सारे पापों को नष्ट करता है बेलपत्र
सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की मन से आराधना सारे पापकर्मों को नष्ट कर अभीष्ट फल प्रदान करती है। इसलिए भोलेनाथ की भक्त सावन में पानी की झड़ी होने के बाद विधि विधान से करनी चाहिए। शिवजी को अर्पण के लिए बेल पूजन में बेल पत्र अथवा विल्ब पत्र अवश्य शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि शिवशंकर औढ़रदानी को बेल पत्र बेहद पसंद हैं। शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने से तीन युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। ग्रंथों में भगवान शिव को प्रकृति रूप मानकर उनकी रचना, पालन और संहार शक्तियों की वंदना की गई है। यही कारण है कि भगवान शिव की उपासना में भी फूल-पत्र और फल के चढ़ावे का विशेष महत्व है। शिव को बेलपत्र या बिल्वपत्र का चढ़ावा बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।
कहते हैं शिव को बिल्वपत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। शिवलिंग पर गंगाजल के साथ-साथ बेलपत्र भी चढ़ाने का विधान है। बेलपत्र को संस्कृत में ‘बिल्वपत्र’ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है। इसलिए पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। शास्त्रोक्त मान्यता है कि बेल के पेड़ को पानी या गंगाजल से सींचने से समस्त तीर्थो का फल प्राप्त होता हैं एवं भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
बेल के वृक्ष का धार्मिक महत्व हैं, क्योंकि बिल्व का वृक्ष भगवान शिव का ही रूप है। बिल्व-वृक्ष के मूल अर्थात उसकी जड़ में शिव लिंग स्वरूपी भगवान शिव का वास होता हैं। इसी कारण से बिल्व के मूल में भगवान शिव का पूजन किया जाता हैं। पूजन में इसकी मूल यानी जड़ को सींचा जाता है। शिवपुराण में कहा गया है...
बिल्वमूले महादेवं लिंगरूपिणमव्ययम्।
य: पूजयति पुण्यात्मा स शिवं प्राप्नुयाद्॥
बिल्वमूले जलैर्यस्तु मूर्धानमभिषिञ्चति।
स सर्वतीर्थस्नात: स्यात्स एव भुवि पावन:॥
भावार्थ: बिल्व के मूल में लिंगरूपी अविनाशी महादेव का पूजन जो पुण्यात्मा व्यक्ति करता है, उसका कल्याण होता है। जो व्यक्ति शिवजी के ऊपर बिल्वमूल में जल चढ़ाता है उसे सब तीर्थो में स्नान का फल मिल जाता है।
बिल्व पत्र तोड़ने का मंत्र
बेल के पत्ते तोड़ने से पहले निम्न मंत्र का उच्चरण करना चाहिए-
अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रियःसदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥
अर्थात... अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष मैं तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।
बेल पत्र हर समय नहीं तोड़ना चाहिए
बेल पत्र शिवजी को बेहज प्रसन्न है और बेल पत्र भी शिवजी का श्रृंगार बनकर ध्न्य हो जाते हैं। इसके बावजूद हर समय बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों में इसके लिए भी कुछ प्रावधान किए गए हैं। लिंगपुराण में कहा गया है...
अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥
अर्थात.. अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है।
0 विशेष दिन या विशेष पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना निषेध हैं।
0 बेल कि पत्तियां सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
0 बेल कि पत्तियां चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को नहीं तोड़ना चाहिए।
0 बेल कि पत्तियां संक्रांति के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
0 टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए। कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए।
0 पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न
पहुंचे।
0 बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए।
चढ़ाए गए बेल पत्र भी पुनः चढ़ा सकते हैं
शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र तोडकर चढ़ाने से मना किया गया है। इसलिए यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं। स्कंदपुराण में कहा गया है...
अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥
अर्थात... अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।
बेल पत्र अर्पित करने का मंत्र
भगवान भोलेनाथ को बेल पत्र चढ़ाते समय मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप के साथ विल्ब पत्र अर्पण से शिवजी बहुत प्रसन्न होते हैं। बिल्ब पत्र अर्पण का मंत्र इस प्रकार है..
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् ।
त्रिजन्मपापसंहार, विल्वपत्र शिवार्पणम् ।।
भावार्थ: तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले, हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।
बिल्व पत्र अर्पण की विधि
भगवान शिव तो भोलेनाथ हैं और भक्तों के भाव से ही प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन पूजन अगर विधि विधान से किया जाए तो ज्यादा लाभदायक होता है। इसलिए भोलेनाथ को बेल पत्र अर्पण भी विधि के अनुसार करना चाहिए।
0 बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए।
0 बेलपत्र अर्पित करते समय जल की धारा जरूर चढ़ाएं। बिना जल के बेलपत्र अर्पित नहीं करना चाहिए।
0 बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए। कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र और बिल्वपत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं।
0 बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं, ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं।
0 शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए।
अगर बेलपत्र उपलब्ध न हो, तो बेल के वृक्ष के दर्शन ही कर लेना चाहिए। उससे भी पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं। बिल्वपत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बिल्व पत्र चढ़ाया जा सकता है। जिसे नित्य शुद्ध जल से धो कर शिवलिंग पर पुनः स्थापित कर सकते हैं। भगवान शिव के अंशावतार हनुमान जी को भी बेल पत्र अर्पित करने से प्रसन्न किया जा सकता है और लक्ष्मी का वर पाया जा सकता है। घर की धन-दौलत में वृद्धि होने लगती है। अधूरी कामनाओं को पूरा करता है सावन का महीना शिव पुराण अनुसार सावन माह के सोमवार को शिवालय में बेलपत्र चढ़ाने से एक करोड़ कन्यादान के बराबर फल मिलता है। बिल्व पत्र को श्री वृक्ष भी कहा जाता है। बिल्व पत्र का पूजन पाप व दरिद्रता का अंत कर वैभवशाली बनाने वाला माना गया है। घर में बेल पत्र लगाने से देवी महालक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं। इन पत्तों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इन्हें अपने पास रखने से कभी धन-दौलत का अभाव नहीं होता।