर वन क्षेत्र के लोग ही सुविधाओं का उपयोग करें और वनांचलवासी वंचित रहें, ऐसा क्यों? ऐसे विषयों पर संवेदनशीलता के साथ विचार कर सोच बदलने की जरूरत है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वन्य-प्राणियों की संख्या बढ़ रही है। भोपाल से जुड़े कोलार क्षेत्र में भी बाघ दहाड़ते हैं। जरूरी है कि वन्य-प्राणी सुरक्षित रहें। साथ ही यह भी आवश्यक है कि उनसे मनुष्य भी सुरक्षित रहें। उन्होंने बढ़ती नील गायों द्वारा किसानों की फसलें चौपट किये जाने का भी विशेष उल्लेख करते हुए ऐसी व्यवस्थाएँ करने को कहा िक या तो वे जंगल भेजी जाये अथवा ऐसे प्रयास किये जाये जिससे वन्य-प्राणी और इंसान में संघर्ष की स्थिति नहीं बने।
श्री प्रकाश जावड़ेकर
चिंतन शिविर में केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार श्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री चौहान के प्रारम्भिक उदबोधन से शिविर में विचार-विमर्श का मार्ग प्रशस्त हुआ है। उन्होंने केन्द्रीय अधिकारियों को निर्देश दिये कि केन्द्र सरकार के निर्णयों की जानकारी तथा परिपत्र ठीक तरह से तथा तुरंत राज्यों को उपलब्ध करवाये जाए। उन्होंने बताया कि वनांचल से गुजरने वाली सड़कों की मरम्मत अब वन मंत्रालय से अनुमति लिये बगैर की जा सकती है। जबलपुर-नागपुर फोर लेन की भी अनुमति दी गयी है। बिगड़े वनों को सुधारा जायेगा पर साथ ही विकास पर भी समभाव से विचार किया जायेगा।
प्रारंभ में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने दीप जला कर शिविर का शुभारंभ किया। शिविर में केन्द्रीय वन, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन विभागों सहित जम्मू- कश्मीर, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दादरा नगर-हवेली, गुजरात, पंजाब आदि राज्य के अधिकारी खुला विचार-विमर्श करेंगे।