सीएम की सहजता पर भारी पड़ा मंत्रियों नेताओं का दंभ
खरी खरी संवाददाता
शिवराज सरकार की विदाई के साथ मध्यप्रदेश के सियासी इतिहास में ऐसा अध्याय जुड़ गया जिसके पन्ने आने वाले कई सालों तक खोल कर पढ़े जाते रहेंगे। कैसे एक सरकार सर्वाधिक वोट प्रतिशत पाने के बाद भी सत्ता से बाहर हो जाती है। कैसे जनता विपक्ष की भूमिका में आकर मीडिया का साथ लेकर सरकार को बाहर का रास्ता दिखा देती है।
शिवराज सिंह चौहान लगातार 13 सालों से ज़्यादा वक़्त तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इतने सालों तक मध्य प्रदेश की कमान किसी और के पास नहीं रही। इस बार भी बीजेपी को उम्मीद थी कि शिवराज सिंह चौहान का नेतृत्व कांग्रेस पर भारी पड़ेगा और बीजेपी लगातार चौथी बार सत्ता में आएगी। इस बात को लगभग सभी लोग मानते हैं कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के क़द का कांग्रेस में कोई नेता नहीं था। इतना कुछ होने के बावजूद भी आख़िर चौहान कहां चूक गए? कई लोगों का मानना है कि मध्य प्रदेश में यह चौहान की चूक नहीं है बल्कि यह जनादेश केंद्र सरकार की नोटबंदी और ग़लत नीतियों के ख़िलाफ है। परिणाम आने के बाद भी किसी ने शिवराज सिंह चौहान की बुराई नहीं की। सबने चौहान की तारीफ़ की और कहा कि नोटबंदी के कारण उनका नुक़सान हुआ है। नोटबंदी से आम लोग प्रभावित हुए हैं और जीएसटी से मध्यम वर्ग। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व के कारण ही बीजेपी को कांग्रेस से भी ज़्यादा वोट मिले। इसलिए विश्लेषक कह रहे हैं कि यह जनादेश शिवराज के चुनाव में मोदी के ख़िलाफ़ है। शिवराज सिंह चौहान के 13 सालों के शासन के ख़िलाफ़ लोगों में ग़ुस्सा होता तो दोनों पार्टियों में जीत का फ़र्क महज़ पाँच सीटों का नहीं होता। यहां तक कि कांग्रेस भी मानती है शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा नाराज़गी मोदी सरकार और उसकी नीतियों से थी।हालांकि बीजेपी ऐसा नहीं मानती है। बीजेपी का कहना है कि राज्य में जनादेश वहां की सरकार के पक्ष या ख़िलाफ़ में होता है और यह केंद्र की सरकार के आधार पर नहीं है।
मध्य प्रदेश में चुनाव के दौरान लोगों से बात करते हुए शिवराज सिंह के प्रति उनकी सहानुभूति छिपती नहीं थी। लोग उनके मंत्रियों की आलोचना करते थे, केंद्र सरकार की आलोचना करते थे लेकिन चौहान से सहानुभूति जताते थे। विश्लेषक भी इस बात से सहमत हैं कि यह जनादेश शिवराज के ख़िलाफ़ नहीं है बल्कि मोदी के ख़िलाफ़ है। अगर शिवराज के ख़िलाफ़ होता तो बीजेपी बुरी तरह से हारती। शिवराज प्रदेश में काफ़ी लोकप्रिय थे और उनकी लोकप्रियता में उस तरह से कोई कमी नहीं आई थी।
शिवराज सरकार कई लोकप्रिय योजनाओं के लिए भी जानी जाती हैं। यह सरकार लड़कियों के जन्म पर एक लाख रुपए का चेक देती है जिससे 18 साल की उम्र में पैसे मिलते हैं। ग़रीबों के घरों में किसी की मौत पर पांच हज़ार रुपए अंत्येष्टि के लिए देती है। सरकार सामूहिक शादियां कराती हैं और ख़र्च भी ख़ुद ही उठाती है। आदिवासी और दलितों के बीच सरकार की यह योजना काफ़ी लोकप्रिय हुई है। शिवराज अपनी विनम्रता के लिए जाने जाते हैं और सत्ता से विदाई भी उन्होंने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को बधाई देते हुए ली। इसलिए सियासी गलियारों में यही कहा जा रहा है कि यह न तो शिवराज सरकार की हार है और न की कमलनाथ की कांग्रेस की जीत...यह मोदी सरकार की नीतियों की हार है। साथ शिवराज सरकार के मंत्रियों के दंभ की हार है और उसे कांग्रेस ने नहीं जनता ने हराया है।