सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- इलेक्टोरल बांड गैरकनूनी
खरी खरी संवाददाता
नई दिल्ली, 15 फरवरी। नए लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े देश की सर्वोच्च अदालत ने राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदा देने के लिए जारी होने वाले इलेक्टोरल बांड को गैर कानून बताते हुए ऱद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है। इससे सत्तारूढ़ बीजेपी को ज्यादा नुकसान की आशंका जताई जा रही है क्योंकि सबसे अधिक चंदा बीजेपी को ही मिल रहा था। चुनाव में ख़र्चों और पारदर्शिता पर नज़र रखने वाली संस्था असोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में कॉर्पोरेट डोनेशन का 90 फ़ीसदी बीजेपी को मिला।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की बेंच ने यह फ़ैसला सुनाया है। इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र हैं। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीक़ा इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है. इसके और भी कई विकल्प हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा.
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले की जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने तारीफ़ की है। प्रशांत भूषण ने कहा कि इस फ़ैसले से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मज़बूती मिलेगी।प्रशांत भूषण ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड मामले में एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया, जिसका हमारे लोकतंत्र पर लंबा असर होगा. कोर्ट ने बॉण्ड स्कीम को ख़ारिज कर दिया है. इस स्कीम में ये नहीं पता लगता था कि किसने कितने रुपए के बॉन्ड ख़रीदे और किसे दिए।''सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है. इसे लेकर जो संशोधन किया गया था, जिसके तहत कोई कंपनी, किसी भी राजनीतिक दल को कितना भी पैसा दे सकती हैं, कोर्ट ने वो भी रद्द कर दिया है।''प्रशांत भूषण ने कहा, ''कोर्ट ने कहा कि ये चुनावी लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है, क्योंकि ये बड़ी कंपनियों को लेवल प्लेइंग फ़ील्ड ख़त्म करने का मौक़ा देती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी पैसा इस स्कीम के तहत जमा किया गया है, वो भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को दे और आयोग की तरफ़ से इसकी जानकारी आम लोगों को मुहैया कराई जाएगी.''
इलेक्टोरल बॉन्ड के ख़िलाफ़ जो याचिकाएँ दायर की गई थीं, उनमें कहा गया था कि यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के ख़िलाफ़ है। चुनाव में ख़र्चों और पारदर्शिता पर नज़र रखने वाली संस्था असोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में कॉर्पोरेट डोनेशन का 90 फ़ीसदी बीजेपी को मिला। साल 2022-23 में राष्ट्रीय पार्टियों ने 850.438 करोड़ रुपए चंदा में मिलने की घोषणा की थी। इसमें केवल बीजेपी को 719.85 करोड़ रुपए मिले थे और कांग्रेस को 79.92 करोड़ रुपए।