इस बार राज्य सभा की तीन सीटों के लिए होगा सियासी घमासान
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 26 फरवरी। अप्रैल में रिक्त हो रही मध्यप्रदेश से राज्य सभा की तीनों सीटों के लिए 26मार्च को चुनाव होंगे। इसके लिए शासन और सियासत में चुनावी बिगुल बज चुका है। शासन यानि विधानसभा सचिवालय जहां अपनी तैयारियों में जुटा है, वहीं दोनों पार्टियां टिकट के दावेदारों में मच रहे घमासान से निपटने में लगीं है। तीन सीटों में से कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही एक एक सीट मिलना तय है। वहीं तीसरी सीट के लिए कांग्रेस का पलड़ा भारी है। उसे एक सीट जीतने के जरूरी आंकड़े तक पहुंचने के लिए सिर्फ तीन विधायक चाहिए, जबकि भाजपा को आठ विधायक कम पड़ेंगे। सपा बसपा निर्दलीय कांग्रेस के साथ सरकार में हैं, इसलिए वे कांग्रेस का ही समर्थन करेंगे। लेकिन भाजपा चुनाव को रोचत बनाने के लिए तीसरी सीट पर दांव खेल सकती है।
मप्र से राज्य सभा के लिए इस बार कांग्रेस का पलड़ा भारी है। विधानसभा में सबसे बडी पार्टी होने के कारण उसके पास सदस्यों की संख्या अधिक है। साथ ही सत्तारूढ़ दल होने के कारण बसपा और सपा के साथ साथ निर्देलीय विधायक भी कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे में राज्य सभा की तीन रिक्त हो रही सीटों में से दो उसे मिलना तय है, लेकिन कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसके पास राज्य सभा जाने वालों की लंबी कतार भी है। इनमें सबसे पहला नाम दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का है, जो पार्टी के महासचिव भी हैं और इस बार गुना लोकसभा सीट से हार गए थे। साथ ही प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का भी नाम चर्चा में हैं। अप्रैल में जो तीन सीटें रिक्त हो रही हैं, उनमें कांग्रेस की इकलौती सीट से दिग्विजय सिंह अभी सांसद हैं। वे फिर अपनी वापसी के लिए प्रयासरत हैं। पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव हारने वाले पूर्व मंत्री अजय सिंह राहुल भी प्रबल दावेदार हैं। वे विधानसभा सीट हारने के बाद भी पार्टी के कहने पर सीधी से लोकसभा लड़े और हार गए थे। पार्टी के ओबीसी नेता और चंबल अंचल में बड़ा चेहरा रामनिवास रावत भी राज्य सभा की दौड़ में हैं। इसी तरह बुंदेलखंड में पार्टी का बड़ा चेहरा माने जाने वाले और विधानसभा चुनाव हारे मुकेश नायक भी दावेदार हैं। बड़़े नेताओँ की इस रस्साकसी में फंदा फंसाने के लिए अरुण यादव जैसे नेताओं ने प्रियंका गांधी को मप्र से राज्य सभा भेजने का राग अलाप दिया है। इसका असर भी पार्टी की रणनीति पर पड़ रहा है। इस नाम पर कोई न नहीं कह पा रहा है। पार्टी का दावा है कि अंतत: टिकट दो को ही मिलना है, इसलिए सारे समीकरणों पर विचार विर्मश के बाद सब ठीक तरह से तय हो जाएगा।
करीब डे़ढ़ दशक तक मध्यप्रदेश के सत्ता सिंहासन पर विराजमान रही बीजेपी के लिए बहुत दिनों मुश्किल वाले दिन आए हैं। अभी रिक्त हो रही है तीन सीटों में से दो उसके पास हैं लेकिन विधानसभा में संख्या बल और समीकरण के चलते उसे एक सीट ही वापस मिल पाएगी। ऐसे में तमाम दावेदारों में से एक को चुनना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी। जबकि पार्टी में राज्यसभा जाने वालों की लंबी फेहरिश्त है। मौजूदा सांसद प्रभात झा तीसरी बार राज्यसभा जाने के लिए पूरी कोशिश में हैं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी दौड़ में शामिल है। प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता और महाकौशल अंचल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता रविनंदन सिंह का नाम भी चर्चा में है। वहीं पिछली बार सदस्य बनने से चूक गए विनोद गोटिया भी रेस में हैं। पिछली बार हार तय होने के बाद भी गोटिया पार्टी के निर्देश पर निर्दलीय मैदान में उतरकर कांग्रेस के विवेक तन्खा से चुनाव हारे थे। इसलिए वे अब प्रबल दावेदार हैं। कुछ आदिवासी नेता भी दावेदारी कर रहे हैं। पार्टी का एक गुट आदिवासी नेता को सदस्य बनाना चाह रहा है। आदिवासी समीकरण के चलते पिछली बार भी पार्टी ने अनजान चेहरे संपतिया उइके को राज्य सभा भेज दिया था। इसके अलावा चंबल से एससी कोटे से आने वाले लालसिंह आर्य का नाम भी चर्चा में है। पार्टी का दावा है कि भाजपा में सब कुछ सिस्टम के तहत होता है। इस बार भी वही होगा।
सियासत के समर में हार जीत होती रहती है, लेकिन राज्यसभा के चुनाव में हारजीत बड़े मायने रखती है। इसमें पार्टियों की प्रतिष्ठा सीधें दांव पर होती है। इसलिए हरदल यह कोशिश करता है कि जीत का आंकड़ा पूरी तरह उसके पक्ष में हो तभी वह अपने योद्दा मैदान में उतारे। इस बार मध्यप्रदेश में तीसरी सीट कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए अपनी दम पर मुफीद नहीं है। इसलिए अगर दोनों के प्रत्याशी मैदान में होते हैं तो राज्य सभा चुनाव भी रोचक बन जाएगा।