नृत्य नाटिका: समाज से पक्षियों का सवाल.. क्या यही है तुम्हारी जीवन धारा

Nov 29, 2019

कला संवाददाता

भोपाल, 29 नवंबर। रंगश्री लिटिल बैले ट्रुप ने पद्मश्री स्व. गुलबर्धन की स्मृति में गुरुवार को शहीद भवन में नृत्य नाटिका जीवन धारा का मंचन किया। गांव और शहर दोनों जगह बढ़ते पर्यावरणीय प्रदूषण पर केंद्रित इस नृत्य नाटिका की कोरियोग्राफी और निर्देशन शशधर आचार्य ने किया।  

नृत्य नाटिका जीवनधारा विभिन्न वर्णों की चिड़ियों के माध्यम से पर्यावरणीय संकट की समस्याओं से दो-चार होती है। बहुत रोचक विश्वसनीय ढंग से शहरी जीवन ग्रामीण जीवन और वन्य जीवन में पर्यावरण प्रदूषण के अंतर को इसमें रेखांकित किया गया है। जटिल समस्याओं पर आधारित होकर भी नृत्य नाटिका के चित्ताकर्षक संगीत, नैनाभिराम वेशभूषा, परिंदों की रोचक नृत्य गतियां, ग्राम व शहरों के जीवन दृश्य बंधो द्वारा मनोरंजक बन गया। यह दर्शकों को रंजन के साथ सचेत भी करता है। खेतिहर समाज की तुलना में शहरी जीवन की आपाधापी, स्टेशनों, कारखानों, वाहनों और बाजारों के शोर, धूल, धुआं, दुर्गंध से मिलकर घुटन का वातावरण रचते हैं। पक्षी गांव से शहर में आए हैं क्योंकि गांव में ना तो बिखरे दाने हैं और ना ही पेस्टिसाइड के छिड़काव के कारण अनाज की फलियों से जीवन संभव है। लेकिन यहां शहर में तो जीवन स्थितियां ही नहीं हैं। जहां आदमी-आदमी को जान से मार रहा है यहां पक्षियों का जीवन कैसे संभव है। वे चलो.. चलो रे.. चलो रे… कहते हुए अपने प्राकृतिक वातावरण की ओर लौट जाते हैं । वह सभ्य समाज के सामने प्रश्न छोड़ते हैं क्या यही है  तुम्हारी जीवनधारा। डॉक्टर अंजन पुरी ने अपने मंच आलेख और संवेदनशील संगीत के द्वारा समस्याओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया, जिसे रंग के कलाकारों ने पक्षियों के मनोविज्ञान, देहगतियों औऔर समूहों के द्वारा आकर्षक रूप दिया है। इसमें छाऊ तथा आधुनिक नृत्य शैली का मिश्रण है।