भक्त पुरणमल : भक्ति, श्रृंगार और करुणा रस का संगम एक ही नाटक में दिखा
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला अभिनयन के तहत शुक्रवार को कुचामणि खयाल शैली में नाटक भक्त पूरणमल का मंचन किया गया। नाटक के निर्देशक राजस्थान के जाने माने रंगकर्मी दयाराम भांड थे। इस नाटक में दर्शकों को भक्ति रस के साथ-साथ श्रृंगार रस और करुणा रस का अद्भुत संगम देखने को मिला|
इस नाट्य प्रस्तुति के केंद्र में पूरणमल है, जो शिवजी का बहुत बड़ा भक्त है। पूरणमल के पिता का नाम शंख भाटी है और उनकी दो पत्निया पद्मावती और लुनादेय है। पूरणमल की माँ पद्मावती हैं। पुरणमल की भक्ति से उनकी सौतेली मां लुनादेय काफी चिढ़ती हैं। वे पूरणमल की परीक्षा लेने का प्रण करती है। लुनादेय पूरणमल को विभिन्न तरह से परेशान कर ती हैं और कहती हैं कि देखो तुम्हारे शिव तुम्हे बचाने नहीं आते और न कभी आएंगे। वह षड्यंत्र कर पूरणमल के प्राण ले लेती है अंततः शिवजी पूरणमल को अपना दिव्य दर्शन देते हुए जीवन दान देते हैं। इसी नोट पर नाट्य प्रस्तुति का अंत होता है। इस प्रस्तुति के माध्यम से कलाकारों ने आत्मविश्वास से परिपूर्ण होने और कर्तव्यनिष्ठ बनने की प्रेरणा सभागार में मौजूद दर्शकों को दी।
नाट्य प्रस्तुति के दौरान मंच पर चम्पालाल, तानाराम, दयाराम, कालूराम, श्याम, सत्यनारायण, चमनलाल, कैलाश और सूरज आदि ने अपने कलात्मक नृत्याभिनय कौशल से सभागार में मौजूद दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रस्तुति के दौरान नगाड़े पर हरिराम ने, छोटी नगाड़ी पर लक्षमीनारायण ने, हारमोनियम पर लच्छुराम ने, करताल पर जितेन्द्र ने, खंजरी पर राकेश ने और मंजीरे पर अंकुर ने सहयोग किया। इस नाट्य प्रस्तुति के निर्देशक दयाराम भाण्ड कई वर्षों से रंग कर्म के क्षेत्र से जुड़े हैं। वे कई प्रस्तुतियों का निर्देशन करने के साथ ही साथ अभिनय भी करते है। इस नाट्य की समय सीमा लगभग एक घंटा 30 मिनट रही। इस नाट्य प्रस्तुति से भक्ति के सन्दर्भ में यह समझा जा सकता है कि पूरी तरह से अपने आपको अपने इष्टदेव में खो देना ही भक्ति का परम लक्ष्य होता है और सच्ची भक्ति अहंकार को पूरी तरह से नष्ट करके ही की जा सकती है।