सीएम साब.. चेहरे बदलने से व्यवस्था बदले तब तो कोई बात है
सुमन
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी कैबिनेट के पुनर्गठन में नए चेहरे शामिल करने के साथ साथ विभागों के बंटवारे में भी सबको चौंकाया है। दो वरिष्ठ मंत्रियों बाबूलाल गौर सरताज सिंह की छुट्टी करने के साथ ही संजय पाठक, विश्वास सारंग जैसे युवा चेहरों को मौका दिया गया है। कैबिनेट में संजय पाठक और सूर्यप्रकाश मीणा जैसे चेहरों को शामिल करने का फैसला एकदम चौंकाने वाला था। वहीं राज्यमंत्रियों की संख्या 9 कर देना और पहले से कैबिनेट में शामिल किसी राज्यमंत्री को प्रमोट न करना भी राजनीतिक विश्लेषकों के साथ साथ सत्तारूढ नेताओं को भी चौंकाने वाला था। इसके बाद विभागों के बंटवारे में सीएम ने सब को चौंका दिया। सभी नौ राज्यमंत्रियों को एक एक विभाग का स्वतंत्र प्रभार दे दिया। इसका अनुमान भी किसी को नहीं था। इससे कवायद से एक बात फिर साबित हुई है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सुनते सब की हैं और करते सिर्फ अपने मन की हैं।
मुख्यमंत्री ने विभागों के बंटवारे में नया प्रयोग करके चेहरे बदलने की कोशिश की है। लेकिन सवाल उठ रहा है कि क्या चेहरों को बदलने से व्यवस्था बदल जाएगी। जिन मंत्रियों के पास से बड़े विभाग लिए गए हैं, उन्हें पहले भी सीएम के भरोसे पर खरा उतरने की उम्मीद के चलते बड़े विभाग दिए गए थे। करीब ढाई साल में विभागों की हालत क्या हुई किसी से छिपा नहीं है। फिर इनमें से कई मंत्रियों को दूसरा महत्वपूर्ण विभाग दे दिया गया। रामपाल सिंह के पास राजस्व जैसा बड़ा विभाग था, लेकिन परफारमेंस बहुत ही बेकार रही। उनसे वह विभाग लेकर लोक निर्माण जैसा और बड़ा तथा महत्वपूर्ण विभाग दे दिया गया। इसी तरह हेल्थ विभाग नरोत्तम मिश्रा से लेकर उन्हें जल संसाधन विभाग दे दिया गया है। शायद इसी उम्मीद के साथ दिया गया है कि वे इसमें मन से काम करेंगे, लेकिन उनका मन लोक निर्माण अथवा नगरीय प्रशासन जैसा विभाग लेने का था। वहीं नगरीय प्रशासन माया सिंह को दे दिया गया, जिनके पास महिला एवं बाल विकास था, जिसमें बीते ढाई साल में कोई क्रांतिकारी काम नहीं हुआ। भूपेंद्र सिंह ने सिंहस्थ में मुख्यमंत्री के कंधे से कंधा मिलाकर अच्छा काम किया। उन्हें ईनाम के तौर पर नगरीय प्रशासन विभाग मिलने की उम्मीद थी, लेकिन मिल गया गृह विभाग। इससे उनकी गिनती नंबर टू के स्थान पर होने लगेगी। लेकिन इससे विकासात्मक विभाग की चाह रखने वाले भूपेंद्र सिंह इस विभाग में कितना मन लगा पाएंगे, यह तो अब आने वाले वक्त ही बताएगा। उनके पास परिवहन पहले की तरह बना रहेगा, जिस वे विवाद का विभाग मानते हैं। उद्योग विभाग यशोधरा राजे से ले लिया गया है, यह तो ठीक माना जा सकता है लेकिन राजेंद्र शुक्ला इस विभाग को कितनी शिद्दत से चला पाएंगे, यह कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता है। हालांकि उनके उद्योग विभाग मिलने से मुख्यमंत्री की विभाग पर सीधी पकड़ बनी रहेगी और इसका लाभ राजेंद्र शुक्ल का परफारमेंस सुधरने में मिल सकता है। इसी तरह उमा शंकर गुप्ता, पारस जैन, विजय शाह जैसे दिग्गज मंत्रियों के विभाग बदलकर मुख्यमंत्री ने शासन तंत्र को ठीक करने की कोशिश की है। लेकिन चेहरे बदलने से अगर व्यवस्था बदलेगी तब कुछ बेहतर हो पाएगा।
इस बदलाव के बाद नौकरशाही की कार्यशैली में कितना बदलाव आएगी, इससे ही बदलाव की तस्वीर सामने आएगी। अगर अभी भी नौकरशाही अपनी स्टाइल में ही काम करती रही तो व्यवस्था में बदलाव की उम्मीद कम ही होगी। मध्यप्रदेश के बारे में सब जगह एक ही चर्चा है कि यहां नौकरशाही बेलगाम है, इसलिए बदलाव की कोशिश का बहुत असर नहीं पड़ता है। शायद अब ऐसा न हो क्योंकि मुख्यमंत्री की बदलाव की थ्योरी मिशन 2018 को ध्यान में रखकर बनाई गई है।