मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे सबसे ज्याादा करते हैं आत्महत्या
सुमन त्रिपाठी
भोपाल, 8 नवंबर। तमाम कारणों के चलते आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति समाज के मध्यम वर्ग को सबसे अधिक पीड़ा दे रही है। प्रदेश में आत्महत्या के सर्वाधिक मामले मध्यम वर्ग में ही दर्ज किए गए हैं। इसके बाद गरीब वर्ग और अमीर वर्ग में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जाती है। मध्यप्रदेश विधानसभा में छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों का अध्यनन करने के लिए गठित की गई एक समिति की रिपोर्ट झकझोर देने वाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और इसके कई कारण सामने आए हैं। इनमें शैक्षणिक और सामाजिक तथा आर्थिक कारण प्रमुख माने जा रहे हैं। यही कारण है कि समाज के अलग-अलग वर्गों में इसका असर भिन्न-भिन्न है।
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। वर्ष 2011 में जहां 175 बच्चों ने आत्महत्या की थी वहीं 2012 में 197, 2013 में 232, 2015 में 248 बच्चों ने आत्महत्या की थी। वहीं 2016 की पहली तिमाही में ही 61 किशोरवय बच्चे आत्महत्या कर चुके थे। इन आंकड़ों का विशेषण करने पर बहुत चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। वर्ष 2011 में जिन 175 बच्चों ने आत्महत्या की उनमें सबसे अधिक 105 मध्यम वर्ग के थे। इनके अलावा गरीब वर्ग के 51 और अमीर वर्ग के 19 बच्चों ने अपनी जीवन लीला समाप्त की। वहीं 2012 में आत्महत्या करने वाले 197 बच्चों में भी सबसे अधिक 138 मध्यम वर्ग के थे। इनमें गरीब वर्ग के 14 और अमीर वर्ग के 19 बच्चों की आत्महत्या के मामले दर्ज हैं। वर्ष 2013 में मध्यम वर्ग के 150 बच्चों ने अपना जीवन समाप्त किया। इस वर्ष आत्महत्या के कुल 232 मामलों में यह यह संख्या सर्वाधिक थी। वहीं गरीब वर्ग के 68 और अमीर वर्ग के 14 बच्चों की आत्महत्या के मामले दर्ज हुए। वर्ष 2014 में आत्महत्या का आंकड़ा पिछले साल के आंकड़े के लगभग बराबर 233 रहा। लेकिन मध्यम वर्गीय बच्चों की आत्महत्या का मामला 150 से बढ़कर 156 हो गया वहीं गरीब वर्ग के बच्चों के आत्महत्या के मामले 69 और अमीर वर्ग के मामले घट कर 8 रह गए। 2015 में आत्महत्या के मामलों का ग्राफ बढ़कर 248 हो गया और मध्यम वर्ग के बच्चों में आत्महत्या का ग्राफ उसी तेजी से उठकर 167 हो गया। गरीब वर्ग में थोड़ी वृद्धि के साथ 72 मामले हो गए वहीं अमीर वर्ग में 9 मामलों के साथ आत्महत्या का ग्राफ लगभग स्थिर था। वर्ष 2016 की पहली तिमाही के ही आंकड़े समिति ने अपनी रिपोर्ट में शामिल किए हैं, जिनमें सर्वाधिक 31 मामले मध्यम वर्गीय बच्चों के हैं। गरीब परिवार के 26 और अमीर परिवार के 4 मामले दर्ज किए गए।
समिति का मानना है मध्यम वर्ग में बच्चों के आत्महत्या करने के कई कारण हैं। जिनमें सबसे पहला तनाव नहीं झेल पाना है। यह वह छात्र हैं जो सामान्यत: स्वयं अथवा दूसरों के लिए और वर्तमान परिस्थितियों के प्रति नकारात्मक सोच रखते हैं। इसके अलावा अकेलापन भी एक महत्वपूर्ण कारण है। ऐसे बच्चों को लगता है कि उनके माता-पिता उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं और वह अपने आप को अकेला महसूस करने लगते हैं। इन कारणों के अलावा कई बच्चे अपने आप को नाकाबिल समझने लगते हैं। तो वहीं कुछ बच्चे निराशा और बेबसी के घेरे में घिर जाते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण कारण ड्रग्स तथा शराब को भी माना गया। इन सभी कारणों के अलावा किशोरों द्वारा पूर्णतया पराजित होने का अनुभव करना भी है। एक अन्य कारण ‘नया वातावरण’ भी इस तरह की घटनाओं को जन्म देने में अग्रणी माना गया। किशोर नवीन विद्यालय, महाविद्यालय में जब प्रवेश करता है, वह उसमें अपने आप को ढाल नहीं पाता, ऐसे में वह अपने आप को अकेला महसूस करता है।