अटेर की जीत से कांग्रेस को संजीवनी
सुमन
लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारने के कारण मध्यप्रदेश में वेंटीलेटर पर चली गई कांग्रेस को अटेर विधानसभा उपचुनाव की जीत ने संजीवनी प्रदान कर दी है। यह जीत ऐसे समय पर मिली है जबसे भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेसी भी मानने लगे हैं कि शिवराज सिंह चौहान के चेहरे का कोई मुकाबला मैदान में नहीं है।
देश की तमाम विधानसभा सीटों के साथ मध्यप्रदेश की 2 सीटों के उपचुनाव भी हुए उनमें से बांधवगढ़ सीट पर भाजपा जीत दर्ज करने में सफल रही, लेकिन अटेर में सारी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। अटेर की जीत सिर्फ ग्वालियर अंचल के ही नहीं बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम करेगी। इस उपचुनाव में अटेर के लिए कांग्रेस की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया को जिम्मेदारी दी गई थी। सिंधिया को अगले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की कमान सौंपने की न सिर्फ मांग उठ रही है बल्कि इसकी चर्चा भी जोरों पर है, ऐसे में अटेर में मिली जीत ने सिंधिया का दावा और मजबूत कर दिया है, साथ ही यह संदेश भी दिया है कि अगर कांग्रेस के लोग एकजुट हो जाएं और किसी एक नेता की लीडरशिप को मान ले तो मध्यप्रदेश में पार्टी का कद फिर बढ़ सकता है। अटेर में पार्टी के सभी बड़े नेता प्रचार करने पहुंचे थे, लेकिन सभी ने यही संदेश देने की कोशिश की थी कि सिंधिया ही अगुवाई कर रहे हैं। वहीं भाजपा की तरफ से एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के हाथ में पूरी कमान थी इसलिए इस चुनाव को शिवराज बनाम सिंधिया मान लिया गया था। यह बात अलग है कि चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस जहां जीत का सेहरा सिंधिया के सिर पर बांध रही है वहीं भाजपा हार का ठीकरा शिवराज के सिर पर फोड़ रही है। अटेर की हार को भाजपा कांग्रेस के लिए सहानुभूति की जीत बता रही है। गौरतलब है कि अटेर उपचुनाव कांग्रेस के बड़े नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे सत्यदेव कटारे के पुत्र हेमंत कटारे को मैदान में उतारा था। शायद इसीलिए सारे दांव आजमाने के बाद भी हार का सामना करने वाली भाजपा को अपने बचाव में सहानुभूति की जीत बताने का मौका मिल गया। हालांकि भाजपा कांग्रेस की इस जीत को सहानुभूति की जीत मानने के बाद भी हार को पचा नहीं पा रही है। इसलिए बीजेपी के नेता हार पर अलग-अलग दावे कर रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान चुनाव आयोग के सिर पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। उनका दावा है इस चुनाव में आयोग की ओर से आए पर्यवेक्षकों ने कांग्रेस का साथ दिया, वहीं भाजपा की ओर से उस चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जल संसाधन मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा हार को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, उनका कहना है कि इस परिणाम के बाद उन लोगों से सवाल पूछा जाना चाहिए जिन्होंने ईवीएम पर प्रश्नचिन्ह लगाए थे।
अटेर की सीट भाजपा के खाते में नहीं थी। विधानसभा चुनाव में सत्यदेव कटारे ने भाजपा के अरविंद भदौरिया को हरा कर जीत हासिल की थी। इस उपचुनाव में कटारे के पुत्र हेमंत का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने फिर से भदौरिया को ही मैदान में उतारा था। भाजपा ने चुनाव जीतने के सिद्धहस्त माने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके सभी खास मंत्री अटेर में डेरा डाले रहे। इसके बावजूद भारी कशमकश के बीच कांग्रेस की जीत ने भाजपा की रणनीति पर सवाल तो खड़े कर दिए हैं। इस चुनाव में भाजपा और शिवराज ने अपने सभी चुनावी अस्त्र-शस्त्र का उपयोग किया था लेकिन कहीं पर चूक हो गई और निशाना गलत लग गया। राजनैतिक विश्लेषक इस गलत निशाने को शिवराज सिंह चौहान द्वारा सिंधिया राजवंश पर अंग्रेजों का साथ देने और अटेर की जनता पर जुल्म करने वाले बयान से जोड़ कर देख रहे हैं। हालांकि भाजपा के लोग इसे खुलकर स्वीकार नहीं कर रहे हैं। लेकिन दबी जुबान यह मान रहे हैं कि ग्वालियर अंचल में सिंधिया परिवार पर इस तरह का आरोप भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। हालांकि फिर मुख्यमंत्री ने अटेर के परिणाम को लोकतंत्र में लोकमत की विजय बताया है और कहा है कि अटेर के विकास में सरकार भरपूर सहयोग देगी। भाजपा की इस हार में इस क्षेत्र के जातीय समीकरणों को न समझ पाना भी एक कारण माना जा रहा है। यह माना जा रहा है कि कुशवाह और बघेल ठाकुरों ने भाजपा का साथ नहीं दिया। भाजपा के उत्तर प्रदेश की इस वर्ग के मंत्रियों को बुलाकर भी प्रचार में उतारा लेकिन फायदा नहीं मिला। वहीं भदौरिया ठाकुरों में भी अरविंद के खिलाफ नाराजगी थी। चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री ने मुन्ना सिंह भदौरिया जैसे प्रभावी नेताओं को मनाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन अब लग रहा है कि दांव पूरी तरह से फिट नहीं बैठा। वहीं क्षेत्र के ब्राम्हण नेता चौधरी राकेश सिंह भाजपा में होने के बावजूद भी हाशिए पर थे। सिंधिया परिवार की यशोधरा राजे ने भी मुख्यमंत्री के बयान के बाद प्रचार से दूरी बना ली । शायद इन सब कारणों के चलते भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। लगातार पांच उपचुनाव हारने के बाद अटेर की जीत ने पूरी कांग्रेस को फिर जिंदा कर दिया है।