सूर्य भगवान के उत्तरायण होने के साथ देवलोक में शुरू होता है दिन

Jan 14, 2024

खरी खरी डेस्क

मकर संक्रांति को भारत के प्रमुख हिंदू पर्वों में माना जाता है। यह पर्व देश भर में अलग अलग नामों से अलग अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है, लेकिन सभी की मान्यता एक ही है कि सूर्य देवता के उत्तरायण होने पर यह पर्व मनाया जाता है। उत्तरायण का सामान्य अर्थ है उत्तरी भाग। सूर्य पूरे साल में उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में भ्रमण करते हें। जब सूर्य दक्षिण से उत्तर की और संचार करने लगते हैं तो धरती पर उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़ा होने लगता है और रात छोटी होने लगती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं और यहां से दिन बड़ा होने लगता है। ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक संचार करते हैं तब तक सूर्य उत्तरी गोलार्ध में होते हैं और जब सूर्य कर्क से धनु राशि में होते हैं तब दक्षिणी गोलार्ध में होते हैं। यानी सूर्य के मकर से मीन तक संचार करने के समय तक उत्तरायण होता है और कर्क से धनु तक संचार करने के समय दक्षिणायन होता है।

देवलोक में होता है दिन का आरंभ

सूर्य जब मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण होते हैं तब ऐसा माना जाता है कि देवलोक में दिन का आरंभ हुआ है। प्रकृति में नई जान आ गई है। शीत ऋतु में जो जीव ठंड से ठिठुर रहे थे वह नई ऊर्जा महसूस कर रहे हैं। धार्मिक दृष्टि से उत्तरायण होने पर स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं और इस समय देह त्याग कर गए जीवों को स्वर्ग में प्रवेश मिलता है। जबकि कृष्ण पक्ष में मृत्यु को प्राप्त हुए जीवों को फिर से अपने कर्मों का फल भोगने के लिए पृथ्वी पर आना होता है। महाभारत काल की एक घटना का इस संदर्भ में उल्लेख किया जाता है कि भीष्म बाणों की शैय्या पर अपार कष्ट भोग रहे थे। मृत्यु उनकी इच्छा के अधीन थी, फिर भी उन्होंने अपनी देह का त्याग नहीं किया। वह सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते रहे। मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य उत्तरायण हुए यानी उत्तरी गोलार्ध में आए तब भीष्म ने भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुए देह का त्याग किया। इसलिए ऐसी मान्यता है कि जो लोग मकर संक्रांति के दिन शरीर त्याग करते हैं उन्हें फिर जन्म-मरण के चक्र में उलझना नहीं पड़ता है।

देश भर में अलग अलग नाम

सूर्य के उत्तरायण होने के पर्व को देश के अलग-अलग भागों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। मध्यप्रदेश सहित मध्य भारत के बड़े हिस्से में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। गुजरात में उत्तरायण के नाम से ही जाना जाता है। उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश में इसे मकर संक्रांति और खिचड़ी पर्व के नाम से लोग जानते हैं। जबकि असम में इस पर्व को बिहू और दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से उत्साह पूर्वक मनाते हैं। उत्तरायण पर्व के नाम भले ही सभी जगह अलग हैं लेकिन सभी में एक बात सामान्य है कि इसमें सूर्य देव की पूजा होती है और उन्हें तिल, गुड़, चावल से बने व्यंजनों का भोग अर्पित किया जाता है।