निकाय चुनावों में बीजेपी की बढ़त लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन संतोषजनक
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 23 जनवरी। मध्यप्रदेश के पांच जिलों में हुए 19 नगरीय निकायों के चुनावों में सत्तारूढ़ बीजेपी का प्रदर्शन सिर्फ संतोषजनक रहा है। पार्टी ने 4 नगर पालिकाओं तथा 7 नगर परिषदों पर कब्जा कर 19 में से 11 निकायों में विजय हासिल की है। वहीं कांग्रेस 8 निकायों में विजय मिली है। कांग्रेस दिग्गज नेता दिग्विजय के गढ़ में जीत हासिल कर साख बचाने में सफल रही।
नगरीय निकायों के इस चुनाव में भाजपा ने ज्यादा स्थानों पर जीत भले हासिल की है, लेकिन चुनाव के मुहाने पर खड़े प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी की यह जीत तमाम सवाल खड़े करती है। विशेषकर सिंधिया के भरोसे गुना अंचल में सेंधमारी करने की कोशिश में जुटी बीजेपी कोराधौगढ़ में मिली पार्टी की उम्मीदों पर प्रश्नचिन्ह लगाती है।कांग्रेस ने राघौगढ़ नगर पालिका में 16 वार्डों में जीत हासिल की है। जबकि भाजपा को 8 वार्डों में जीत मिली है। यहां पर कुल 24 वार्डों के लिए मतदान हुआ था। ओंकारेश्वर में भाजपा की नगर सरकार बनेगी। 15 में से 9 में भाजपा तो 6 में कांग्रेस जीती है। मंत्री प्रेम सिंह पटेल और राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी के गढ़ बड़वानी में भी भाजपा ने जीत हासिल की है। यहां शुरुआती दौर में भाजपा पीछे थी। सोलंकी व लोकसभा सांसद गजेंद्र पटेल के वार्ड 9 में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस नेता व पूर्व गृहमंत्री बाला बच्चन के क्षेत्र राजपुर में भी भाजपा ने जीत दर्ज की है।धार जिले के पीथमपुर नगर पालिका में कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। यहां धार विधायक नीना वर्मा के पति व भाजपा के दिग्गज नेता विक्रम वर्मा की साख दांव पर थी। यहां पार्टी को अपने ही बागियों से बड़ा नुकसान पहुंचा। बड़वानी जिले के सेंधवा में भी भाजपा ने कब्जा जमा लिया है। खंडवा जिले के ओंकारेश्वर में भाजपा की नगर सरकार बनेगी।मध्यप्रदेश इस समय विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। दस महीने बाद चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में 19 निकायों के चुनाव परिणाम बहुत मायने रखते हैं। इसलिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ने जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी। चुनाव परिणामों में बीजेपी भले ही आगे रही है, लेकिन इसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता है। सत्तारूढ़ पार्टी आदिवासी अंचल में बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर पाई। बड़वानी और धार जैसे अंचलों में उसे बहुत शानदार सफलता नहीं मिली। यह इस बात का संकेत है कि पार्टी को विधानसभा चुनाव के पहले अपने नेताओं की कड़ी परीक्षा लेनी होगी।