कभी अजेय स्पीकर को हराने वाले गिरीश गौतम स्पीकर के आसन पर
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 26 फरवरी। विधानसभा अध्यक्ष के रूप में गिरीश गौतम ने पहला हफ्ता पूरा कर लिया। उन्होंने पांच दिन में ही जता दिया कि अब वे भाजपा विधायक नहीं बल्कि मप्र विधानसभा के स्पीकर हैं। रीवा जिले की देवतालाब विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक गिरीश गौतम मध्यप्रदेश विधानसभा के स्पीकर बीते सोमवार को बने थे। करीब 18 साल बाद एक बार फिर मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष का पद विंध्य के खाते में गया है। इससे पहले विंध्य से सफेद शेर कहे जाने वाले कद्दावर कांग्रेसी नेता श्रीनिवास तिवारी लगभग 10 साल तक स्पीकर बने रहे। उन्होंने दिग्विजय सिंह के शासनकाल में स्पीकर के रूप में अपनी दबंग छवि से काम करके बहुत रुतबा कायम किया था। अब वैसा ही रुतबा कायम करने की जिम्मेदारी गिरीश गौतम पर होगी।
यह संयोग है कि अजेय योद्धा कह जाने वाले श्रीनिवास तिवारी गिरीश गौतम से पराजित हुए थे। यही कारण है कि गिरीश गौतम कम्युनिस्ट पार्टी के रास्ते भाजपा में आने के बाद भी भाजपा के प्रमुख नेताओं में गिने जाने लगे। उन्होंने 1993 और 1998 का चुनाव कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे तले ही श्रीनिवास तिवारी के खिलाफ मनगवां सीट से लड़ा था। जब 1998 में मात्र 694 हारे तो उस क्षेत्र में जमीन तलाश कर रही भाजपा को नई उम्मीद दिखाई पड़ी। गिरीश गौतम पर डोरे डाले गए और आखिरकार 1999 में गौतम लाल झंडा छोड़कर भगवा के बैनर तले आ गए। उस समय पार्टी के अध्यक्ष विक्रम वर्मा और दिग्गज नेता सुषमा स्वराज उन्हें सदस्यता दिलाने के लिए खुद रीवा पहुंचे थे। भाजपा का यह प्रयोग उसके लिए बहुत लाभदायक रहा और 2003 के चुनाव में गिरीश गौतम ने सफेद शेर और अजेय योद्धा श्रीनिवास तिवारी को सियासत के मैदान में धूल चटा दी। इस जीत ने गिरीश गौतम को भाजपा के प्रमुख नेताओं में शुमार कर दिया लेकिन राजनीति की शतरंजी चालों में फंसकर वे मंत्री नहीं बन पाए। जबकि उन्होंने 2008, 2013, 2018 में भी भाजपा के लिए जीत हासिल की। मनगवां सीट आरक्षित हो जाने के कारण गौतम को देवतालाब शिफ्ट किया गया और वहां भी उन्होंने अपना जादू दिखाया। इसके बाद भी उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली तो गौतम का कम्युनिस्ट मन जाग जाग उठा। उन्होंने भाजपा के केदार शुक्ला, नागेंद्र सिंह जैसे विधायकों को एकजुट कर पार्टी के खिलाफ अघोषित मोर्चा खोल दिया। इन सब का विरोध सिर्फ इस बात पर था कि राजेंद्र शुक्ला को हर बार मंत्री ना बनाया जाए। यह खेमा अपने विरोध में सफल रहा और इस बार राजेंद्र शुक्ला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की बहुत इच्छा के बाद भी मंत्री नहीं बन पाए। इसी मोर्चे की कवायद है गिरीश गौतम अब संवैधिनक व्यवस्था की उस बड़ी कुर्सी पर बैठेंगे जिस पर श्रीनिवास तिवारी बैठकर विंध्य में अपना शासन चलाया करते थे। यह अलग बात है कि भाजपा और कांग्रेस के वर्किंग कल्चर में बहुत अंतर है। ऐसे में गिरीश गौतम को हर कदम फूंक कर रखना होगा। कल तक उनके साथ खड़े होने वाले पार्टी के विधायक ही अब अपना दुख जता रहे हैं। केदार शुक्ला स्पीकर न बन पाने के दुख से दुखी होकर सार्वजनिक बयानबाजी कर रहे हैं।ऐसे में स्पीकर यह कुर्सी गिरीश गौतम के लिए सियासी रूप से कांटों भरा ताज हो सकती है।