दिग्गजों की जिद और दांव पेंच में फंस गए भाजपा के कई टिकट
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। मध्यप्रदेश की 29 में से अधिकांश लोकसभा सीटें जीतने का दावा कर रही भारतीय जनता पार्टी को अभी तो प्रत्याशी तय करने में पसीना आ रहा है। दो बड़े नेताओं शिवराद सिंह चौहान और सुषमा स्वराज की जिद के चलते कई सीटों पर अभी भी पेंच फंसा है।
मध्यप्रदेश की लोकसभा सीटों पर बीजेपी में फंसा पेंच सुलझने का नाम नहीं ले रहा है...पार्टी में दो वरिष्ठ नेताओं सुषमा स्वराज और शिवराज सिंह चौहान की जिद के चलते प्रदेश में आठ लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी चयन करने में पार्टी के रणनीतिकारों को पसीना बहाना पड़ रहा है।
हाल ही में विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बीजेपी नेताओं में सक्रियता की कमी स्पष्ट रूप से नजर आ रही है तो लगातार आपस में उलझ रहे प्रत्याशी चयन के मामले के बाद कार्यकतार्ओं के हौसलें भी पस्त पड़ गये हैं। सबसे पहले बात करें विदिशा लोकसभा क्षेत्र की तो विदिशा लोकसभा क्षेत्र में सुषमा स्वराज अपनी खास समर्थक सुखप्रीत कौर को चुनाव लड़ाना चाहती हंै-वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सिर्फ विदिशा लोकसभा क्षेत्र से ही चुनाव लड़ने में सहमत दिखाई दे रहे हैं। वही संघ चाहता है कि शिवराज या तो भोपाल लोकसभा क्षेत्र से दिग्विजय सिंह के सामने चुनाव लड़ें और यदि मैदान में नहीं उतरना चाहते है तो फिर प्रदेश की किसी भी सीट से उनको टिकिट नहीं दिया जाये। अब सवाल यह भी खड़ा होता है कि यदि विदिशा लोकसभा क्षेत्र से पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा जाता है तो जातिगत समीकरण साधने के लिये सागर लोकसभा क्षेत्र से किसी सवर्ण नेता को मौका मिल सकता है। यही कारण कहा जा सकता है कि पीएम मोदी के वंशवाद की राजनीति पर लिखे गये पत्र के बाद नेता प्रतिपक्ष अभिषेक भार्गव ने अपनी दावेदारी वापस ली तो इसके बाद प्रदेश सरकार के वित्तमंत्री जंयत मलैया का नाम तेजी से उभरकर सामने आया है-और पार्टी के रणनीतिकार और संघ जंयत मलैया के नाम पर सहमत होते हुए नजर आ रहे हैं।
अब अगर शिवराज सिंह चौहान की बात करें तो शिवराज भोपाल से चुनाव लड़ने के लिये तैयार नहीं हैं, लेकिन विदिशा से चुनाव लड़ने तैयार हैं । लेकिन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की सलाह को पार्टी खारिज करने की स्थिति में नहीं है। ऐसी स्थिति में शिवराज स्थानीय स्तर के पिछड़ा वर्ग के नेता दांगी और रमाकांत का नाम आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन पार्टी और सुषमा स्वराज इन नामों पर समहत होती नहीं दिखाई दे रही हैं। विदिशा के प्रत्याशी चयन के बाद ही सागर और खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशियों को नामों का ऐलान होगा, क्योंकि पार्टी इन लोकसभा क्षेत्रों में सामाजिक ताने-बाने को सुलझाने का भी प्रयास करेगी।
यही स्थिति नरेद्र सिंह तोमर की है, ग्वालियर से हटाकर मुरैना से पार्टी ने प्रत्याशी घोषित तो कर दिया लेकिन अनूप मिश्रा की नाराजगी बरकरार है तो दूसरी तरफ भिंड में पूर्व सांसद अशोक अर्गल टिकिट नहीं मिलने की स्थिति में बगावत पर उतारू हैं, कुल मिलाकर एक नेता तो एडजस्ट करने के चलते पार्टी की तीन लोकसभा क्षेत्रों में समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं। इसलिये पार्टी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रही है। केंद्रीय मंत्री नरेद्र सिंह तोमर भी भोपाल से चुनाव लड़ने के लिये तैयार नहीं हैं। ऐसे में पार्टी को भोपाल और विदिशा में नाम तय करने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और यदि दोनों लोकसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों के नामों का ऐलान हो जाये तो प्रदेश की बाकी बची 8 सीटों पर भी मामला सुलझ सकता है। कुल मिलाकर दो नेताओं की वर्चस्व की लड़ाई में मामला उलझा हुआ है और दोनों सीटों के चलते प्रदेश की करीब 6 से ज्यादा सीटें दांव पर लगी हुई हैं।