जनजातीय संग्रहालय ने बंद किया बाल फिल्मों का प्रर्दशन
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। मध्यप्रदेश शाासन के संस्कृति विभाग के प्रमुख उपक्रम जनजातीय संग्रहालय में बच्चों की फिल्मों का प्रदर्शन बंद कर दिया गया है। संग्रहालय में लंबे अरसे से हर वर्ग, आयु के मनोरंजन के लिए विभिन्न कार्यक्रम लगातार होते आ रहे हैं। इनमें उल्लास में हर गुरूवार को दिखाई जाने वाली बाल फिल्म, नाट्य प्रेमियों के लिए प्रत्येक शुक्रवार को विभिन्न क्षेत्रों की बोलियों एवं खास शैली में नाटक तथा गायन, वादन एवं नृत्य में दिलचस्पी रखने वालों के लिए हर रविवार को शास्त्रीय गायन, वादन एवं परंपरागत नृत्य पर आधारित कार्यक्रम किए जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ महीनों से गुरूवार को होने वाली बाल फिल्मों का प्रदर्शन बंद कर दिया गया।बच्चों के मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धक फिल्मों को फरवरी-मार्च में यह कहते हुये बन्द किया गया कि अभी बच्चों की परीक्षाएं हैं, बच्चे डिस्टर्ब न हों इसलिए कुछ समय के लिए फिल्मों का प्रदर्शन बंद किया जा रहा है। बच्चों को आशा थी कि मई, जून में इन फिल्मों को देखने को मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जनजातीय संग्रहालय से जानकारी लेने पर मालुम हुआ कि बच्चे अब अपनी सुविधानुसार मोबाईल आदि पर अपनी पसंद की फिल्मों को किसी भी समय देख लेते हैं। इस कारण बच्चे यहां आने में अब कम रुचि लेते हैं। मई-जून में एक-दो बार बाल फिल्मों के प्रदर्शन को करने की कोशिश की गई किन्तु बच्चों की पर्याप्त अनुपस्थिति के कारण इसे पुन: बंद कर दिया गया।
इस दिशा में काम करने वाली संग्रहालय की समिति का कहना है कि इसकी जगह अब संस्थान द्वारा यह तय किया जा रहा है कि बच्चों में कला के प्रति रुझान पैदा करने के उद्देश्य से प्रत्येक त्रैमास अथवा प्रति माह बच्चों की गतिविधियों से संबंधित कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। कुछ जिम्मेदारों के अनुसार इसके अंतर्गत नाट्य विधा, गायन, वाद्य, डांस, चित्रकला, मिमिक्री आदि को सम्मिलित किया जाएगा। इसके लिए ऐसी गतिविधियों में भाग लेने के लिए स्कूलों, संस्थाओं को आमंत्रित किया जा रहा है। जनजातीय संग्रहालय में एक समिति का गठन किया जा रहा है जिसके द्वारा इन प्रविष्टियों में यह देखा जाएगा कि कौनसा बच्चा किस विधा में पारंगत है, उससे संबंधित बच्चों को जनजातीय संग्रहालय में मंच प्रदान किया जाएगा। संग्रहालय का मानना है कि बड़े कलाकारों को तो उनकी कला के अनुसार मंच मिल जाता है लेकिन बच्चों को कहीं भी मंच उपलब्ध नहीं होता। अत: इस दिशा में पहल कर विभिन्न कलाओं के प्रदर्शन के लिए बच्चों को मंच उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है। इसी तरह यह भी तय किया जा रहा है कि जनजातीय संग्रहालय के स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेकर जिन बच्चों द्वारा चित्रों को बनाया गया, उन्हें अलग स्थान देने व संग्रहालय के कैलेंडर आदि में स्थान दिया जाए, पर भी विचार किया जा रहा है। आयोजकों का मानना है कि बाल फिल्मों को ही बंद किया गया है लेकिन हर अक्टूबर में 5 दिन विभिन्न क्षेत्रों की बोली, संस्कृति के अनुसार कठपुतली प्रदर्शन के अलावा इसी तरह के अन्य कार्यक्रम बच्चों के लिए किये जाते हैं, जिन्हें बच्चे पसंद भी करते हैं और भीड़ भी अच्छी रहती है। इस तरह के कार्यक्रमों को और अधिक बढ़ावा देने की तरफ काम किया जा रहा है, जो जल्दी ही सभी को देखने को मिलेंगे।
कुछ बच्चों से पूछने पर मालुम पड़ा कि जनजातीय संग्रहालय में इन बाल फिल्मों को दिखाए जाने का समय व दिन मैच नहीं करते हैं। गुरूवार को शाम का 4 बजे का समय होने की वजह से बच्चों का पहुंच पाना मुश्किल होता है। बच्चे लगभग हर दिन स्कूल से दो ढाई बजे घर पहुंच पाते हैं वहीं कुछेक बच्चे माता-पिता के वर्किंग होने की वजह से जाने में असफल रहते हैं। इन फिल्मों का समय यदि अन्य अवकाश वाले दिन कर दिया जाता तो शायद बच्चों के अधिक संख्या में पहुंच पाने में सुविधा होती। अगर इसी तरह का अन्य कार्यक्रमों का भी समय रखा जाता है तब निश्चित ही बच्चों की भागीदारी इनमें भी पर्याप्त नहीं हो पाएगी। ऐसे में कहीं तयशुदा समय के कारण कार्यक्रम फ्लाप साबित न हो जाएं।
बच्चो की कमी के कारण बंद हुई फिल्में
फिल्में बच्चों के न आने के कारण बंद करना पड़ा। उसकी जगह बच्चों को विभिन्न विधाओं के द्वारा जनजातीय संग्रहालय में मंच दिए जाने की कोशिश की जा रही है। निश्चित ही यह योजना सफल साबित होगी, साथ ही बच्चों में कला के प्रति अधिक रुझान पैदा होगा।
अशोक मिश्रा
जनजातीय संग्रहालय