महीने भर पहले बीजेपी में वापस आए अभय मिश्रा फिर कांग्रेस का हाथ थामेंगे
खरी खरी संवाददाता
रीवा, 18 अक्टूबर। सिर्फ महीने भर पहले भाजपा में वापस आए पूर्व विधायक अभय मिश्रा का मोह फिर बीजेपी से भंग हो गया। उन्होंने तमाम आरोप लगाते हुए भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा को इस्तीफा सौंप कर पार्टी को टाटा बोल दिया। अभय अब वापस कांग्रेस का हाथ थामकर रीवा जिले की सेमरिया सीट से प्रत्याशी हो सकते हैं।
चुनाव के इस सीजन में दल बदल का खेल सभी दलों में चल रहा है। लेकिन कांग्रेस और भाजपा जैसे बड़े दलों के नामचीन नेता दल बदल रहे हैं तो सियासत पर सवाल उठने लगे हैं। सपा,बसपा, आप जैसे दल तो इंतजार कर रहे हैं कि बड़ी पार्टियां छोड़कर आने वाले कद्दावर नेताओं को वे टिकट देकर अंचल में अपना वजूद बनाए रखें, लेकिन बड़े दलों में टूटन यह सवाल कर रही है कि क्या सिर्फ टिकट पाना ही सियासी राजधर्म है। वर्षों तक एक ही पार्टी में रहने वाले नेता तमाम कारणों से नाराज होकर दल बदल कर रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे नेता भी हैं जो आयाराम गयाराम की भूमिका में चर्चित हो रहे हैं। मैहर से बीजेपी के टिकट पर विधायक नारायण त्रिपाठी का बीजेपी से इस्तीफा यह संकेत देता है। कभी निर्दलीय तो कभी सपा और कभी कांग्रेस से विधायक रहे नारायण त्रिपाठी अभी भाजपा से विधायक थे। मैहर से टिकट कटना तय हुआ तो सरकार और भाजपा के खिलाफ हो गए। पल भर में पाला बदल लिया और भाजपा को टाटा कर दिया। अब अंदाज लगाया जा रहा है कि उन्हें कांग्रेस के टिकट पर मैहर से प्रत्याशी बनाया जा रहा है।
नारायण त्रिपाठी ने तो पांच छह साल इंतजार किया लेकिन कभी भाजपा की टिकट पर सेमरिया से विधायक बने अभय मिश्रा तो उनसे भी दो कदम आगे निकल गया। उनकी तो एक महीने पहले ही भाजपा में वापसी हुई थी लेकिन टिकट नहीं मिला तो उन्होंने फिर कांग्रेस की ओर मुंह कर लिया। अभय मिश्रा 2008 में अस्तित्व में आई सेमरिया विधानसभा सीट से पहली बार भाजपा की टिकट से विधायक बने थे। उसके बाद 2013 में उनकी पत्नी भाजपा के टिकट से सेमरिया से ही विधायक चुनी गई थी। साल 2018 के चुनाव में भाजपा ने पति पत्नी दोनों में किसी को टिकट नही दिया। अभय मिश्रा ने भाजपा छोड़कर रीवा विधानसभा से कांग्रेस की टिकट पर भाजपा के विरूद्ध चुनाव लड़ा था। जिसमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था। करीब पांच साल बाद इसी साल 11 अगस्त को उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली थी। लेकिन टिकट नहीं मिला तो तमाम आरोप लगाकर बीजेपी को बाय कह दिया। अब वो खुद दावा कर रहे हैं कि क्षेत्र की जनता उनकी पत्नी को नहीं उन्हें प्रत्याशी के रूप में देखना चाहती है। साफ जाहिर है कि इन नेताओं को सिर्फ टिकट से मतलब है किसी को पार्टी या पब्लिक से कोई लेना देना नहीं है।