कामाख्या मंदिर: जहां देवी के रजस्वला होने पर लगता है मेला

Jun 24, 2016

असम की राजधानी गुवाहटी स्थित मां कामाख्या का मंदिर देश के 52 शक्ति पीठों में प्रमुख और प्राचीनतम माना जाता है। यह इकलौता मंदिर है जहां मां भगवती के रजस्वला होने के आधार पर समारोह और अन्य आयोजन होते हैं। कहा यह भी जाता है कि माता के रजस्वला होने पर ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी लाल हो जाता है। यह तंत्र साधना का शक्ति पीठ है, इसलिए दुनिया भर के माता भक्तों की यहां भीड़ लगी रहती है।
कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रेल्वे स्टेशन से करीब 8 किमी दूर नीलाचल पहाड़ियों पर स्थित है इस मन्दिर में आपको मुख्य देवी कामाख्या के अलावा देवी कालीके अन्य 10 रूप जैसे धूमावती, मतंगी, बगोला, तारा, कमला, भैरवी, चिनमासा, भुवनेश्वरी और त्रिपुरा सुंदरी भी देखने कोमिलेंगे।पौराणिक इतिहास 108 शक्ति पीठों में शुमार होने के अलावा, ये मंदिर और इससे जुडी किवदंतीअपने में एक बहुत ही रोचक दास्तां समेटे हुए है। पौराणिक मान्यता केअनुसार, एक बार देवी सती अपने पिता द्वारा किये जा रहे महान यज्ञ में शामिलहोने जा रही थी तब उनके पति भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया।इसी बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया और देवी सती बिना अपने पति शिव कीआज्ञा लिए हुए उस यज्ञ में चली गयी। जब देवी सती उस यज्ञ में पहुंची तोवहां उनके पिता दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का घोर अपमान किया गया।अपने पिता के द्वारा पति के अपमान को देवी सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ केहवन कुंड में ही कूदकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी। जब ये बातभगवान शिव को पता चली तो वो बहुत ज्यादा क्रोधित हुए और उन्होंने दक्षप्रजापति से प्रतिशोध लेने का निर्णय किया और उस स्थान पर पहुंचे जहां येयज्ञ हो रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी के मृत शरीर को निकालकर अपने कंधे मेंरखा और अपना विकराल रूप लेते हुए तांडव शुरू किया। भगवान शिव के गुस्से कोदेखते हुए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा जिससे देवी के शरीर केकई टुकड़े हुए जो कई स्थानों पर गिरे जिन्हें शक्ति पीठों के नाम से जानाजाता है। बताया जाता है कि देवी सती की गर्भ और योनि यहां आकर गिरे है औरजिससे इस शक्ति पीठ का निर्माण हुआ है।
एक किवंदती यह भी है कि एक बार एक श्राप के चलते काम देव ने अपना पौरुष खो दियाजिन्हें बाद में देवी शक्ति के जननांगों और गर्भ से ही इस श्राप से मुक्तिमिली। तब से ही यहाँ कामाख्या देवी की मूर्ति को रखा गया और उसकी पूजा शुरूहुई। कुछ लोगों का ये भी मानना है की ये वही स्थान हैं जहां देवी सती औरभगवान शिव के बीच प्रेम की शुरुआत हुई। संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहाजाता है अतः इस मंदिर का नाम कामाख्या देवी रखा गया।देवी जिनसे होता है रक्त का प्रवाहकामाख्या देवी को बहते हुए खून की देवी भी कहा जाता है यहां देवी के गर्भऔर योनि को मंदिर के गर्भगृह में रखा गया है जिसमें जून के महीने में रक्तका प्रवाह होता है। यहां के लोगों में मान्यता है की इस दौरान देवी अपनेमासिक चक्र में होती है और इस दौरान यहां स्थित ब्रह्मपुत्र नदी लाल होजाती है। इस दौरान ये मंदिर 3 दिन बंद रहता है और इस लाल पानी को यहां आनेवाले भक्तों के बीच बांटा जाता है।इस स्थान कि एक दिलचस्प बात ये भी है कि यहां इस बात का कोई पौराणिक याऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि देवी के रक्त से ही नदी लाल होती है। यहां रक्तके सम्बन्ध में कुछ लोगों का ये भी कहना है कि इस समय नदी में मंदिर केपुजारियों द्वारा सिन्दूर डाल दिया जाता है जिससे यहां का पानी लाल प्रतीतहोता है।

 इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देशभर के माता भक्त तथा तांत्रिक और अघौरी हिस्‍सा लेते हैं। ऐसी मान्यता है किअम्बुबाची मेलेके दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और इन तीन दिनमें योनि  कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है  ‘अम्बुबाची मेलेको कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।मां कामाख्या देवी की रोजाना पूजा के अलावा भी साल में कई बार कुछ विशेषपूजा का आयोजन होता है। इनमें पोहन बिया,  दुर्गाडियूल, वसंती पूजा, मडानडियूल,  अम्बूवाची और मनसा दुर्गा पूजा प्रमुख हैं।




 

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