दूध के खाली पैैकेट कैश बैक आफर में वापस होंगे दुकान पर
सुमन त्रिपाठी
भोपाल, 16 फरवरी। अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक चला तो हो सकता है बहुत जल्द दूध के खाली पैकेटों के बदले में दूध का भरा पैकेट मिलने लगे या खाली पैकेटों के पैसे मिल जाएं। यही नहीं मैगी नूडल्स अथवा टाफी के खाली पैकेटों के साथ भी यही आफर मिल सकता है। फिलहाल इस योजना पर विचार चल रहा है, लेकिन योजनाकारों को उम्मीद है कि प्लास्टिक के प्रदूषण से बचने के लिए आज नहीं कल इस तरह की योजना पर अमल करना ही पड़ेगा। यह योजना मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने तैयार की है।
प्लास्टिक के बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल (पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड) ने एक अनोखी योजना तैयार की है। बोर्ड का प्लान है कि दूध के खाली पैकटों को 50 पैसे प्रति पैकेट की दर से वापस लिया जाना चाहिए। कोई भी व्यक्ति दूथ के खाली पाउच लेकर किसी भी बूथ मिल्क पर जाता है तो उसे पचास पैसे प्रति पैकेट या अन्य कोई तय दर पर पार्लर संचालक को खरीद लेना चाहिए। अगर दूध लेने वाले ग्राहक तीस पैकेट वापस करते हैं तो उन्हें एक पैकेट दूध फ्री में दिया जाना चाहिए अथवा उसके बिल में से 15 रुपए कम किए जाएं। मिल्क बूथ से इन पैकेटों को दूध निर्माता कंपनियां अथवा संगठन ले जाएंगे और उन्हें रिसाइकिलिंग करके फिर से पैकेट बनाने के काम में ला सकते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी इस प्लानिंग से दूध निर्माताओं को अवगत कराया है और वे इससे सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं।
मध्यप्रदेश सरकार के पयार्वरण विभाग के प्रमुख सचिव और प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अध्यक्ष अनुपम राजन के अनुसार अभी एक प्लान तैयार किया गया है। इस पर विचार के लिए प्रदेश के सभी दुग्ध निमार्ताओं की बैठक मंडल द्वारा बुलाई गई थी। बैठक में मंडल की योजना पर व्यापक चर्चा हुई। उनके अनुसार सभी दुग्ध निर्माता सैद्धांतिक रूप से इससे सहमत हुए। सभी का मानना है कि बढ़ते प्लास्टिक कचरे और उसके प्रदूषण से निपटने के लिए इसी तरह का कोई न कोई रास्ता खोजना पड़ेगा। राजन के मुताबिक मध्यप्रदेश में करीब दस लाख लीटर दूध की बिक्री रोज होती है। इसके लिए करीब 22 लाख पैकेट का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से लगभग 90 फीसदी पैकेट कचरे में फेंक दिए जाते हैं। कचरा बीनने वालो तक बहुत कम पैकेट पहुंच पाते हैं। इसलिए जरूरी है कि सारे पैकेट किसी भी तरह रीसाइकिलिंग के लिए इकट्ठे किए जाएं। इसलिए आफर वाला तरीका अपनाए जाने पर आम आदमी भी जागरूक रहेगा। ग्वालियर की दूध एजेंसी प्यूरालाइट अभी इस तरह की एक योजना पर अमल कर रही है। उसे व्यापक रूप दिया जा सकता है।
प्रदूषण नियंत्रण मंडल की कोशिश है कि इस योजना में दूध के पैकेट के साथ अन्य प्लास्टिक कचरे को भी शामिल किया जाए। इनमें मैगी नूडल्स और तमाम तरह की मंहगी टाफियों के रैपर भी शामिल हैं। इसके लिए मैगी और टाफियां बनाने वाली कंपनियों से भी बात की जा रही है। राजन के मुताबिक दूध के पैकेट तो कचरा बीनने वाले उठा लेते हैं लेकिन मैगी और टाफी के रैपर वे भी नहीं उठाते हैं। अगर इनमें भी कैशबैक आफर होगा तो ग्राहक खुद ही पैकेट और रैपर दुकानों पर वापस करेंगे। मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले ने कुछ समय पहले इस तरह का प्रयोग किया भी था। प्रदूषण नियंत्रण मंडल को उम्मीद है कि आज नहीं तो कल इस तरह की योजना पर अमल करना ही पड़ेगा। ऐसा करके ही प्लास्टिक वेस्ट से निजात मिल सकेगी। मध्यप्रदेश के शहरी क्षेत्रों में अगर दूध के पैकेटों का कचरा निपटान ठीक से हो जाए तो 10 से 15 मीट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट कम हो जाएगा।