मैदान के बाहर से नहीं हो सकता मुकाबला

Feb 23, 2017

                                                                                                        सुमन 'रमन'

मध्यप्रदेश की सत्ता पर तेरह साल से काबिज भाजपा सरकार को बेदखल करने के लिए कांग्रेस एक बार  फिर एकजुट हुई। लगभग तीन साल बाद कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता एक मंच पर दिखाई दिए। बड़े नेताओं की मौजूदगी के चलते कार्यकर्ताओं की फौज प्रदेश के तमाम हिस्सों से भोपाल आ गई। कार्यक्रम स्थल टीनशेड पर कार्यकर्ताओं ने जमकर गदर भी किया और यह संदेश देने की कोशिश की गई कि शिवराज सरकार को बेदखल करने के लिए कांग्रेस एकजुट है।
कांग्रेस और उसके नेताओं ने इस प्रदर्शन के बहाने जो चुनौती पेश करने की कोशिश की उसका असर कब तक बना रहेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है।

 कांग्रेस के दिग्गज एक दिन के लिए भोपाल आए और आपस में एकता दिखाने की कोशिश की तथा अपने समर्थकों के जोश भरे नारों के बीच विदा हो गए। सत्ता और सियासत की लड़ाई का मैदान शाम तक पूरी तरह खाली हो गया, जिसमें भाजपा अकेले ताल ठोंकने लगी। पूरे दिन कांग्रेस की दमदारी का बखान करने वाले नेता शाम को तब पलटवार करने की स्थिति में नहीं थे,  जब बीजेपी की तरफ से इस पूरे आंदोलन को ही विफल करार दे दिया गया। इस आंदोलन ने एक नया मुद्दा खड़ा कर दिया है। मध्यप्रदेश के जिस मैदान में सियासत की लड़ाई होनी है, वहां कांग्रेस के दिग्गज नेता कभी-कभार ही पहुंचेंगे, ऐसे में  उन शिवराज सिंह का मुकाबल कैसे हो सकता है जो साल के 365 दिनों में से लगभग 360 दिन अकेले ही मैदान  में नजर आते हैं और सियासत के अखाड़े में ताल ठोंकते हैं। कांग्रेस अपने जिन नेताओं के दम पर मिशन 2018 फतह करना चाहती है, उन नेताओं को दिल्ली से मध्य प्रदेश की दूरी तय करने में ही महीनों लग जाते हैं। मध्य प्रदेश आने पर भी वह अपने छोटे से इलाके में ही जिन्दाबाद के नारे लगवा कर चले जाते हैं। मध्यप्रदेश की सत्ता और सियासत के केंद्र भोपाल तक पहुंचने में इन नेताओं को सालों लग जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान भोपाल से प्रदेश के दूरदराज अंचलों की दूरी भी महीने में कई बार नाप लेते हैं। यही नहीं वह पार्टी के दिल्ली दरबार में बैठे दिग्गजों को भी किसी न किसी बहाने आए दिन मध्यप्रदेश ले आते हैं। नरेंद्र सिंह तोमर, उमा भारती, थावरचंद गहलोत, फग्गन सिंह कुलस्ते, अनिल माधव दवे जैसे केंद्रीय मंत्री आए दिन मध्यप्रदेश के सियासी मैदान में नजर आते हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तक के साल में तीन-चार चक्कर मध्यप्रदेश में लग ही जाते हैं।
सियासत की तस्वीर एकदम साफ है कि कांग्रेस मध्यप्रदेश की सत्ता को भाजपा से छीन लेना चाहती है, लेकिन वह एमपी के अखाड़े में प्रैक्टिस करने के बजाय दिल्ली के एयर कंडीशनर जिम में प्रैक्टिस करने वाले अपने पहलवानों की दम पर यह ख्बाव देख रही है। मध्यप्रदेश के अखाड़े में रोज ही प्रैक्टिस करने वाले भाजपा के पहलवान निश्चित ही दिल्ली के कांग्रेसी पहलवानों पर भारी पड़ेंगे। राजनीतिज्ञ विश्लेषकों का यह मानना है कि कांग्रेस को भाजपा की तर्ज पर ही काम करना होगा। दिल्ली का मोह न छोड़ पाने वाले नेताओं की दम पर सियासत की बाजी जीत पाना बहुत मुश्किल है। कांग्रेस को अपने दिग्गज नेताओं कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया आदि को या तो दिल्ली का मोह छोड़ कर मध्यप्रदेश में ही बैठाना होगा या फिर मध्यप्रदेश में बैठे नेताओं अरुण यादव, अजय सिंह, मुकेश नायक, गोविन्दसिंह, रामनिवास रावत, बाला बच्चन आदि को मध्यप्रदेश में इतना मजबूत करना पड़ेगा कि वे अपनी दम पर शिवराज और उनकी टीम का मुकाबला कर सकें। कांग्रेस के सारे क्षत्रप इसी मुद्दे पर सहमत नहीं हो पाते हैं। उन्हें लगता है  मध्यप्रदेश  के बड़े से बड़े नेता भी सिर्फ समर्थक का ही काम करें। कांग्रेस के दिग्गजों की इसी सोच के चलते प्रेम नारायण ठाकुर, चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, बालेन्दु शुक्ला, संजय पाठक,  नारायण त्रिपाठी, भागीरथ प्रसाद, राव उदय प्रताप सिंह जैसे नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए। कांग्रेस के दिग्गजों की सोच अभी भी नहीं बदल रही है। ऐसे में कांग्रेस बड़े से बड़ा प्रदर्शन करके भी भाजपा को सत्ता से बेदखल कर पाएगी इसमें संदेह है।

कांग्रेस न तो सियासत के सिद्धांतों का पालन कर रही है और न ही अखाड़ों की नीतियों को अपना रही है। अगर विरोधी से मुकाबला करना है तो उसी अखाड़े में उतरना पड़ेगा जहां विरोधी मौजूद है। वह सारे दांव-पेंच समझने पड़ेंगे, जो विरोधी पहलवानों के पास है। पिछले 11 साल में कांग्रेस ने शिवराज सिंह के खिलाफ तमाम बड़े मुद्दे उठाए। डंपर का मामला, इसके बाद व्यापम का मुद्दा और अब नर्मदा से अवैध उत्खनन। इन सारे मुद्दों के साथ ही शिवराज के परिवार का तथाकथित भ्रष्टाचार, बेखौफ होती प्रदेश की नौकरशाही और भाजपा विधायकों, नेताओं की बढ़ती दादागिरी जैसे मुद्दे लेकर भी शिवराज पर हमला किया जाता रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस जहां मिशन 2018 को लेकर अभी भी संशय में है, वहीं भाजपा और शिवराज मध्यप्रदेश में चौथी बार भाजपा सरकार का नारा बुलंद कर रहे हैं। कारण बहुत स्पष्ट है कि भाजपा और शिवराज कांग्रेस के हमलों का जबाव जनता के बीच में जाकर देते हैं। अभी भी कांग्रेस हवाई जहाज में बैठकर दिल्ली से भोपाल आने और सरकार को धमकी देकर चले जाने का सिलसिला नहीं बंद करेगी तो इन धमकियों और कार्यकर्ताओं की मेहनत तथा नेताओं की एकजुटता का कोई मायने  नहीं रह जाएगा।