सवर्ण समाज के संग्राम से सियासी संकट में बीजेपी
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 6 सितंबर। एस्ट्रोसिटी एक्ट के मुद्दे पर सवर्ण समाज के आंदोलन ने चौथी बार सत्ता में आने की तैयारी में जुटी भाजपा को बड़े सियासी संकट में डाल दिया है। इस मुद्दे पर देश व्यापी बंद के दौरान मध्यप्रदेश में स्थितियां पहले जैसी नहीं बिगड़ी लेकिन भाजपा संगठन और सरकार दोनों के माथे पर पसीना आ गया। ऐसे में कांग्रेस के नेताओं की खामोशी या फिर सवर्णों की मांग का समर्थन बीजेपी के लिए और मुश्किल खड़ी कर रहा है।
मध्यप्रदेश में शायद सत्तारूढ़ भाजपा के लिए समय प्रतिकूल होता जा रहा है। सत्ता में वापसी के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कवायदें परवान चढ रही थीं, कांग्रेस इनकी कोई काट नहीं ला पर रही थी, ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के फैसले ने पूरा माहौल बिगाड़ दिया। कल तक फ्रंट फुट पर चल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भी बैकफुट पर आना पड़ रहा है। वे भरोसा दिलाने की कोशिश में जुटे हैं कि उनकी सरकार किसी के भी साथ अन्याय नहीं होने देगी।
मध्यप्रदेश की सत्ता में पंद्रह साल बाद वापसी के लिए पूरी ताकत के साथ हाथ-पांव मार रही कांग्रेस भी तक दौड़ में पीछे थे। अब इस गर्म मुद्दे की कश्ती पर सवार होकर वहक सियासी दरिया को आसानी से पार करने की कोशिश में जुट गई है। वह खामोश रहकर भी इस मुद्दे को कैश करने की कवायद में जुटी है। भाजपा भले ही सब कुछ ठीक होने का दावा कर रही है लेकिन पार्टी के अंदरूनी घबड़ाहट साफ समझ में आ रही है। पार्टी ने आनन फानन में नया दांव खेलते हुए पार्टी के वरिष्ठ सांसद प्रहलाद पटेल को समन्वय की भूमिका सौंप दी। इसके बाद भी भाजपा के माथे से चिंता की लकीरें नहीं हट रही हैं। समन्वयक बनाए गए प्रह्लाद पटेल खुद ऊहापोह की स्थिति में दिखाई पड़ रहे हैं।
सवर्ण आंदोलन से पशोपेश में पड़ी सरकार के लिए यह थोड़ी राहत वाली बात रही है कि भारत बंद के दौरान में मध्यप्रदेश मे कहीं स्थितियां बदतर नहीं हुई। इसके पहले एससीएसटी आंदोलन के दौरान जिस चंबल इलाके में आंदोलन हिंसक हो गया था, वहां भी शांति बनाए रखने में सरकार सफल रही। इसे लेकर सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है।
बंद का दिन भले ही शांतिपूर्वक गुजर गया लेकिन तूफान अभी शांत नहीं हुआ है। भाजपा का वोट बैंक कहने जाने वाले सवर्ण समाज की नाराजगी सरकार को महंगी पड़ सकती है।