प्रचंड लहर के बाद भी कैसे हार गए शिवराज कैबिनेट के कई दिग्गज मंत्री
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 4 दिसंबर। मध्यप्रदेश में सारे मिथकों को किनारे कर मध्यप्रदेश में प्रचंड बहुमत के सत्ता में आनी वाली भारतीय जनता पार्टी नई सरकार के गठन की तैयारियों के बीच इस बात की गंभीरता से समीक्षा कर रही है कि मोदी की लहर, लाड़ली बहना के जादुई प्रभाव के बाद भी सरकार के 12 मंत्री चुनाव हार गए। इनमें कमल पटेल, नरोत्तम मिश्रा, गौरीशकंर बिसेन,अरविंद भदौरिया जैसे दिग्गज भी शामिल हैं।
एमपी के मन में मोदी या मोदी की गारंटी या लाड़ली बहना का जादू, संगठन की युद्धस्तरीय रणनीति या फिर शिवराज सिंह का भरोसा या फिर वीडी शर्मा के चुनावी मैनेजमेंट.. श्रेय चाहे जिसे दिया जाए लेकिन यह तय है कि मध्यप्रदेश में वह हो गया जिसकी कल्पना आम लोगों को नहीं थी। जनता न पेट भर-भरकर भाजपा को वोट दिए...ऐसा लगा जैसे इस बार मप्र में विधानसभा चुनाव में सिर्फ भाजपा की आंधी चली...लेकिन भाजपा की लहर में भी उसके 31 मंत्रियों में से 12 मंत्री धराशायी हो गए...इनमें सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों में शुमार नरोत्तम मिश्रा, गौरीशंकर बिसेन, कमल पटेल और अरविंद भदौरिया जैसे कद्दावर नेता चुनाव हार गए। चुनाव में सिंधिया के करीबी तीन मंत्रियों को भी हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा की लहर में भी ये मंत्री चुनाव क्यों हार गए, यह बड़ा सवाल है। डॉ. नरोत्तम मिश्रा छह बार के विधायक हैं। कुशल राजनीतिक प्रबंधक माने जाते हैं। लेकिन जातीय समीकरणों को साधने में असफल रहे। खासतौर से क्षेत्र के कुशवाहों और दलित वोट बैंक उनके हाथों से छिंटक गया। इसके अलावा भाजपा से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हुए अवधेश नायक का टिकट काटने का फायदा नहीं मिला। कांग्रेस उन्हें मनाने में कामयाब रही। राजवर्धन सिंह दत्तीगांव भाजपा बागी होकर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे कद्दावर नेता भंवर सिंह शेखावत के औरा और रणनीति को समझने में विफल रहे। इसके अलावा चुनाव से पहले लगे चारित्रिक आरोपों की वजह से चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। जबकि कांग्रेस पूरा चुनाव एकजुटता के साथ लड़ती दिखाई दी। महेंद्र सिंह सिसोदिया चुनाव के पहले संघ एवं भाजपा के स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, भ्रष्टाचार एवं चरित्र संबंधी तमाम आरोप लगे। जिसकी वजह से जनता में पार्टी की छबि खराब हुई और पार्टी का कार्यकर्ताओं चुनाव के दौरान प्रचार के लिए घर से बाहर नहीं निकला। जबकि कांगे्रस ने एकजुटता से चुनाव में लड़ती नजर आई। गौरीशंकर बिसेन सात बार के विधायक रहते पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट नहीं कर पाए। इसके साथ पार्टी कार्यकर्ताओं-नेताओं की उपेक्षा के लगातार आरोप लगते रहे। जिसकी वजह से भाजपा कार्यकर्ता नाराज रहा। कार्यकर्ताओं ने चुनाव में सक्रियता से काम करने के बजाय भितरघात का काम किया। जो कि हार की बड़ी वजह रही। कमल पटेल चुनाव से पहले करीबी एवं खांटी भाजपा नेता सुरेंद्र जैन के कांग्रेस में शामिल होने का तो नुकसान हुआ ही, इसके साथ भाजपा नेता अनिल जैन के खुलेआम विरोध ने बड़ा नुकसान पहुंचाया। वे इन नाराज नेताओं को मनाने के बजाय गरियाते रहे। इसके अलावा भ्रष्टाचार और बेटे की आपराधिक छबि की शिकायतों ने भाजपा की लहर के बावजूद चुनाव हरवा दिया। प्रेम सिंह पटेल पांच बार के विधायक रहते क्षेत्र जब पार्टी ने जब उन्हें इस बार टिकट दिया, तो उनका क्षेत्र के कार्यकर्ताओं-नेताओं ने भारी विरोध किया। उनके खिलाफ कार्यकर्ता भाजपा मुख्यालय तक पहुंचे। चुनाव प्रचार में मूल भाजपा के कार्यकर्ताओं ने सक्रियता नहीं दिखाई। बताते हैं कि नाराजगी में कई कार्यकर्ताओं ने तो अप्रत्यक्ष कांग्रेस उम्मीदवार का सहयोग किया। अरविंद भदौरिया क्षेत्र में जातीय समीकरणों में साधने में पूर्णत: विफल रहे। खासतौर से पार्टी में ही अप्रत्यक्ष विरोध सामना करना पड़ा। इसके अलावा भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे मुन्ना सिंह भदौरिया को मनाने में पार्टी नाकामयाब रही। इसकी वजह से कांग्रेस उम्मीदवार की जीत भाजपा की लहर में आसान हो गई। ये मंत्री भी चुनाव हार गए इसके अलावा सरकार में मंत्री राम खेलावन पटेल, रामकिशोर कावरे, सुरेश धाकड़ राठखेड़ा, राहुल लोधी और भारत सिंह कुशवाह भी चुनाव हार गए। क्षेत्र में निष्क्रियता, भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और भ्रष्टाचार इनकी हार की बड़ी वजह रही। नाराजगी की वजह से कार्यकर्ता प्रचार के लिए घर बाहर नहीं निकला। पिछले चुनाव में 27 में से 13 मंत्री हार गए थे हम बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवराज सरकार के 31 मंत्रियों में से 27 को चुनाव लड़ाया था। लेकिन इनमें से 13 मंत्री चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में भाजपा को 109 सीटें मिली थीं और वह बहुमत (116) से सात सीटें पीछे रह गई थी।