वक्त ने गोपीचंद को राजा से रंक बना दिया: माच शैली में नाटक का मंचन

Mar 01, 2019
 
 
 
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। एक कहावत तो सुनी होगी कि वक्त राजा से रंक और रंक से राजा कब बना दे नहीं पता। कुछ इसी तरह की कहावत राजा गोपीचंद के साथ चरितार्थ होती है, जिन्हें अचानक राजा से सन्यास ग्रहण करना पड़ता है। जिसमें उनकी मां पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नतें मांगती हैं और वह मन्नत पूरी होती है लेकिन एक शर्त के साथ। इन्हीं कुछ खास रहस्यों को उजागर करता मालवा की नाट्य शैली ‘माच’ रूप में लोक नाटक ‘राजा गोपीचंद’ का मंचन प्रखर सक्सेना के निर्देशन में जवाहर बाल भवन में किया गया। इस नाटक को गुरू राधाकिशन ने लिखा है।
लोक नाटक की कहानी-
इस लोक नाटक की कहानी उज्जैन के पास धार नगर के राजा के आस-पास घूमती है। जिसके अनुसार राजा गोपीचंद की पत्नी रानी रत्नादे के अलावा 1600 अन्य रानियां हैं साथ ही माता मेनावती और खास सेनापति अभय सिंह भी हैं। एक दिन राजा गोपीचंद की सवारी शिकार और आखेट के बाद महल लौटती है, वे भोजन करने ही वाले होते हैं कि उनकी मां द्वारा बुलावा आ जाता है। माता के सामने उपस्थित होने पर राजा को सन्यास ग्रहण करने का आदेश मां से प्राप्त होता है। कारण पूछने पर मां के द्वारा भेद खोला जाता है कि उन्हें संतान न होने पर गुरू गोरखनाथ के गुरू भाई गुरू जालिन्दर नाथ से प्रार्थना की थी साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भिक्षा ली थी। भिक्षा देते समय गुरू जालिन्दर नाथ ने 25वें वर्ष में संतान उन्हें सौंपे जाने की शर्त रखी थी और उस भिक्षा के रूप में राजा गोपीचंद का जन्म हुआ। यह सुन राजा गोपीचंद गुरू जालिन्दर नाथ की शरण में चले जाते हैं। नाथ संप्रदाय के नियमानुसार गोपीचंद के कान छिदवाए जाते हैं उसमें से खून की जगह दूध की धारा बहती है। बाद में गुरू जालिन्दर नाथ राजा को महल में जाकर 1600 रानियों से माता पुकार कर भिक्षा लाने के लिए कहते हैं। राजा महल जाकर रानियों से भिक्षा ले वापस गुरू के पास आते हैं। गुरू उनके इस कार्य से प्रसन्न होकर उनकी काया को अमर कर देते हैं, राजा सारा जीवन सन्यासी रूप में व्यतीत करते हैं। 
मंच पर-
इस माच शैली में नाटक को अभिनीत करने वालों में राजा गोपीचंद के गेटअप में पुरुषोत्तम परमार, रानी रत्नादे व फर्रासन सोमेश्वर गहलोद, मेनावती व दासी- लीलीधर, सिंह- मिलिंद दाभाड़े, सिंहनी- राजेश सांवरिया, मामा भर्तहरि- जानकीलाल गहलोद, अभय सिंह- गौरव त्रिवेदी, गुरू जालिन्दर नाथ- हीरालाल परमार प्रमुख थे। इनके अलावा भिस्ती व भर्तहरि के चेले- राजेंद्र परमार, संवाद सहायक- अनिल पांचाल, सिपाही व चेले- इमरान अली, संदीप दाहिया, विनय शुक्ल व सौरभ दास का अभिनय भी दर्शकों को बांधे रखने में सफल रहा।