शेख हसीना के बारे में भारत सरकार जल्द लेगी कोई पैसला
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 21 अक्टूबर। बांग्लादेश की निर्वासित प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत में लंबे समय तक अतिथि के रूप में रखने के मुद्दे पर अभी कुछ भी तय नहीं हो पाया है। बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने मौजूदा पृष्ठभूमि में बीते 17 अक्तूबर को ‘फरार’ शेख हसीना के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है। बांग्लादेश सरकार ने भी कहा है कि वो इस निर्देश को लागू करने की लिए शीघ्र कदम उठाएगी। इसलिए शेख हसीना की भारत में मौजदूगी को स्थायी करने पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
शेख हसीना के खिलाफ गिरफ्तारी वांरट और उसकी तामीली को लेकर भारत को अभी तक बांग्लादेश से कोई सूचना नहीं मिली है।अगर निर्धारित समयसीमा यानी एक महीने के भीतर इस वारंट की तामील करनी है तो माना जा सकता है कि बांग्लादेश की सरकार जल्दी ही लिखित रूप से भारत से शेख हसीना को सौंपने की मांग भी उठाएगी। हालांकि इस बारे में पूछने पर भारत सरकार ने उस दिन यानी 17 अक्तूबर को कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया था। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने सिर्फ इतना ही कहा था, “हमने भी ऐसी रिपोर्ट देखी है. लेकिन फिलहाल हमारे पास इस मुद्दे पर कहने के लिए कुछ नहीं है। वहीं दिल्ली के कई पूर्व कूटनयिकों और विश्लेषकों ने कहा है, "यह बात तय है कि दोनों देशों के बीच हुई प्रत्यर्पण संधि के तहत अगर शेख हसीना को वापस भेजने का अनुरोध आता है तो भारत किसी भी स्थिति में उसे स्वीकार नहीं करेगा और जरूरत पड़ी को हजारों दलीलें देकर इस मामले को बरसों तक लटकाए रखेगा।" औपचारिक रूप से राजनीतिक शरण देना ही प्रत्यर्पण का अनुरोध ठुकराने का एकमात्र रास्ता नहीं हैं, इसके कई और भी तरीके हैं.
सीधे शब्दों में कहें तो शेख़ हसीना को राष्ट्रीय अतिथि के तौर पर भारत में रख कर भी प्रत्यर्पण का अनुरोध खारिज करना संभव है।इसी वजह से दिल्ली में पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि शेख़ हसीना को किसी दर्जे के आधार पर रखा गया है। अहम बात यह है कि भारत उनको लंबे समय तक यहां रखने के लिए तैयार है। ढाका में भारत की पूर्व उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास कहती हैं, “बड़ी बात यह नहीं है कि वो अतिथि के तौर पर रहती हैं या उनको शरण मिलती है। बड़ी बात यह है कि उनको समुचित सम्मान के साथ भारत में रखा जा रहा है या नहीं। उनका कहना था, "अंग्रेजी में कहावत है 'ए रोज़ इज़ ए रोज', यानी गुलाब को चाहे जिस नाम से पुकारें, रहेगा तो वह गुलाब ही। ठीक उसी तरह शेख़ हसीना भारत में शरण लेकर रहें या अतिथि के तौर पर, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भारत की निगाह में वो शेख हसीना ही रहेंगी।" शायद यही इस समय भारत में शेख़ हसीना की स्थिति का सबसे बड़ा सच है।