तीन स्कूली दोस्तों की दोस्ती और मोहब्बत की दास्तां प्रेम कबूतर
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। बहुकला केंद्र भारत भवन में प्रख्यात रंगकर्मी ब.व. कारंत की स्मृति में आयोजित पांच दिवसीय समारोह आदरांजलि के तहत अंतिम दिन गुरुवार को श्रीराम सेंटर फार परफार्मिंग आर्ट्स नई दिल्ली द्वारा नाटक प्रेम कबूतर प्रस्तुत किया गया। मशूहर अभिनेता मानव कौल द्वारा लिखित इस नाटक को थिएटर जगत के नामचीन निर्देशक समीप सिंह ने निर्देशित किया। यह नाटक टीनएजर पीढ़ी की संवेदनशील नब्ज पर हाथ रखता है, जहां मोहब्बत और ख्वाहिशें बहुत खास होती हैं।
नाटक की कहानी
इस नाटक में निर्देशक ने मंच सज्जा का बेहतर ध्यान रखा है। साइकल का उपयोग मंच पर किया गया है जिसे स्कूल लाइफ में दोस्ती और मोहब्बत के लिए जरूरी माना जाता है। नाटक की कहानी तीन खास दोस्तों सलीम, राजू और सुनील के इर्द गिर्द घूमती है। सलीम खुद को लड़कियों का दिल जीतने वाला मानता है। उसकी पसंद स्कूल में पढ़ने वाली मीनाक्षी है। सुनील भी मीनाक्षी को बहुत पसंद करता है। वह इस बारे में वह किसी को बताता नहीं है। इस बीच सलीम और मीनाक्षी में लव लेटर का आदान प्रदान होता है। मीनाक्षी एक खत में सलीम को बताती है कि उसकी एक सहेली उसके दोस्त को पसंद करती है। इस बात को लेकर राजू और सुनील में कंफ्यूजन होता है क्योंकि दोनों ही सलीम के दोस्त हैं। राजू और सुनील दोनों ही मीनाक्षी की सहेली को चिट्ठी लिखना चाहते है। राजू से पहले सुनील खत लिखता है लेकिन दोस्ती के लिए प्यार कुर्बान करने की सोचकर अपना खत राजू को दे देता है। खतों का एक सिलसिला शुरू हो जाता है। सुनील हमेशा राजू की तरफ से खत लिखता है और वह लव लेटर राइटिंग का एक्सपर्ट हो जाता है। वह खतों में पप्पू नामक एक पात्र इस तरह गढ़ लेता है कि मीनक्षी और उसकी सहेली दोनों उसके बारे में जानने को उतावली रहती हैं। सुनील खत तो लिखता है लेकिन यह राजू की तरफ से होते हैं, इसलिए वह मीनाक्षी या उसकी सहेली से मिल भी नहीं पाता है। इससे वह चिढ़चिढ़ाने लगता है और राजू से उसकी दूरियां बढ़ने लगती हैं। एक दिन वह पार्क में पहुंचकर सलीम और मीनाक्षी को देखता है। मीनाक्षी उसे ताकते हुए देख लेती है और सलीम से बताती है। सलीम अगले दिन विवाद करता है और सुनील को चांटा मार देता है। इससे उनकी दोस्ती टूट जाती है। सलीम और राजू अपने अपने रास्ते चलने लगते हैं और सुनील अपने घर पर एकांतवास में चला जाता है। सुनील को अपने दोस्तों की कमी खलती है और वह उनस मिलने मैदान पर पहुंच जाता है। तीनों दोस्त मिलने पर रोते हैं और कसम खाते हैं कि कभी लड़की के लिए दोस्ती पर आंच नहीं आने देंगे। सुनील के पिता पेशे से पत्रकार हैं और अंग्रेजी की ट्यूशन भी पढ़ाते हैं। मीनाक्षी भी उनसे ट्यूशन लेने आने लगती है। इससे मीनाक्षी और सुनील के बीच आंख मिचौली होने लगती है। मीनाक्षी एक दिन सुनील को लव लेटर देती है, उसमें लिखा होता है कि है तुम्हीं पप्पू हो। इसी के साथ नाटक का अंत होता है।
मंच पर
इस नाटक में अभिनय करने वालों में सुनील के गेटअप में पिंकू चौबे, सुनील-2 हिमांशु त्यागी, सलीम- आशुतोष कुमार केशव, राजू-राहुल बोर्डे, मीनाक्षी-युक्ति, नीना-श्रेया पोखरियाल मुख्य रहे। इनके अलावा टीचर और मां के रूप में मनदीप कौर, भिखारी हिमांशु मिश्रा, बस स्टॉप-सारांश दीक्षित पप्पू, कीर्ति कुमार व कोरस में मनीष शर्मा, मनीश पंवार, उत्कर्ष शर्मा के अभिनय ने भी दर्शकों को अंतिम दृश्य तक बैठने व देखने के लिए मजबूर कर दिया।