तीसरी ताकत की दहशत के साए में हैं बड़े दल
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 16 अक्टूबर। मध्यप्रदेश की सियासत में तीसरी ताकत कभी भी सरकार बनाने या गिराने के समीकरण में प्रभावी नहीं रही है, लेकिन सत्ता के साकेत में सियासी गर्माहट बनाने का काम हमेशा से किया है। विशेषकर 90 के दशक के बाद तीसरे मोर्चे के रूप में चर्चित होने वाले छोटे दलों ने चुनावों के पहले प्रमुख दलों को डराने का काम जरूर किया है। इनके डर का बड़ा कारण इनका बड़े दलों के नाराज नेताओं के लिए पनाहगार बन जाना है। यही इस चुनाव में भी होने की संभावना बढ़ रही है।
पंद्रह साल से मध्यप्रदेश में सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस ने इस बार सत्ता में आने के लिए हर संभव उपाय करने की ठान ली है। इसी के चलते उसने अपनी हैसियत से बहुत छोटे बसपा, सपा, गोंगपा जैसे दलों से भी समझौता करने को हाथ बढ़ा दिया। छोटे दलों को शायद सियासत का नयां दांव खेल दिया। पहले बसपा ने और फिर सपा ने कांग्रेस का हाथ झटक दिया। अब सपा तो उन लोगों को टिकट देने का खुले आम ऐलान कर रही है जिन्हें कांग्रेस या भाजपा में टिकट नहीं मिलता है।
मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी या फिर आम आदमी पार्टी जैसे दल पूरे प्रदेश की पार्टी आज तक नहीं बन पाए हैं। इसीलिए वे सत्ता के समीकरणों को प्रभावित कर पाने की स्थिति में कभी नहीं होते हैं। लेकिन सत्ता के लिए कांग्रेस की अकुलाहाट ने न सिर्फ इन दलों को दंभी बना दिया बल्कि खुद कांग्रेस और सत्तारूढ़ भाजपा के लिए नई सियासी मुश्किलें खड़ी कर ली हैं। हालांकि अब सपा औऱ बसपा के हाथ झटक देने के बाद कांग्रेस गठबंधन को लेकर सफाई देने में लगी है।
सपा, बसपा और गोंगपा तथा आप जैसी पार्टियां मप्र में भले ही कांग्रेस को लुभाने में सफल रहीं हों, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा को बहुत प्रभावित नहीं कर पाई हैं। लेकिन हाल में आरक्षण और जातीयता जैसै मुद्दों को लेकर सक्रिय हुए जयेस, सपाक्स, अजाक्स जैसे गैर राजनीतिक दलों ने जरूर सत्ता के सिंहासन पर चौथी बार काबिज होने को आतुर भाजपा को दहशत में ला दिया है। यह बात अलग है कि भाजपा अभी भी अपने डर को अभिव्यक्त नहीं कर रही है।
मप्र की सत्ता के साकेत में तीसरा मोर्चा भले ही निर्णायक भूमिका न निभा पाए, लेकिन बड़े दलों का खेल बिगाड़ने की उनकी रणनीति ने जरूर सियासी दहशत फैला दी है।