जश्न ए उर्दू में याद किए गए कृष्ण चंदर और सुल्तानपुरी
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। रवींद्र भवन में चल रहे मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के तीन दिवसीय प्रतिष्ठापूर्ण समारोह जश्न–ए-उर्दू में दूसरे दिन कालजयी कहानीकार कृष्णचंदर को संवाद और ख्यातिलब्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को संगीत के जरिए याद किया गया। कृष्णचंदर की कहानियों पर परिचर्चा हुई और मजरूह सुल्तानपुरी की गजलें पेश की गईं। महिलाओं के मुशायरे के साथ टी.वी., रेडियो, थियेटर, सिनेमा और विदेशों में उर्दू पर संवाद आयोजित हुआ। स्पेशल बच्चों की संस्था आरुषि भोपाल के बच्चों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं और पार्श्व गायिका कविता सेठ ने सूफियाना गायन ने माहौल मे रंग भर दिए।
उर्दू जबान-ओ-अदब, उर्दू तालीम और तहज़ीब ओ सक़ाफ़त पर आधारित जश्न ए उर्दू समारोह के दूसरे दिन के प्रात:कालीन सत्र में कालजयी लेखकों में गिने जानेवाले कृष्णचंदर की कहानियों पर परिचर्चा के जरिए संवाद हुआ और उन पर शोध लेख भी पढ़े गए। मंटो के समकालीन माने जाने वाले कृष्णचंदर अपनी कहानियों के लिए विख्यात हैं। उनकी कहानियों में रुमानियत भी दिखाई देती है और हकीकत भी समाई रहती है। उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों ही भाषाओं में बहुत यादगार कहानियां लिखी हैं। प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े होने के कारण उनकी रचनाओं में यथार्थ का चित्रण होता है। अजनबी आखें, एक तवाइफ का खत, दो फलांग लंबी सड़क, पेशावर एक्सप्रेस, अन्नदाता, आधा घंटे का खुदा जैसी उनकी कहानियां आज भी सम-सामयिक लगती हैं। ग़ाज़ियाबाद के दीपक बुदकि ने “कृष्ण चन्द्र की तन्ज़ो मिज़ाह निगारी” शीर्षक से लेख प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कृष्ण चन्द्र उर्दू फिक्शन में तन्ज़ो मिज़ाह के सम्राट थे। उन्होंने तन्ज़ो मिज़ाह को बतौर आला इस्तेमाल किया। अनजाम नहीं बनने दिया यही वजह है कि उनकी तहरीरों में हमेशा तंज़ की एक ज़र्रीं लहर रवाँ रहती है। डा. सैफी सिरोंजी ने अपने शोध लेख में कहा कि कृष्णचन्द्र की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उनकी हर तहरीर इतनी शगुफ्ता और नरम-ओ-नाजुक खूबसूरत अल्फाज़ से मुज़ईयन होती है कि उनके अफसानों में भी इंसाइए का गुमान होता है। श्रीमती निगार अज़ीम, दिल्ली ने अपने लेख में कहा कि कृष्णचन्दर ने अपने अफसानों में औरत को एक आदर्श नारी यानी मिसाली किरदार के रूप में पेश किया है। इनके अलावा भोपाल के नईम कौसर एवं प्रो. अज़हर राही ने कृष्ण चन्द्र के अफसाना निगारी पर चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन सुश्री रुशदा जमील ने किया।
परिचर्चा के बाद भोपाल से बाहर के हाई स्कूल, हायर सेकेण्डरी की परीक्षा में 90 प्रतिशत या उससे अधिक उर्दू विषय में अंक प्राप्त करने वालों एवं उर्दू सप्ताह की प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार वितरित किये गये। एम.ए. के मेधावी छात्र को प्रोफसर आफाक एहमद के फंड से पुरस्कार दिया गया। इसमें प्रदेश के जबलपुर, इन्दौर, बुरहानपुर, खण्डवा, सीहोर, ग्वालियर के लगभग 280 छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।
दोपहर के सत्र में महिलाओं के लिए मुशायरे काआयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता जयपुर की श्रीमती मलका नसीम ने की। जिन शायरात ने कलाम पेश किया उनमें अलीना इतरत-नोएडा, मुमताज़ नसीम-दिल्ली, फौज़िया रबाब-गोआ, डा. क़मर सुरूर-अहमदनगर, हिना तैमूरी- आगरा, सुल्ताना हिजाब, डा. अंबर आबिद-भोपाल, रश्मि सबा-ग्वालियर, नफीसा सुल्ताना अना-भोपाल, दीपशिखा सागर-छिंदवाड़ा एवं शाइस्ता सना-कानपुर शामिल रहीं। मुशायरे का संचालन डा. वसीम राशिद, दिल्ली ने किया।
दोपहर बाद हुए सत्र में टी.वी., रेडियो, सिनेमा और विदेशों में उर्दू विषय पर संवाद का आयोजन किया गया। फिल्मी अदाकर रज़ा मुराद, राजीव वर्मा, श्याम मुंशी भोपाल, डा. सिराज अजमली अलीगढ़, सुहेल बुखारी, कतर ने इस परिचर्चा में हिस्सा लिया और फिल्मों में उर्दू की एहमियत पर बात की। सभी ने कहा कि फिल्मों में उर्दू का बहुत बड़ा योग्दान है और इसके लिये इतने कम वक्त में बात की जाना मुमकिन नहीं है। कार्यक्रम का संचालन मेहमूद मलिक ने किया।
शाम के सत्र में जाने माने गीतकार मजरूह सुल्तापुरी को याद किया गया। इस मौके पर महफिल ए गजल में सुश्री कीर्ति सूद ने मजरूह सुल्तानपुरी के कलाम संगीत के साथ पेश किए। रात्रिकालीन सत्र में स्पेशल बच्चों की संस्था आरूषी के बच्चों ने मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए। रात के आखिरी सत्र में सूफी पार्श्व गायिका कविता सेठ ने सूफियाना कलाम पेश किए। कार्यक्रम का संचालन सुश्री समीना अली ने किया।