सरकार और संगठन के मतभेद में फंस गईं बीजेपी की विदिशा गुना सीटें
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 27 अक्टूबर। भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में टिकट बांटने में कांग्रेस को भले ही मात दी हो, लेकिन दो सीटों गुना और विदिशा में अभी तक टिकट फाइनल न होने से पार्टी की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं। भाजपा का गढ़ कही जाने वाली दोनों सीटों पर सरकार और संगठन के बीच मतभेद के चलते टिकटों का पेंच फंस गया है।
बीजेपी ने मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से 228 पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। इन सीटों के प्रत्याशी घोषित करने में पार्टी को कहीं कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन शेष बची दोनों सीटों विदिशा और गुना के प्रत्याशी फाइनल करने मे पार्टी को पसीना आ रहा है। विदिशा से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी 2013 के चुनाव में प्रत्याशी रह चुके हैं। विदिशा और बुधनी दोनों जगह से चुनाव जीतने के बाद सीएम शिवराज सिंह ने विदिशा सीट छोड़ दी थी। विदिशा वैसे भी उनका गढ़ है क्योंकि वे विदिशा संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान के अलावा अटल बिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज नेता भी विदिशा से सांसद रहे हैं। इसलिए विदिशा को बीजेपी का अभेद्य गढ कहा जाता है। विदिशा का टिकट फाइनल करने में जो राजनीति आज आड़े आ रही है, वही 2018 में भी आई थी। इसी के चलते 46 साल बाद 2018 में कांग्रेस के शशांक भार्गव ने बीजेपी के इस मजबूत किले पर कांग्रेस का परचम फहरा दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विदिशा में पेंच सरकार और संगठन में फंस गया है। सरकार मतलब सीएम शिवराज सिंह यहां से अपने खासमखास मुकेश टंडन को टिकट देना चाहते हैं, जो 2018 में चुनाव हारे थे। वहीं संगठन मतलब पार्टी श्याम सुंदर शर्मा का टिकट चाहती है, जो संघ से जुड़े हैं। इन दोनों के बीच जातीय समीकरणों के चलते जीत सकने वाले दो प्रत्याशियों तोरण सिंह दांगी और ज्योतिशाह भी प्रबल दावेदार हैं। इनमें ज्योति शाह पूर्व वित्त मंत्री और कद्दावर नेता राघव जी भाई की बेटी हैं।
बीजेपी की जो दो सीटें प्रत्याशी फाइनल होने के लिए शेष हैं, उनमे गुना भी शामिल है। सिंधिया के प्रभुत्व वाली गुना सीट कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह के गृह जिले में आती है। संघ और बीजेपी की पृष्ठभूमि वाली इस सीट पर इस बार समीकरण अलग हैं क्योंकि सिंधिया अब भाजपा में हैं। सिंधिया समर्थक और बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता अपनी-अपनी दावेदारी कर रहे हैं। पिछली बार यहां गोपीलाल जाटव विधायक थे। इस बार भी वे प्रमुख दावेदार हैं लेकिन सिंधिया का पेंच फंस गया है। गोपीलाल ने पिछले राज्यसभा चुनाव में गलती से कांग्रेस के प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के पक्ष में वोट कर दिया था। सिंधिया के दिमाग से गोपीलाल की यह गलती अभी तक बिसरी नहीं है क्योंकि वह वोट सिंधिया को मिलना था। एक वोट के चलते सिंधिया की हारजीत पर कोई असर नहीं पड़ा लेकिन सिंधिया के मन में फांस गड़ गई और अब वही फांस गोपीलाल के टिकट में बड़ी बाधा बन रही है। ऐसे में पन्नालाल शाक्य का नाम आगे किया जा रहा है। शाक्य भी मूलतः बीजेपी के हैं और 2013 में विधायक रह चुके हैं। माना जा रहा है कि सिंधिया गोपीलाल के बजाय शाक्य के नाम पर सहमत हो जाएंगे। यह पेंच खत्म होते ही गुना की सीट पर नाम घोषित हो सकता है।