द अलकेमिस्ट का मंचनः दूसरों को ठगने वाले खुद ठगे गए
कीमियागिरी, अंधविश्वास और रूहानी ताकतों द्वारा पैसे कमाने हों या अपने किसी काम की सफलता को सुनिश्चित करना हो, इन इच्छाओं का फायदा ठग प्रवृत्ति के लोग उठा लेते हैं। अपनी जेब गरम करके लोगों को किस हद तक बेवकूफ बनाते हैं कि उनकी जिन्दगी जिन्दगी तो बर्बाद होती है, रिश्ते भी तार-तार हो जाते हैं। शहरी जीवन की आपाधापी, चकाचौंध से प्रभावित झूठी प्रतिभा के लिए कोई कितना गिर सकता है, अंधविश्वास पर किस कदर विश्वास करता है, इन्हीं भावों को दिखाता नाटक द अल्केमिस्ट का मंचन शहीद भवन के सभागार में तनवीर अहमद के निर्देशन में किया गया। सन 1610 में बेन जान्सन द्वारा लिखा गया द अल्केमिस्ट का हिन्दी अनुवाद शिवांगी सिंह भदौरिया ने किया। शहर में ही नहीं बल्कि इस नाटक का ही पहली बार मंचन किया किया जा रहा है।
नाटक की कहानी-
इस नाटक की शुरूआत दो ठग सबटल और फेस के झगड़े से शुरू होती है और उनकी तीसरी साथी ठग डॉल उनके झगड़े को रोक कर उन्हें अपनी ठगी के काम को जारी रखने की सलाह देती है। इन ठगों से झगड़े से मालुम पड़ता है कि किसी तरह की महामारी शहर में फैल गई है। ठगी के लिए काम में लिया जाने वाला मकान का मालिक इस बीमारी से बचने के लिए कुछ समय के लिए शहर छोड़कर चला गया है। फेस नामक ठग एक साधारण आदमी है किन्तु लोगों को झूठ बोलता है कि उसके पास पारस पत्थर व जादुई शक्ति है जिसके द्वारा वह हर लोहे की चीज को सोने में बदल सकता है वह जादुई शक्ति से हर किसी की इच्छा को पूरी कर सकता है। सबटल और फेस अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग भेष में जाकर लोगों को ठगते हैं। डॉल भी इसमें साथ देती है। इन तीनों के चक्कर में अलग-अलग वर्ग व अलग-अलग लालच में कुछ लोग फंस जाते हैं जिनमें डेपर नामक ग्राहक घोड़े की रेस में पैसा जीतने के लिए, ड्रगर अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिएए मेमोन हर चीज को सोने में बदलने के लिए, अनानिआस और ट्रिब्यूलेशन अपने धार्मिक पंथ के प्रसार के लिएए कास्त्रिल अपनी बेवा बहन की किसी ऊंचे ओहदे के व्यक्ति से शादी और खुद को बहस की कला में जिताने के लिए मिलते हैं। इस नाटक में अचानक नाटकीय मोड़ तब आता है जब फेस का मालिक वापस आ जाता है और सोने की चाहत रखने वाले मेमोन का दोस्त सरली इन तीनों ठगों की कीमियाई चाल को भांप इन तीनों ठगों को ही ठग लेता है।
मंच पर.
इस नाटक में अभिनय करने वालों में सबटल के गेटअप में योगेश तिवारी, फेस-अजय श्रीवास्तव, डॉल- शिवांगी सिंह भदौरिया, मेमोन-दिनेश नायर, सरली-अनूप शर्मा, डेपर-नदीम खान, ड्रगर-अर्शिन खान, लवविट- परवेज खान का अभिनय बेहद सशक्त जान पड़ा। इनके अलावा अनानिआस बने शुभांकर दीक्षित, ट्रिब्युलेशन-दिव्यांश सिंह सेंगर, कास्ट्रील-विशाल चतुर्वेदी सहित प्रतिज्ञा गिरी गोस्वामी, अल्ताफ अहमद, फाजिल अंसारी, शुभम राय, आसिफ अनवर, मोहित मित्रा, आसिम खान व अब्दुल हक और देवांशु सारस्वत के अभिनय ने भी दर्शकों को अंतिम दृश्य तक बांधे रखा। मंच सज्जा बेहद खूबसूरत जान पड़ी।
Category:
Share:
Warning! please config Disqus sub domain first!