तनखा से हार गए गोटिया, राज्य सभा की दो सीटे भाजपा और एक कांग्रेस के कब्जे में
भोपाल, 11 जून। मध्यप्रदेश में कशमकश भरे राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस एक सीट पर कब्जा करने में सफल रही। देश के ख्यातिनाम वकील और कांग्रेस प्रत्याशी विवेक तनखा ने रोचक मुकाबले में भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी विनोद गोटिया को हरा दिया। भारतीय जनता पार्टी के दोनों प्रत्याशी अनिल माधव दवे और एमजे अकबर भी जीत हासिल करने में सफल रहे।
मध्य प्रदेश से राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव थे। संख्या बल के हिसाब से भाजपा को सीटें साफ तौर पर मिल रही थीं। तीसरी सीट के लिए भाजपा को 10 और कांग्रेस को एक वोट की दरकार थी। माना जा रहा था कि तीसरी सीट पर भाजपा कोशिश नहीं करेगी और कांग्रेस क विवेक तनखा भी निर्विरोध जीत जाएंगे। लेकिन नामांकन दाखिल करने के आखिरी दौर में बीजेपी ने अपने महामंत्री विनोद गोटिया को निर्दलीय के रूप में मैदान में उतारकर साधारण चुनाव को रोचक और कशमकश पूर्ण बना दिया। बसपा के चार विधायकों का समर्थन कांग्रेस को मिल जाने से कहानी खत्म सी लग रही था, लेकिन भाजपा आखिरी दौर तक इस रोचक बनाए रखने में सफल रही। इसके चलते बीते 12 सालो में पहली कांग्रेस के दिग्गज नेता एकजुट दिखाई दिए। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज नेता भोपाल में एक तरह से डेरा डाले रही। साधारण सा दिखने वाले चुनाव की गूंज चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक पहुंच गई। बसपा का समर्थन कांग्रेस को मिल जाने से भाजपा के सारे गणित धरे रह गए। उसके बाद उसके एक विधायक राजेंद्र मेश्राम को वोटिंग अधिकार से वंचित कर दिया गया और एक विधायक राजेद्र दादू का एक हादसे में दुखद निधन हो गया। यह बीजेपी के लिए बड़ा झटका था। वहीं कांग्रेस न सिर्फ बसपा का समर्थन लेने में सफल रही बल्कि अपने कानूनी लड़ी लड़कर विधायक सत्यदेव कटारे को पोस्टल वैलेट का अधिकार दिलाने तथा जेल में बंद अपने एक अन्य विधायक की जमानत कराने में सफल रही। इसी के चलते विवेक तनखा इस बार राज्यसभा में जाने में सफल रहे।
विवेक तन्खा को राज्यसभा पहुंचाने का पूरा जिम्मा कमलनाथ के कंधे पर था। कमलनाथ ने अपना पूरा अनुभव झोंकते हुए बीजेपी को कांग्रेस विधायकों पर डोरे डालने का कोई मौका नहीं दिया। एक-दो बार बीजेपी ने कोशिश भी की, लेकिन कमलनाथ की रण्नीति की वजह से उसे कामयाबी नहीं मिली। इस चुनाव में काफी समय बाद कांग्रेस के सभी दिग्गज एकजुट होते दिखे।
संख्या बल के हिसाब से बीजेपी तीसरी सीट पर पहले दिन से पीछे थी। माना जा रहा था कि बीएसपी विधायकों को अपने पक्ष में करके वह मुकाबला रोचक बना सकती है, लेकिन मायावती के व्हिप के बाद चार वोट कांग्रेस के खाते में चले गए। कहा जा रहा है कि बीजेपी का प्रदेश संगठन सिर्फ दो उम्मीदवार ही खड़े करना चाहता था, केंद्रीय नेतृत्व के कहने पर उसे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर गोटिया को आगे करना पड़ा। यह भी माना जा रहा है कि बीजेपी किसी भी तरह राज्यसभा में कांग्रेस को सीमित करना चाहती है, उसी की रणनीति के तहत यह कदम उठाया गया था। तीसरी सीट पर बीजेपी की हार उसकी रणनीतिक हार भी मानी जा रही है। जब बीजेपी ने गोटिया के रूप में निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा किया तो माना जा रहा था कि उन्हें जिताने के लिए प्रदेश संगठन पूरी ताकत झाेंक देगा, लेकिन संगठन ऐसा नहीं कर सका। अब प्रदेश संगठन को केंद्रीय नेतृत्व के सामने जवाब देना होगा।
भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी विनोद गोटिया को मात्र 50 वोट ही मिले हैं। गोटिया ने हार स्वीकार करते हुए बसपा पर भ्रष्टाचारियों का साथ देने का आरोप लगाया है। गोटिया ने कहा कि मायावती से ऐसी उम्मीद नहीं थी। तन्खा ने जीत के लिए धनबल का प्रयोग किया है, अब वे मायावती के साथ मिलकर ही काम करें। उल्लेखनीय है कि बीएसपी के चारों विधायकाें ने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया है।
गौरतलब है कि कांग्रेस विधायकों को एकजुट रखने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ तीन दिनों से भोपाल में डेरा डाले हुए थे। प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है कि कांग्रेस ने विधायकों को एकजुट रखने के लिए डिनर डिप्लोमेसी का सहारा लिया। शुक्रवार रात को कमलनाथ के घर पर कांग्रेस विधायकों को भोज दिया गया। इसके बाद सभी विधायक एकसाथ एक होटल में जाकर रुके और सुबह होटल से सीधे विधानसभा वोट डालने के लिए पहुंचे थे। खरीद फरोख्त की आशंका के चलते कांग्रेस अपने प्रत्याशियों के लिए व्हिप पहले ही जारी कर चुकी थी, इसके मद्देनजर पार्टी विधायकों ने अपना वोट चुनाव एजेंट को दिखाकर डाला।
पिछले कुछ सालों में भाजपा ने हर चुनाव के पहले कांग्रेस को बड़े झटके दिए, इसलिए इस बार कांग्रेस ज्यादा सावधान थी। भाजपा की रणनीति से ज्यादा कांग्रेस की कमजोरी और गुटबाजी के चलते पिछली बार यही विवेक तनखा इसी तरह के मुकाबले में राज्यसभा का चुनाव हार गए थे। तब भाजपा ने बसपा और सपा को अपने पक्ष में करने में सफलता हासिल कर ली थी। इस बार भाजपा का गणित बिगड़ गया। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा का हाईकमान कांग्रेस को वाक ओवर देने के मूड में नहीं था लेकिन राज्य नेतृत्व चाह रहा था कि तनखा जीतें इसलिए भाजपा ने तीसरी सीट के लिए चुनाव मन से नहीं लड़ा।