दादी पतंग के लिए दस पैसे नहीं देतीं तो घर से भाग जाता है चक्कू
खरी खरी संवाददाता
आज के दौर में मनुष्य संवेदनहीन होता जा रहा है। छोटी-छोटी बातों पर अपनों से संबंधों को खत्म कर दूर होता जा रहा है, जिसका असर अनजाने में ही सही पर बच्चों पर भी पड़ रहा है। अतः यह बहुत जरूरी है कि बच्चों में शुरूआत से ही अच्छे-बुरे का, सही-गलत का महत्व बताया जाए। बच्चों को देश के प्रति, समाज के प्रति व पर्यावरण के प्रति जागरुक बनाने के उद्देश्य से गुलजार द्वारा लिखित कहानी दादी पर आधारित नाटक का मंचन लक्ष्मी मंडी हायर सैकेण्डरी स्कूल अशोका गार्डन में लोकेंद्र प्रताप सिंह के निर्देशन में किया गया।
इस नाटक की कहानी चक्कू नाम के एक बालक के इर्द-गिर्द घूमती है। चक्कू अपनी दादी से पतंग खरीदने के लिए पैसे मांगता है। दादी पैसे देने से इंकार कर देती हैए जिससे नाराज हो चक्कू घर छोड़कर स्टेशन पहुंच जाता है। वहां से गुजरने वाली ट्रेन में बैठ दूसरे शहर जाने लगता है। रास्ते में उसे अपनी गलती का अहसास होता है कि उसके पास न तो ट्रेन का टिकट है और न ही खर्च के लिए पैसे। वह गाड़ी के रुकने पर एक खाली स्टेशन पर उतर जाता है। वहां एक भिखारिन को मृत देख उसे अपनी दादी की याद आ जाती है और वह जल्दी से दादी के पास लौटना चाहता है। उसके अन्दर चल रही इसी उधेड़-बुन को इस नाटक में बेहद संजीदा ढंग से बताया गया है। इस नाटक के जरिए परिवार व उसमें रह रहे सदस्यों के प्रति स्नेह और प्यार को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा गया है। इस नाटक के जरिए मनुष्य के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को दिखाया है कि जरा सी बात पर इंसान अपनी जिम्मेदारियों से बचकर भाग जाता है। जब तक उसे इस बात का अहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और अपने आप को इन सबसे कहीं दूर पाता है। तमाम कविताओं से सजे इस नाटक को अभिनीत करने वाले पर्व साहू का एकल अभिनय बेहद शानदार और जानदार रहा।