समारोह में तीन दिन तक दिखाई गई एक जैसी जनजातीय धरोहर

Aug 30, 2019

सुमन त्रिपाठी

भोपाल, 30 अगस्त। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में चल रहे जनजातीय समाज के पारंपरिक नृत्यों और व्यंजनों पर एकाग्र समारोह 'धरोहर' में बीते चार दिनों से एक जैसी धरोहर का प्रदर्शन किया जा रहा है। समारोह में नृत्यों का प्रदर्शन प्रतिदिन दोहराया जा रहा है, क्योंकि इन्हें प्रस्तुत करने वाली मंडलियों और कलाकारों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। दावा देश कि विभिन्न अंचलों की जनजातियों के पारंपरिक नृत्यों के समारोह का था लेकिन प्रस्तुत मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों की हो रही है। छत्तीसगढ़ की एक मंडली नृत्य प्रदर्शन कर रही है।

मप्र शासन के संस्कृति विभाग के उपक्रम मप्र संस्कृति परिषद से सम्बद्ध आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वारा इस 6 दिवसीय समारोह का आयोजन किया गया है। इसका उदघाटन 27 अगस्त को संस्कृति मंत्री विजयलक्ष्मी साधौ और संस्कृति सचिव पंकज राग ने किया था। समारोह का उद्देश्य जनजातीय समाज की उन धरोहरों से आमजन को रूबरू कराना है जो पीढ़ी दर पीढ़ी समाज की परंपराओं और संस्कृति को जीवंत बनाए हैं। इन धरोहरों में नृत्य और व्यंजनों को प्रमुख माना जाता है। आयोजकों का दावा था इस समारोह में कला रसिक विभिन्न प्रदेशों की जनजातियों जैसे मध्यप्रदेश की बैगाकोरकूभील और गौंडगुजरात की सिद्धी एवं रवारी और छत्तीसगढ़ की रजवार जनजातीय के नृत्य का आनंद ले सकेंगे।  इसके साथ ही साथ मध्यप्रदेशछत्तीसगढ़गुजरातअरुणाचल प्रदेशत्रिपुरा और झारखण्ड के पारम्परिक व्यंजनों पर केंद्रित 'व्यंजन मेलाका भी आयोजन किया जा रहा। व्यंजनों में तो एकरूपता आम बात है लेकिन नृत्य प्रस्तुतियों में भी प्रतिदिन एक जैसी प्रस्तुतियां आयोजन के उद्देश्य और आयोजकों के दावों पर सवाल खड़े करती हैं।  

आयोजन के पहले दिन मप्र की बैगा जनजाति का पारंपरिक नृत्य करमा का प्रदर्शन डिंडौरी के अर्जुन सिंह दुर्वे ने अपने साथियों के साथ किया। अर्जुन सिंह दुर्वे की मंडली ने ही बैगा जनजाति का 'फाग नृत्य' भी प्रस्तुत किया। एमपी की भील जनजाति का भगोरिया नृत्य धार के कैलाश सिसोदिया की मंडली ने पेश किया। छत्तीसगढ़ की रजवार जनजाति का करमा नृत्य और सैला नृत्य सरगुजा के पंडित राम की मंडली ने प्रस्तुत किया। दूसरे दिन भी रजवार जनजाति का सैला और करमा, बैगा जनजाति का करमा और फाग नृत्य तथा भील जनजाति का भगोरिया नृत्य प्रस्तुत किया गया। तीसरे दिन रजवार का सैला नृत्य, बैगा का फाग नृत्य और भील जनजाति का भगोरिया नृत्य प्रस्तुत किया गया। हर दिन नृत्य प्रस्तुत करने वाली मंडली और कलाकार वही थे।

इस तरह तीन दिन तक धरोहर के नाम पर एक जैसे नृत्यों की प्रस्तुति की जाती रही। मप्र और छत्तीसगढ के अलावा अन्य प्रदेशों की जनजातियों के पारंपरिक नृत्यों की झलक देखने को नहीं मिली।