प्रियंका बाड्रा: कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र या बंंद मुट्ठी का खुलना
खरी खरी संंवाददाता
नई दिल्ली, 24 जनवरी। यह सिर्फ जुमला नहीं सच्चाई है कि हिंदुस्तान की सियासत में दिल्ली के सिंहासन का रास्ता लखनऊ होकर जाता है। अस्सी लोकसभा सीटों वाले प्रदेश में जिस भी पार्टी को ज्यादा सीटें मिलती हैं, वह सरकार बनाता है या फिर किंग मेकर की भूमिका निभाता है। शायद इसीलिए कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के पहले बड़ा दांव खेलते हुए प्रियंका गांधी बाड्रा को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तरप्रदेश का प्रभारी बना दिया है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी बहन को सीधे इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हुए सियासी ब्रह्मास्त्र का उपयोग कर दिया, लेकिन यह कांग्रेस की बंद मु्ट्ठी का खुलना भी है। इसका क्या असर होगा यह तो लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही तय होगा, लेकिन असर जो भी होगा वह कांग्रेस के भविष्य की सही तस्वीर सामने लाएगा।
कांग्रेस की यह मजबूरी है कि गांधी परिवार की छत्र छाया के बिना उसका जीवंत रहना मुश्किल होता है। सीताराम केसरी के अध्यक्षीय कार्यकाल में यह देखा जा चुका है। कांग्रेस को संभालने के लिए ही सोनिया गांधी को राजनीति के मैदान में आना पड़ा था। अब वही भूमिका राहुल गांधी निभा रहे हैं। उनकी अगुवाई में कई चुनाव हारने के बाद तीन हिंदी राज्यों में सत्ता पाने कांग्रेस के लिए सपने जैसा है। अब देश की सत्ता वापस पाना कांग्रेस का बड़ा सपना है। यह तय है कि सिर्फ राहुल गांधी के करिश्मे से यह संभव नहीं दिखाई पड़ता। इसलिए प्रियंका नाम का ब्रह्मास्त्र उपयोग में लाया जा रहा है। देश की सत्ता की चाबी कहे जाने वाले उत्तप्रदेश में इस महीने की शुरुआत में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन की घोषणा से कांग्रेस पार्टी एक बार फिर संकट में है, क्योंकि उत्तर प्रदेश की इन पार्टियों ने देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को नज़रअंदाज किया। सपा और बसपा से मिले इस सबक से कांग्रेस ने शुरुआत में उत्तर प्रदेश की सभी 80 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा की लेकिन फिर इसने कहा कि वो अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबंधन के लिए तैयार है। यह दिखाने के लिए कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है, पार्टी के पास एकमात्र विकल्प था कि वो प्रियंका को उतारे और बाकी का काम मीडिया का ध्यान कर देगा।
आधिकारिक रूप से पहली बार प्रियंका गांधी को पार्टी में कोई काम सौंपा गया है। अब तक, वो अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के दो लोकसभा क्षेत्रों रायबरेली और अमेठी में चुनाव मैनेजमेंट का काम किया करती थीं। प्रियंका गांधी को मिले इस नए किरदार से निश्चित ही कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है। खबर यह नहीं है कि प्रियंका औपचारिक रूप से राजनीति में प्रवेश कर रही हैं। ख़बर यह है कि उन्होंने उस क्षेत्र को चुना है जो कांग्रेस के लिए सबसे कठिन चुनौती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, जहां सीधे उनका नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ से मुक़ाबला है। प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार देकर कांग्रेस एक ओर बीजेपी को और दूसरी तरफ सपा-बसपा गठबंधन को यह बता रही है कि वो दोनों के प्रभुत्व को बहुत गंभीरता के साथ चुनौती देगी। प्रियंका के आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान का मतलब होगा कि कांग्रेस मुसलमान और दलित वोटों का विभाजन करना चाहती है, जो बसपा और सपा के साथ चला गया होता और चुनाव के बाद किसी भी उस विपक्षी गठबंधन सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी जो कांग्रेस की उपेक्षा करती है।
प्रियंका गांधी का करिश्मा उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को कितना लाभ पहुंचाएगा यह तो लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता पड़ेगा लेकिन यह तय है कि प्रियंका की नई भूमिका कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं में उत्साह भरेगी। इसका कुछ तो असर चुनाव परिणामों में दिखाई देगा।