सप्रे संग्रहालय में बुंदेलखंड पर्व का आयोजन, क्षेत्र के विकास पर जताई गई चिंता
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। पृथक बुंदेलखंड की मांग जनता की आवाज नहीं बन पाई, इसलिए यह मांग पूरी नहीं हो पाई। अगर बुंदेलखंड को पृथक राज्य का दर्जा मिलता तो बुंदेलखंड अपने साथ मध्यप्रदेश के विकास में भी सहायक होता, क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों तथा पर्यटन की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत संपन्न है। बुंदेलखंड को समग्रता में समझा जाए तभी उसकी संस्कृति को सही तरह से समझा जा सकेगा। कुछ इस तरह के विचार माधव राव सप्रे संग्रहालय में शनिवार को आयोजित बुंदेलखंड पर्व के अवसर पर हुए बहुआयामी विमर्श में उभर कर आए। इस अवसर पर बुन्देली संस्कृति, साहित्य और परम्परा के गंभीर अध्येता अयोध्याप्रसाद गुप्त कुमुद का अमृत जयंती पर अभिनन्दन किया गया तथा अमृत अभिनन्दन प्रसंग पर प्रकाशित बुन्देलखण्ड समग्र ग्रन्थ का विमोचन भी किया गया।
सप्रे संग्रहालय के सभागार में दो चरणों में हुए इस कार्यक्रम के पहले चरण में अभिनंदन तथा ग्रंथ का विमोचन किया गया। जबकि दूसरे चरण में बुंदेलखंड से जुड़े चार विषयों पर विशेषज्ञों के व्याख्यान हुए।
अभिनंदन और ग्रंथ विमोचन
पहले चरण में वरिष्ठ कहानीकार डा गोविंद मिश्र की विशेष मौजूदगी में बुन्देली संस्कृति साहित्य और परम्परा के गंभीर अध्येता अयोध्याप्रसाद गुप्त कुमुद का उनके द्वारा बुंदेलखंड पर किए गए कार्यों के लिए अभिनंदन किया गया। उनकी इस यात्रा में सहभागी रहीं उनकी धर्मपत्नी रानी गुप्त को भी सम्मानित किया गया। इसी क्रम में बुन्देलखण्ड समग्र ग्रन्थ के संपादक हरिविष्णु अवस्थी को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र में इतिहासकार शंभुदयाल गुरु तथा ग्रंथ के संपादक हरि विष्णु अवस्थी विशेष रूप से उपस्थित रहे। सत्र के मुख्य अतिथि डा. गोविंद मिश्र ने बुंदेलखंड में बचपन में बिताए अपने समय को याद करते हुए कहा कि संस्कृति को पूरी तरह परिभाषित नहीं किया जा सकता। इसके रूप बताए जा सकते हैं। ग्रंथ के संपादक हरि विष्णु अवस्थी ने संपादन के दौरान हुए अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग जनता की मांग नहीं बन पाई यदि ऐसा होता तो बुंदेलखंड राज्य बन सकता था। स्वागत वक्तव्य देते हुए संग्रहालय के अध्यक्ष राजेन्द्र हरदेनिया ने बताया कि कुमुद जी ने अपना बहुमूल्य साहित्य संग्रह सप्रे संग्रहालय को भेंट किया है। यह संग्रहालय के जनपदीय कक्ष में संजोई जाएगी इसका लाभ अध्येता एवं शोधार्थी ले सकेंगे। सत्र का संचालन ममता यादव ने बुंदेली भाषा में ही किया।
बुंदेलखंड के पहलुओं पर विमर्श
कार्यक्रम के दूसरे चरण में बुंदेलखंड के विभिन्न आयामों से जुड़े पहलुओं पर विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। लोक संस्कृति मर्मज्ञ डा. कपिल तिवारी ने बुन्देली संस्कृति पर अपने विचार रखते हुए कहा कि बुंदेलखंड को समझने के लिए वहां के समाज को समग्रता में समझना होगा तभी सही तरीके से हम उसकी संस्कृति समझ पाएंगें। उन्होंने इस बात पर भी दुरूख जताया कि बुंदेलखंड के विकास के जो सपने थे वे राजनीति ने धूल-धुसरित कर दिए। जो चेतना जरूरी थी अब उसकी कमी दिखाई दे रही है। साहित्यकार ध्रुव शुक्ल ने बुन्देली साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि बुंदेलखंडी साहित्य बारहमासी है। यहां की परंपरा, तीज-त्यौहारों पर लिखा जाता रहा है। बुन्देलखण्ड का आर्थिक सामर्थ्य और संभावनाएं विषय पर बोलते हुए टीवी पत्रकार राजेश बादल कहा कि यदि आजादी के बाद या राज्य पुर्नगठन के समय इसे पृथक राज्य का दर्जा दिया जाता तो यह अंचल अपने विपुल संसाधनों से न केवल अपना विकास करता बल्कि मध्यप्रदेश का विकास भी करता। वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने बुंदेलखंड को पृथक राज्य का दर्जा दिलाने के लिए यहां के राजनेताओं में जुझारुपन नहीं दिखाई दिया। विकास के नाम पर भी यही स्थिति रही, इसलिए अपने भीतर तमाम संभावनाओं के बाद भी यह अंचल पिछड़ गया।
कार्यक्रम के संयोजक सप्रे संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन के उद्येश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसके पीछे बुंदेलखंड को पृथक राज्य बनाने के लिए राजनीतिक अभियान चलान उद्देश्य नहीं बल्कि एक जनचेतना जगाना है। विमर्श का सार वक्तव्य डा. प्रभुदयाल मिश्र ने दिया। सत्र का संचालन पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने किया। दोनों ही सत्रों में शहर के प्रबुद्धजन तथा बुंदेलखंड अंचल से जुड़े लोग बड़ी संख्या उपस्थित रहे।
किताबों का विमोचन---कार्यक्रम में हरि विष्णु अवस्थी की किताब जल प्रबंधन-बुंदेलखंड की पारंपरिक जल संभावनाएं तथा वरिष्ठ कवि आशाराम त्रिपाठी के काव्य संकलन चौकडिय़ा की मडिय़ा का विमोचन किया गया।