ब़ड़े दलों के सियासी समीकरण बिगाड़ सकता है गोंडवाना बसपा का गठबंधन
सुमन त्रिपाठी
भोपाल, 12 अक्टूबर। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। लेकिन बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का मेल कई सीटों पर समीकरण बिगाड़ सकता है। दोनों ही पार्टियों का मध्यप्रदेश के अलग अलग अंचलों में प्रभाव है। यह प्रभाव दोनों पार्टियों के तालमेल के बाद प्रदेश की 80 से ज्यादा सीटों पर हो सकता है। ऐसे में किसी भी प्रमुख दल के लिए नई चुनौती बन सकती है।
बहुजन समाज पार्टी चुनाव मैदान में कई सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है। कभी मध्यप्रदेश में 11 सीटों पर कब्जा जमाने वाली बसपा राजनीतिक रूप से कमजोर होने के बाद भी कई सीटों पर अपना प्रभाव बनाए रखने में सफल है। यही स्थिति गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की है। कभी तीन सीटें अकेले की दम पर जीतने वाली जीजीपी राजनीतिक रूप से कमजोर जरूर हुई है, लेकिन उसने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया है। इसलिए वह भी बड़े दलों के लिए चुनौती बन सकती है। बहुजन समाज पार्टी मध्य प्रदेश के विंध्य इलाके में बहुत पर प्रभावशाली स्थिति में है। विंध्य के अलावा चंबल इलाके में भी बहुजन समाज पार्टी का असर है। बहुजन समाज पार्टी का अपना एक वोट बैंक है। यह उत्तर प्रदेश से लगी मध्य प्रदेश के सभी सीमावर्ती इलाकों में काम करता है। बहुजन समाज पार्टी अकेले की दम पर चुनाव भले न जीत पाए लेकिन कांग्रेस या बीजेपी से नाराज होकर बसपा ज्वाइन करने वाले उन नेताओं के लिए बहुत मुफीद साबित होता है जो अपना खुद का वोट बैंक भी रखते हैं। पिछले चुनाव में देखने को मिला है कि बहुजन समाज पार्टी ने अगर बीजेपी कांग्रेस या अन्य दलों से आए नेताओं को टिकट दिया है तो वह जीतकर विधानसभा पहुंचे। भिंड से संजीव कुशवाहा की जीत हो या दमोह के बुंदेलखंड इलाके के पथरिया सीट से रामबाई की जीत हो... यह साबित करती है कि अगर प्रत्याशी का वोट बैंक और बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक मिल जाए तो तो प्रत्याशी का चुनाव जीतना आसान हो जाता है। बीते आम चुनाव की बात करें तो ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अधिकांश सीटों पर बसपा दूसरे या तीसरे नंबर पर रही थी। इसी तरह से बसपा के लिए सतना जिले की रामपुर बघेलान, रैंगाव, मुरैना जिले की दिमनी, रीवा की सिमरिया और सिरमौर सीट बहुत महत्वपूर्ण सीटें हैं। रामपुर बघेलान में साल 2008 और 1993 के चुनाव में बसपा जीत चुकी हैं। प्रदेश की 65 सीटों पर बसपा का वोट बैंक 10 प्रतिशत तक रहा है। 2018 के विस चुनाव में भाजपा को 41.6 प्रतिशत और बसपा को 5.1 प्रतिशत वोट मिले थे। 2003, 2008 और 2013 के विस चुनावों में औसतन 69 सीट पर पार्टी का वोट शेयर 10 प्रतिशत से अधिक रहा है।
यही स्थिति महाकौशल इलाके में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी अपने कार्यक्षेत्र में बहुत विस्तार किया है। पहले डिंडोरी, मंडला, बालाघाट जैसे जिलों तक से सीमित रही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की पहुंच विंध्य के सिंगरौली इलाके तक हो गई है। पार्टी के तमाम बड़े दिग्गज नेता अब सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं, लेकिन पार्टी का प्रभाव जातीय समीकरणों के चलते आज भी बरकरार है। इसलिए इन इलाकों में भी अगर कांग्रेस या बीजेपी से नाराज कोई नेता गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की टिकट पर मैदान में उतरता है तो उसकी जीत निश्चित हो जाती है। अगर ऐसा नहीं होता है तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी किसी भी प्रत्याशी की जीत और हार का समीकरण बिगाड़ने में सक्षम हो जाती है। इन इलाकों में बहुजन समाज पार्टी का भी वोट बैंक है। अगर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों का टारगेट एक हो जाता है तो किसी भी पार्टी के चुनावी रथ को रोक पाने में यह गठबंधन बड़ी भूमिका निभा सकता है। लगभग 80 सीटों पर दोनों पार्टियों का मिला-जुला वर्चस्व है। गठबंधन के मुताबिक बहुजन समाज पार्टी 178 और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी 52 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। दोनों पार्टियों के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर वह चुनाव नहीं जीत पाए तो भी यह गठबंधन किसी भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। ऐसे में उनका समझौता कांग्रेस या भाजपा दोनों दलों के नेताओं से हो सकता है यह सियासी तौर पर दोनों पार्टियों को बड़ा फायदा दे सकता है। यही कारण है कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बसपा के गठबंधन से बड़े दलों के नेताओं की नींद उड़ी है।