पूर्व सीएस रेड्डी पर ईडी के छापे से फिर गर्माया ई टेंडरिंग घोटाला

Jan 09, 2021

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 9 जनवरी। मध्यप्रदेश के बहुचर्चित ई टेंडरिंग घोटाला मामले में प्रदेश के पूर्व चीफ सेकेट्री एम गोपाल रेड्डी के यहां ईडी के छापे के बाद इस मामले ने फिर तूल पकड़ लिया है। ईडी ने गोपाल रेड्डी के हैदराबाद स्थित आवास पर छापा मारपकर करीब पांच घंटे उनसे पूछताछ की। इसके साथ ही भोपाल, हैदराबाद, बेंगलूरू स्थित विभिन्न कंपनियों पर भी छापामार कार्रवाई हुई। ईडी ने छापामार कार्रवाई के बाद सात कंपनियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली है। इस कार्रवाई के बाद प्रदेश की नौकरशाही और सियासत में हड़कंप मचा है। क्योंकि घोटाला समय में एम गोपाल रेड्डी जल संसाधन विभाग के एसीएस रहे हैं।

 करीब तीन हजार करोड़ रुपए के ई टेंडरिंग घोटाले की जांच मप्र में ईओडब्ल्यू कर रहा है। ईओडब्ल्यू ने पहली एफआईआर 10 अप्रैल 2019 को दर्ज की थी। ईओडब्ल्यू ने जिन दस निजी कंपनियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया है। इनमें भोपाल की कंस्ट्रक्शन कंपनी रामकुमार नरवानी और ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई की कंस्ट्रक्शन कंपनी दि ह्यूम पाइप लिमिटेड और मेसर्स जेएमसी लिमिटेड, वड़ोदरा की कंस्ट्रक्शन कंपनी सोरठिया बेलजी प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड, हैदराबाद की मेसर्स जीवीपीआर लिमिटेड और मेसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड शामिल हैं। वहीं, जल निगम, पीडब्ल्यूडी, प्रोजेक्ट इम्प्लीमेंटेशन यूनिट, सड़क विकास निगम और जल संसाधन विभाग के टेंडर प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों को भी आरोपी बनाया गया है, लेकिन एफआईआर में उनके नामों का जिक्र नहीं है। तत्कालीन जल संसाधन मंत्री स्टाफ के कर्मचारी वीरेंद्र पांडे और अवस्थी तो इस मामले में कई दिनों तक जेल में भी रहे। इस एफआईआर में शामिल मेसर्स मैक्स मेंटोना लिमिटेड के प्रमोटर राजू मेंटोना के एम गोपाल रेड्डी से मधुर संबंध रहे हैं। मेंटोना को कई ठेके दिलाने में एम गोपाल रेडडी की भूमिका बताई जाती है। राजू का नाम मप्र के बहुर्चचित आयकर छापों से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में भी दर्ज है। चुनाव आयोग के निर्देशानुसार सीबीडीटी की जिस रिपोर्ट के आधार पर हाल ही में ईओडब्ल्यू ने मनी लांड्रिंग मामले की जांचशुरू की है, उसमें राजू के नाम के आगे 9 करोड़ लिखा है। इसी आधार पर ईडी ने छापा मारने, पूछताछ करने और मामला दर्ज करने की कार्रवाई शुरू की है। ईडी ने जिन सात कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है, उनमें जीवीपीआर लिमिटेड हैदराबाद, मैक्स मेंटोना हैदराबाद, ह्यूम पाइप लिमिटेड मुंबई, जेएमसी लिमिटेड मुंबई, सोरठिया वेलजी रत्ना लिमिटेड बड़ोदरा, एंट्रेंस प्राइवेट लिमिटेड बेंगलुरु, ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन भोपाल शामिल हैं। ईडी की इस कार्रवाई के बाद करीब 3 हजार करोड़ के ई टेंडरिंग घोटाले की पर्तें फिर खुलने लगी हैं।

 

क्या है ई टेंडरिंग घोटाला

हम आपको बताते हैं कि ई टेंडरिंग घोटाला क्या है। मध्य प्रदेश सरकार ने सरकारी विभागों के ठेकों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 2014 में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू की थी। इसके लिए बेंगलुरू की निजी कंपनी से ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया। तब से मध्य प्रदेश में हर विभाग इसके माध्यम से ई-टेंडर करता है। ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम में टेंडर को एंपावर्ड कमेटी अंतिम रुप देती है। इसके प्रमुख मुख्य सचिव होते है। कमेटी में संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव, वित्त के प्रमुख सचिव, मैप आईटी के प्रमुख सचिव को रखा गया है। ये कमेटी एमपीआरडीसी में 10 करोड़ से उपर की लागत वाले तथा जल निगम में 5 करोड़ की लागत के प्रोजेक्ट वाले टेंडरों को मंजूरी देती है। मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग  ने जलप्रदाय योजना के 3 टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किए थे। इनमें सतना के 138 करोड़, राजगढ़ के 656 करोड़ और 282 करोड़ के टेंडर थे। टेंडर टेस्ट के दौरान 2 मार्च 2018 को जल निगम के टेंडर खोलने के लिए डेमो टेंडर भरा गया। जब 25 मार्च को टेंडर लाइव हुआ तो पता चला कि डेमो टेंडर अधिकृत अधिकारी पीके गुरू के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से नहीं बल्कि फेक इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से भरा गया था। बोली लगाने वाली एक निजी कंपनी 2 टेंडरों में दूसरे नंबर पर रही। कंपनी ने इस मामले में गड़बड़ी की शिकायत की। कंपनी की शिकायत पर आईटी विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने विभाग की लॉगिन से ई-टेंडर साइट को ओपन किया तो उसमें एक जगह लाल क्रॉस दिखाई दिया। उन्होंने इस संबंध में जब विभाग के अधिकारियों से पूछा तो जवाब मिला कि यह रेड क्रॉस टेंडर साइट पर हमेशा ही आता है।  तत्कालीन प्रमुख सचिव ने पूरे मामले की जांच कराई तो सामने आया कि जब ई-प्रोक्योरमेंट में कोई छेड़छाड़ करता है तो रेड क्रॉस का निशान आ जाता है। जांच में ई-टेंडर में टेम्परिंग कर रेट बदलने का तथ्य उजागर हुआ।  इसके लिए एक नहीं कई डेमो आईडी का इस्तेमाल हुआ। इस तत्कालीन प्रमुख सचिव मैप-आईटी मनीष रस्तोगी ने ई-टेंडर घोटाला पकड़ा था। सरकार के ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम की खामी का फायदा उठाकर मध्यप्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमपीआरडीसी) और जल संसाधन विभाग के टेंडरों में भी सेंधमारी उजागर हुई है।   मैपआईटी के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने टेंपरिंग मिलने के बाद 116 करोड़ की लागत वाली सड़क के टेंडर निरस्त करने के लिए एमपीआरडीसी के एमडी डीपी आहूजा को पत्र लिखा। इसके बाद एमपीआरडीसी ने इस टेंडर को निरस्त करने के साथ 450 करोड़ की 5 पैकेज वाली सड़कों के री-टेंडर भी कर दिए हैं। कंपनियों को इसकी वजह तकनीकी ख्रामी और वेबसाइट हैक होना बताया गया। मैपआईटी ने जल निगम के 1 हजार करोड़ के तीन टेंडर निरस्त करवा चुका है। विभाग द्वारा ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल से होने वाले दूसरे विभागों के टेंडर भी जांचे गए हैं। ई पोर्टल में टेंपरिंग से दरें संशोधित करके टेंडर प्रक्रिया में बाहर हो रही कंपनी को टेंडर दिलवा दिया जाता था। ऐसा करके मनचाही कंपनियों को कांट्रेक्ट हासिल हो जाता था।

सरकार बदलने के बाद मामला दर्ज

मध्यप्रदेश में दिसंबर 2018 में सरकार बदल गई। सत्ता में आई कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने इस मामले की जांच में तेजी लाने के निर्देश दिए। पोर्टल में टेंपरिग होने और टेंडर की शर्ते या राशि बदलकर मनचाही कंपनियों को ठेके दिए जाने की प्राथमिक रूप से पुष्टि होने पर ईओडब्ल्यू ने 10 अप्रैल 2019 को पहली एफआईआर दर्ज कर ली। जिन कंपनियों के नाम इस फर्जीवाड़े में आए उनके संचालकों से पूछताछ हुई। कईयों को गिरफ्तार भी किया गया। इनमें भाजपा सरकार के जल संसाधन मंत्री नरोत्तम मिश्रा के ओएसडी वीरेंद्र पांडे तथा सहयोगी अवस्थी भी शामिल थे। इसी कड़ी में 28 मई को गुजरात की कंपनी सोरठिया वेलजी एंड रत्न के एजेंट के रूप में काम करने वाले मनीष खरे को गिरफ्तार किया था। कंपनी के मालिक हरेश सोरठिया को अदालत ने फरार घोषित कर दिया। मनीष ओस्मों कंपनी से भी जुड़ा हुआ था। एमपीएसईडीसी के तत्कालीन एमडी मनीष रस्तोगी ने ई-टेंडरिंग से जुड़ी 2 बड़ी निजी कंपनियों को 6 जून 2019 को नोटिस भेजा। इसी महीने उनका तबादला हो गया। मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॅानिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में डेढ़ साल में 6 एमडी बदले गए।

ई टेंडरिंग घोटाले को लेकर अभी कई अधिकारियों और नेताओं से पूछताछ नहीं हुई है। प्रदेश के गृह मंत्री और पूर्व जल संसाधन मंत्री डा नरोत्तम मिश्रा लगातार कहते आए हैं कि जब किसी कंपनी को एक पैसे का भुगतान ही नहीं हुआ तो घोटाला कैसे हो गया। यह कहने वाले नरोत्तम मिश्रा फिर सरकार में है। ऐसे में यह दावा नहीं किया जा सकता है कि करोड़ों के घोटाले वाले ई टेंडरिंग मामले में कोई हंगामेदार सच सामने आ पाएगा।