कई सरकारें गिरा देने वाली प्याज एमपी के चुनाव में कांग्रेस का हथियार बनी
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 2 नवंबर। देश की सियासत को कई बार बड़ा झटका देकर सरकारें गिराने वाली प्याज इस बार मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में वोट का मुद्दा बन रही है। श्रीराममंदिर जैसा बड़ा चुनावी मुद्दा पास में होने के बाद भी सत्तारूढ़ भाजपा प्याज से दहशत मैं है। मंदिर मुद्दे की पिच पर नहीं खेलने की ठान चुकी कांग्रेस प्याज के बढ़ती कीमतों की सियासी पिच पर चुनावी मैच खेलने की पूरी तैयारी में है। यह सरकार के लिए बड़े संकट का संकेत है।
मध्यप्रदेश के चुनावी माहौल में अचानक प्याज की एंट्री हो गई। कांग्रेस ने बढ़ती मंहगाई को मुद्दा बनाते हुए उसमें प्याज को भी शामिल कर लिया। प्याज जब साठ रुपए किलो था, तब भी कांग्रेस ने प्याज का भाव 80-90 रुपए बताते हुए इसे सियासी मुद्दा बना दिया। दो दिन में ही प्याज चुनाव में कांग्रेस का सबसे बड़ा हथियार बन गई। भाजपा के मंदिर मुद्दे पर किसी भी तरह नहीं खेलने की ठानम चुकी कांग्रेस को प्याज के मुद्दे ने बड़ी राहत दी है। साठ रुपए किलो प्याज खरीदने वाला मतदाता भी यह मानने को तैयार नहीं है कि कांग्रेस झूठ बोल रही है। भाजपा और उसकी केंद्र तथा राज्य में सत्तारूढ़ सरकारों के तमाम तर्क और दावे भी प्याज को चुनावी मुद्दा बनने से नहीं रोक पा रहे हैं। इसलिए उनकी कोशिश है कि किसी भी तरह चुनाव की रेल मंदिर वाले ट्रैक पर चलने लगे। वहीं कांग्रेस समझ गई है कि अगर ट्रैक बदला तो उसे बड़ा नुकसान हो जाएगा, इसलिए अब कांग्रेस के छोटे से बड़े सभी नेता प्याज के मुद्दे पर ही सरकार को घेरने की कवायद में जुट गए हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक तो प्रेस कांफ्रेंस में प्याज की माला पहनकर पहुंच गईं। मध्यप्रदेश के दौरे पर आईं प्रियंका गांधी से भी कांग्रेस ने प्याज की बढ़ती कीमतों पर सरकार को नसीहत दिलवा दी।
मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा प्रोपेगंडा में किसी से पीछे नहीं है। इसके बावजूद वह प्याज के मुद्दा पर विपक्ष से सीधा टकराव लेने के मूड में नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि भाजपा को पता है कि प्याज कई बार सरकारों की कुर्बानी करवा चुकी है। आपात काल के बाद सरकार में आई जनता पार्टी के शासनकाल 1977 से 1980 में प्याज की कीमतों में एकदम वृद्धि हो गई। इंदिरा गांधी ने 1980 के आम चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाया। वे चुनाव प्रचार के दौरान प्याज की माला पहनकर घूमीं औऱ अंततः जनता पार्टी सरकार की विदाई हो गई। सर्वकालीन राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में पोखरण विस्फोट कर कई देशों की नाराजगी और देश के हर तबके की शाबासी हासिल की, इसके बाद भी वह विधानसभा चुनाव में दिल्ली और राजस्थान की सरकारों को नही बचा पाई। जबकि दिल्ली में प्याज की कीमतों पर नियंत्रण के लिए भाजपा हाईकमान ने दिल्ली के मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना को हटाकर साहिब सिंह वर्मा को सीएम बनाया... कुछ दिन बाद ही वर्मा को हटाकर सुषमा स्वराज की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया लेकिन सरकार नहीं बच पाई। प्याज की कीमतों ने तीन मुख्यमंत्रियों की कुर्सी पलटवा दी। इतना ही नहीं 1998 में ही भाजपा के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी प्याज के कारण गिरी थी। वाजपेयी ने कहा था कि जब-जब कांग्रेस सत्ता में नहीं होती प्याज की कीमतें बढ़ जाती हैं। दिल्ली मे सत्तारूढ़ कांग्रेस की सरकार भी 2013 में प्याज की कीमतों के चलते ही हार गई। प्याज के मुद्दे पर आई सरकार पंद्रह साल बाद प्याज के मुद्दे पर ही चली भी गई।
प्याज का यह सियासी इतिहास ही मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी को डरा रहा है। इस बार कीमतें अभी नियंत्रण में हैं। कांग्रेस के आरोपों वाली कीमत तक प्याज अभी नहीं पहुंची है। इसके बाद भी दहशत साफ दिखाई दे रही है। सरकार प्याज की कीमतें स्थिर रखने की व्यवस्था में जुट गई है। नाफेड जैसी सरकारी संस्थाएं आम जनता को सस्ती दरों पर प्याज उपलब्ध कराने की कवायद में जुट गईं। इसके बाद प्यास मुद्दा बनती जा रही है। यही रफ्तार रही तो कांग्रेस के हाथ आया यह हथियार घातक साबित हो सकता है।