प्राइवेसी मौलिक अधिकार, फिर कैसे बनेगा आधार
खरी खरी संवाददाता
नई दिल्ली , 24 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक बहुप्रतीक्षित निजता यानि प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताकर केंद्र सरकार को संकट मे डाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते सरकार को भले ही यू टर्न लेना पड़े, लेकिन इसके उसकी कई महत्वाकांक्षी योजनाओं पर चोट पहुंचेगी। सुप्रीम कोर्ट ने निजता से जुड़े कई मामलों पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है। सर्वोच्च अदालत के नौ जजों के फैसले में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार करार दिया गया है।
प्राइवेसी को मौलिक अधिकार मानने को लेकर सबसे पहले 2012 मे कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज केएस पुट्टस्वामी अदालत में मामला उठाय़ा था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायक आधार की अनिवार्यता को चुनौती दी थी। इसमें बाद में कई याचिकाएं और जुड़ गईं। अंत में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों ने 21 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए फैसला दिया कि प्राइवेसी का अधिकार मौलिक अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकार के प्रावधान हैं, जिन्हें डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान की आत्मा बताया था। अनुच्छेद-21 में जीवन तथा स्वतन्त्रता का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने अनेक मामलों में निर्णय देकर शिक्षा, स्वास्थ्य, जल्द न्याय, अच्छे पर्यावरण आदि को जीवन के अधिकार का हिस्सा माना है। संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला देश का क़ानून माना जाता है, और अब प्राइवेसी भी मौलिक अधिकार का हिस्सा बन गई है। मौलिक अधिकार होने के बाद कोई भी व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में सीधे याचिका दायर करके न्याय की मांग कर सकता है।
सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि प्राइवेसी कॉमन लॉ के तहत कानून तो है पर इसे मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता। इस बारे में सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के पुराने दो फैसलों खड़क सिंह (1954) और एमपी शर्मा (1962) की जोरदार दलील दी गई, लेकिन दलीलें काम नहीं आईं। वहीं याचिककर्ताओँ के अनुसार संविधान में जनता सर्वोपरि है तो फिर प्राइवेसी को मौलिक अधिकार क्यों नहीं माना जाना चाहिए। याचिककर्ताओं ने अमेरिका में प्राइवेसी के बारे में चौथे अमेंडमेंट समेत कई अन्य दलीलें रखीं। सुप्रीम कोर्ट ने पिटीशनर्स की तरफ से पेश दलीलों को मानते हुए प्राइवेसी को मौलिक अधिकार मान लिया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले लगाई रोक के बावजूद सरकार द्वारा 'आधार' को 92 कल्याणकारी योजनाओं में अनिवार्य बना दिया गया था। 'आधार' के तहत लोगों को निजी सूचनाओं के साथ बायोमैट्रिक्स यानि फेस डिटेल्स, अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान देने पड़ते हैं। 'आधार' को इनकम टैक्स समेत कई अन्य जगहों पर जरूरी कर दिया गया है। 'आधार' की अनिवार्यता और बायोमैट्रिक्स के सरकारी डेटाबेस को प्राइवेसी के ख़िलाफ़ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फ़ाइल हुई थी। इस मामले में पहले तीन जजों की बेंच में और फिर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की। खड़कसिंह मामले में 8 जजों की बेंच ने फ़ैसला दिया था इसलिए प्राइवेसी के मामले पर फ़ैसले के लिए नौ जजों की बेंच बनाई गई। संविधान पीठ के इस फ़ैसले के बाद अब पांच जजों की बेंच 'आधार' मामले पर सुनवाई करेगी।