दुष्यंत संग्रहालय में आखिरी नाटक, बादशाहत खत्म
सुमन त्रिपाठी
भोपाल । शहर के बीचोबीच तात्या टोपे नगर में लगभग एक दशक से साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बने दुष्यंत कुमार पाण्डुलिपि संग्रहालय में शनिवार की शाम आखिरी नाट्य प्रस्तुति “बादशाहत का खात्मा” ने कला प्रेमियों की आंखों में आंसू ला दिए। नाट्य संस्था कोशिश की प्रस्तुति के बाद हाल तालियों से गूंज रहा था, लेकिन जैसे ही संग्रहालय के निदेशक राजुरकर राज ने यह आखिरी नाट्य प्रस्तुति होने का ऐलान किया हॉल में सन्नाटा छा गया। कई कला प्रेमियों की आंखें नम हो गईं। यह संग्रहालय स्मार्ट सिटी योजना की भेंट चढ़ गया है। संग्रहालय का भवन तोड़ दिया जाएगा लेकिन अभी तय नहीं हुआ है कि संग्रहालय का नया ठिकाना कहां होगा।
संग्रहालय नए ठिकाने पर पहुंच भी जाएगा तब भी इस भवन में आज की प्रस्तुति आखिरी थी। विख्यात साहित्यकार सआदत हसन मंटो की कहानी पर आधारित नाटक “बादशाहत का खात्मा” असल में रांग नम्बर से शुरू हुई टेलीफोनिक लव स्टोरी है। ये कहानी घर से बेघर होकर मुंबई की फुटपाथों पर बसर करने वाले युवक मनमोहन की है। उसकी जिंदगी में अचानक बड़ा बदलाव आता है। उसका एक दोस्त कुछ दिन के लिए अपना दफ्तर उसके हवाले कर देता है। मनमोहन फुटपाथ से उठकर दफ्तर में आ जाता है और इसे ही बादशाहत मान लेता है। टेलीफोन पर आए एक रांग नंबर से उसकी बातचीत एक अनजान लड़की से होने लगती है। वह उस लड़की के काल्पनिक प्यार में खो जाता है। वह लड़की से उसका टेलीफोन नंबर मांगता है। लड़की कहती है कि जिस दिन उसकी बादशाहत खत्म होगी उस दिन वह उसे नम्बर दे देगी। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहता है। मनमोहन को लगता है कि उसकी हसरतें पूरी होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। वह मन ही मन उस लड़की की तस्वीर बनाता है और उसके ख्बावों में खोया रहता है। लेकिन उसकी मुलाकात लड़की से हो पाती उसके पहले ही वह बीमार पड़ता है और जब लड़की उसको अपना नम्बर देती है तब तक उसके दफ्तर की बादशाहत भी खत्म हो जाती है और उसकी जिंदगी की डोर भी टूट जाती है।
“बादशाहत का खात्मा” की कहानी भी मंटो की अधिकांश कहानियों की तरह ही दुःख और तकलीफ के साथ खत्म होती है। प्रामाणिकता के साथ यह बताने की कोशिश की जाती है कि निजाम में कहीं कुछ गलत है। नाटक के सभी कलाकार इस उद्देश्य पर खरे उतरने पर कामयाब रहे। मनमोहन के रूप में नितिन तेजराज तथा अनूप जोशी और लड़की के रुप में शाजिया उस्मानी और लक्ष्मी पाण्डे का अभिनय शानदार रहा। नाटक का निर्देशन तारिक दाद ने किया। प्रस्तुति के बाद विदा हुए कलाप्रेमी इस बात पर अफसोस जाहिर कर रहे थे कि इतने महत्वपूर्ण केंद्र में इस आखिरी नाट्य प्रस्तुति तक भी केंद्र के नए ठिकाने का पता नहीं चल सका।