मप्र में जन कल्याणकारी योजनाओं से एंटीइनकंबेंसी फैक्टर पराजित
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 3 दिसंबर। मध्यप्रदेश के मतदाताओँ ने भाजपा के फिर से जिताकर सियासत के सारे विश्लेषण औऱ समीकरण बदल दिए हैं। आज भले ही कोई कुछ भी कहे लेकिन यह तय है कि इस बंपर जीत की उम्मीद भाजपा के नीति नियंताओं को भी नहीं थी। वे अधिकतम 135 से 140 सीटें ही मिलने की उम्मीद कर रहे थे। नतीजों से उत्साहित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभाएं और उनकी अपील जनता के दिल को छू गई, ये उसी का परिणाम है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश में बीजेपी एंटी इंकंबेंसी को नकारकर जीती। राजनीति में यह शोध का विषय होना चाहिए। कांग्रेस इस चुनाव में एंटी इनकंबेंसी को सबसे बड़ा मुद्दा बना रही थी। उसने इस मुद्दे को इतनी हाइप दी कि जनता का परसेप्शन भाजपा का हराने वाला लगने लगा। लेकिन भाजपा के रणनीतिकार बहुत जल्दी समझ गए कि कांग्रेस जिसे एंटी इनकंबेंसी बता रही है, वह असल में कुछ मुद्दों पर नाराजगी है। भाजपा ने नाराजगी अपनी रणनीति से दूर कर ली। कांग्रेस इसे नहीं समझ पाई।
मध्य प्रदेश चुनाव में पार्टी ने पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा था। मुख्यमंत्री कौन होगा, इस बात को लेकर अमित शाह ने साफ साफ कहा था सीएम कौन होगा ये पार्टी तय करेगी। ऐसे में शिवराज के लिए बड़ी चुनौती थी, उन्होंने मंच से वोटरों से एक भावनात्मक अपील की, रुझानों को देखकर लगता है कि वो सहानुभूति का एक रिश्ता वोटर के साथ जोड़ने में कामयाब हो गए, वहीं रूझान ये भी बताते हैं कि नॉर्थ इंडिया में बीजेपी की वेव या कहे पीएम मोदी का फैक्टर, दोनों काम कर गए।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से बड़ा नेता किसी को नहीं बनने दिया। दोनों नेता वयोवृद्ध हैं। कमलनाथ की उम्र 77 साल और दिग्विजय सिंह की उम्र 76 साल है।किसी यूथ लीडर को आने नहीं दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया जो कांग्रेस में एक बड़ा कद थे, युवा थे, उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया था। मजबूरन उन्हें बीजेपी का दामन थामना पड़ा। मध्यप्रदेश कांग्रेस में युवा नेतृत्व का बैकअप नहीं बन पाया। केवल विक्रांत भूरिया यूथ कांग्रेस अध्यक्ष हैं, जो कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं और पेशे से एमबीबीएस डॉक्टर हैं। उन पर भी वरिष्ठ कांग्रेसी और पूर्व मप्र कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की छाप है। सबसे अहम बिंदु राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह है कि कमलनाथ में राजनीतिक नेतृत्व करने की क्षमता नहीं है, वो राजनेता कम और बड़ी कंपनी सीईओ ज्यादा लगते हैं। वो राजनीतिक बैठकों में कार्पोरेट मीटिंग जैसा व्यवहार करते रहे हैं। कमलनाथ मिनटों के हिसाब से विधायकों को मिलने का समय देते थे। वो कहते थे 'चलो चलो' , उन्हें जनता ने चलता कर दिया। कांग्रेस में जहां कमलनाथ का रवैया तानाशाही रहा है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी इसलिए आगे निकली कि एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ के विपरीत जमीनी नेता हैं, वे लोगों और विधायकों की सुनते भी हैं, बोलते भी हैं। शिवराज सिंह चौहान की सरल छवि कमलनाथ की छवि पर भारी पड़ी।