‘एनडीए’ बनाम ‘इंडिया’ की सियासी जंग में कौन कितना भारी
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 28 जुलाई। देश में लोकसभा चुनाव अभी दूर हैं लेकिन इन चुनावों की सियासी आहट ने सबको अलर्ट कर दिया है। विपक्ष की भूमिका निभा रहे यूपीए ने अपना चेहरा बदलकर इंडिया नाम रख लिया है। वहीं सत्तारूढ़ एनडीए ने नाम तो नहीं बदला लेकिन कुनबे में कई नए साथी आ गए। ऐसे में एनडीए बनाम इंडिया की जंग इस चुनाव में रोचक है। इसलिए यह समझना पडेगा कि कौन कितना भारी है।
संख्या की दृष्टि से ‘एनडीए’ अभी भी ‘इंडिया’ पर भारी है। इंडिया में 26 तो एनडीए में 38 दल हैं। लेकिन महत्व केवल संख्या का नहीं, राजनीतिक दलों के जनाधार और वैचारिक धरातल का है। कांग्रेस और कम्युनिस्टों के अलावा कई क्षेत्रीय दल हैं, जिनकी अपनी मजबूत जमीनी पकड़ राज्यों में है। इसलिए संख्या में भले कम हों, लेकिन तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, जनता दल यू, राजद, झामुमो, नेशनल कांफ्रेंस आदि ऐसी पार्टियां हैं, जिनका अपना मजबूत और परखा हुआ वोट बैंक है। इसके विपरीत एनडीए में शामिल दलों में भाजपा को छोड़ दिया जाए तो बाकी दलो और नेताओं के जनाधार और प्रभाव की स्थिति शेरनी के पीछे चलने वाले शावकों जैसी है। बेंगलुरू की विपक्षी महाजुटान को यकीन है कि वर्तमान हालात में ‘इंडिया’ नाम आम मतदाता में नई फुरफुरी और चेतना पैदा करेगा, जो चुनावी जीत का समीकरण बदल सकता है। लेकिन यह लक्ष्य कठिन इसलिए है क्योंकि भाजपानीत ‘एनडीए’ और ‘इंडिया’ के बीच वोट बैंक की बड़ी खाई है। आंकड़ों को देखें तो 2004 के बाद से ‘एनडीए’ का वोट बैंक लगातार बढ़ रहा है। यह 2004 में 22.18 प्रतिशत था, जो 2019 में बढ़कर 37.36 प्रतिशत हो गया। जबकि यूपीए का वोट प्रतिशत 2004 व 2009 में तो बढ़ा, लेकिन 2014 व 2019 के चुनाव में 19 फीसदी के आसपास स्थिर है।इसका सीधा अर्थ यह है कि जब तक ‘इंडिया’ अपना वोट बैंक 37 फीसदी के पार नहीं ले जाता, लाल किले पर उसका कब्जा सपना ही होगा। वोट बैंक दोगुना करना आसान काम नहीं है। यह तभी संभव है, जब विपक्ष के पास दमदार चेहरा, ठोस कार्यक्रम और देश को आगे ले जाने का स्पष्ट रोड मैप हो। संविधान और लोकतंत्र को बचाने जैसे जुमले सैद्धांतिक ज्यादा हैं। अलबत्ता 2024 के चुनाव में ‘इंडिया’ का वोट दो-चार प्रतिशत बढ़ सकता है, क्योंकि कुछ राज्यों में मजबूत जनाधार वाले दल उसमें शामिल हो गए हैं। लेकिन यहां भी पेंच यह है कि जनाधार वाले शिवसेना, राकांपा व अकाली दल में फूट पड़ने से उनका खुद को वोट बैंक दरक रहा है। ऐसे में ‘इंडिया’ को उसका सीमित लाभ ही मिल सकेगा। दूसरी तरफ एनडीए वोट बैंक की इस कमी को उन छोटे दलों को अपने खेमे में लाकर पूरी कर सकता है, जिनका वोट दो चार प्रतिशत है और जो ज्यादा आंख दिखाने की स्थिति में नहीं हैं। यानी दिल्ली की सत्ता में बदलाव तभी संभव है, जब जनता मोदी और भाजपा को हर कीमत पर हराने पर उतारू हो, जिसकी कोई संभावना नजर नहीं आती।