दरबार की चौखट पर इंतजार की इंतहा.........

May 08, 2020

अजय त्रिपाठी  

किसी शायर ने बहुत खूब कहा है…

एक रात गया था वो, जहां बात रोक के

अब तक रुका हुआ हूं, वहीं रात रोक के

यह शेर मध्यप्रदेश के वर्तमान सियासी दांव पेंच पर बहुत मुफीद बैठता है। करीब दो महीने पहले मार्च की एक रात बेंगूलरू के एक रिसार्ट में कांग्रेस सरकार के 6 मंत्रियों सहित करीब 22 विधायकों को से न जाने किसने और क्या वादा किया कि उन्होंने अपनी ही सरकार गिरा दी। उस वादे पर कितना अमल हुआ इस बारे में तफ्सील से वही बता सकते हैं जिनसे वादा हुआ या जिन्होंने वादा किया था…. लेकिन इन दिनों सरकार के दरबार में दिग्गजों की माथा टेकी इस बात का सबूत है कि जहां बात रुकी थी, वहीं रात अभी भी रुकी है। अब तो शायद उनका दिल भी कहने लगा होगा कि…. इंतहा हो गई इंतजार की ….

करीब दो महीने पहले तक कांग्रेस की अच्छी भली सरकार में उम्दा तरीके से सियासी जिंदगी गुजार कर रहे मंत्रियों और विधायकों के बड़े ख्वाबों ने प्रदेश की सियासत में बहुत बड़ा बदलाव कर दिया। पंद्रह साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद आई अपनी ही सरकार को गिरा दिया। सेल्फ गोल करने वाले इन सियासी जाबांजों ने यह सब किस जज्बे, जुनून या लालच में किया इसकी हकीकत तो वही बता सकते हैं, लेकिन अपनी टीम को हराने के बाद विजयी टीम का हिस्सा बने इन महारथियों को जिस तरह से रथ का इंतजार है, उससे इस बात का अंदाजा लग जाता है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। अपनी सरकार को खुद ही पटखनी देने वाले सभी खिलाड़ी नई सरकार की प्लेइंग इलेवन का हिस्सा बनने के लिए बेताब हैं। सरकार है कि कोरोना की आड़ में उनसे बस इंतजार करवा रही है। पाला बदलने वाले दो खिलाड़ी तो प्लेइंग इलवेन में शामिल हो गए लेकिन बाकी बस इंतजार कर रहे हैं… उनका सब्र टूटने लगा तो सरकार के दरबार में दम भरने पहुंच गए। यह बात अलग है कि लबों की शर्मिंदगी अभी बरकार है, इसलिए दरबार में माथा टेकी को एक नया नाम सौजन्य भेंट दिया जा रहा है…।

उम्मीद की जा रही थी कि बागी होकर पाला बदलने वाले सभी 6 मंत्रियों को नई सरकार में वही तमगा मिल जाएगा, लेकिन अभी तक सिर्फ दो लोगों गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को ही दरबार में शामिल होना नसीब हो सका। बाकी चारों इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युमन सिंह तोमर अभी तक दरबार की चौखट पर ही खड़े हैं। इनके साथ ही शेष 16 विधायकों में से करीब चार को मंत्री पद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उम्मीद अभी तक उम्मीद ही है। इनमें बिसाहू लाल सिंह, हरदीप सिंह डंग, ऐंदल सिंह कंसाना, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव की उम्मीदें तो आसमान छू चुकी हैं। इसके बाद भी दरबार में अभी तक खामोशी है और दरबार का हिस्सा बनने वाले दावा करते हैं कि यह तो दरबार का विशेषाधिकार है। 

मध्यप्रदेश की सियासत में सब अजूबा हो रहा है। पहली बार ऐसा हुआ कि 22 खिलाड़ी अपने पाले में ही गोल दागकर सामने वाली टीम में आ गए। इसके पहले 1967 में कांग्रेस सरकार से विद्रोह करने वालों ने अपनी टीम बनाई थी। पहली बार ऐसा हुआ कि करीब एक महीने तक मुख्यमंत्री अकेले ही मंत्रिपरिषद बने रहे। पहली बार ऐसा हुआ कि मंत्रीपरिषद में सिर्फ पांच सदस्य ही पूरी सरकार चला रहे हैं। पहली बार ऐसा हो रहा है कि सरकार और संगठन के परिक्रमा ऐसे समय में भी बदस्तूर जारी है जब घर में ही रुकने का सरकारी और कानूनी फरमान है। अब तो सरकार के साथ संगठन भी उकता गया है। इसलिए इससे जुड़े सवालों को टालने लगा है। पार्टी के अध्यक्ष वी़डी शर्मा कहते हैं कि भाजपा तो परिवार है। परिवार में सबको उसकी जरूरत के मुताबिक काम समय आने पर मिल जाता है।

दरबार में दम भरने के लिए दिग्गजों की कतार कब तक लगी रहेगी, इस बारे में दावे के साथ कोई कुछ नहीं कह सकता है, लेकिन इतना तय है कि अब बहुत जल्द कुछ नहीं होने जा रहा है। एक अनार सौ बीमार की स्थिति बनने के कारण सरकार और संगठन दोनों फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। ऐसा इसलिए भी कि दरबारों को पूरा भरोसा है कि सियासत के अखाड़े में दम भरने वाले ये सारे पहलवान अपनी दम पर दांव नहीं जीत पाएंगे, दांव तो दरबार का ही चलेगा।