मेघदूत:बैले नृत्य नाटिका में दिखी यक्ष की विरह वेदना
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। नामचीन कोरियोग्राफर स्वर्गीय प्रभात गांगुली की स्म़ति में शहीद भवन में आयोजित राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव धरोहर के तहत शनिवार को विख्यात बैले नृत्य नाटिका मेघदूत की प्रस्तुति हुई। महाकवि तुलसीदास की अमर काव्य कृति मेघदूतम् पर आधारित इस नृत्य नाटिका की प्रस्तुति कला समूह ग्वालियर के कलाकारों द्वारा की गई।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से कीर्ति बैले एवं परफार्मिंग आर्ट्स द्वारा पांच दिवसीय प्रभात गांगुली स्मृति समारोह धरोहर शहीद भवन में आयोजित किया जा रहा है। समारोह में नृत्य नाटिक मेघदूत की प्रस्तुत की गई। मेघदूत महाकवि तुलसीदास की प्रमुख कृतियों में से एक है। मेघदूत की कहानी के अनुसार यक्ष अपनी नई नवेली पत्नी के प्रेम में इतने खो जाता है कि वह अपने स्वामी कुबेर के कामों में भी लापरवाही करने लगता है। एक दिन वह कुबेर की पूजा के लिए ब्रह्म कमल लाना भूल जाता है तो कुबेर कुपित हो जाते हैं। वे नाराज होकर यक्ष को निवार्सन की सजा दे देते हैं। निवार्सन की सजा भुगतने यक्ष रामगिरि पर्वतों की ओर चले जाते हैं। वहां के आश्रमों में दिन काटते हुए यक्ष अपनी पत्नी की स्मृतियों में ही खोए रहते हैं। प्रेयसी की याद में उनका शरीर सूखने लगता है। इस बीच आषाढ़ का महीना शुरू हो जाता है और घनघोर घटाओं को देखकर तथा बादलों की गरज से उनका मन अपनी प्रियतमा के लिए तड़प उठता है।कुबेर देवता की सजा के कारण यक्ष वहां से जा पाने की स्थिति में नहीं है। एक दिन मेघों को शिप्रा की ओर जाते देख वे उन्हें अपना संदेशवाहक बना देते हैं। वे अलकापुरी से रामगिरी पर्वत तक का मार्ग भी मेघों को बताते हैं। उनके प्रेमभाव से प्रभावित सीधे अलकापुरी पहुंचकर उनकी पत्नी को उनका प्रेम संदेश देते हैं। यह सारी जानकारी कुबेर तक पहुंचती है तो वे भी बिरही प्रेमी युगल के प्रेम से प्रभावित हो जाते हैं। तब तक कई महीने निकल चुके थे, इसलिए कुबेर का गुस्सा भी शांत हो गया था। वे यक्ष की निर्वासन सजा समाप्त कर अलकापुरी लौटने की अनुमति दे देते हैं। इस सुखद मिलन के साथ कहानी का अंत होता है।
मंच पर----कुबेर, शिव—होजाई, यक्ष- राघवेंद्र, यक्षिनी---साधना, बादल- देवेंद्र, अमितेश, मयंक, महेंद्र, नट-आशीष, नीलांबरी अप्सरा—अनुशा, अनुजा, दामिनी, सारिका, साधना, संदीप, राजहंस-सतीश, अमर, यश, नितिन, नटी-वैशाली, बिजली-पूजा।
मंच से परे----प्रकाश परिकल्पना- सुरेंद्र मोहन सिंह, संगीत –पंडित रानू वर्द्धन, निर्देशन एवं परिकल्पनना- एमके होजाईगम्बा सिंह।