चुनाव परिणामों ने कांग्रेस भाजपा दोनों की पोल खोली
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 16 अगस्त। शिवराज सरकार का लिटमस टेस्ट और अगले विधानसभा चुनावों का सेमी फाइनल माने जा रहे 43 नगरीय निकायों के चुनाव में सर्वाधिक सीटें जीतने के बावजूद सत्तारूढ़ बीजेपी को झटका लगा है। वहीं पिछली बार की तुलना में अधिक सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस को अपने दिग्गजों के क्षेत्र में पराजय का सामना करना पड़ा है, जिससे यह साबित गया कि मप्र कांग्रेस में अभी भी संगठन, समन्वय और संकल्प की बेहद कमी है। इन चुनावों के परिणामों ने मप्र की मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टियों कांग्रेस और भाजाप दोनों की पोल खोल दी है।
मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय की 43 सीटों के लिए हुए चुनाव के परिणामों ने मप्र की सियासत के भविष्य को नए सिरे से तलाशने पर मजबूर कर दिया है। इस चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को सबसे अधिक 25 सीटों मिलीं हैं। लेकिन यह संख्या पिछली बार की तुलना में 3 कम है। पिछले साल बीजेपी ने इन इलाकों में 28 सीटों पर फतह हासिल की थी। सबसे अधिक सीटें जीतने की खुशी बीजेपी ने जमकर मनाई, लेकिन पार्टी के दिग्गजो के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि जब पार्टी न पूरी ताकत झोंक दी, मुख्यमंत्री लगातार चुनाव क्षेत्रे में ही डेरा डाले रहे, तब यह हालात हैं। पार्टी को खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कृषि मंत्री गौरी शंकर बिसेन, उद्यानिकी मंत्री सूर्य प्रकाश मीणा, सांसद बोध सिंह भगत आदि के क्षेत्र मे पराजय का सामना करना पड़ा। किसान आंदोलन, मंदसौर गोलीकांड, प्याज पर लगाम जैसे मुद्दों के बावजूद कांग्रेस को धता बताते हुए बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन दिग्गजों के क्षेत्र में जिस तरह पार्टी को मुंह की खानी पड़ी उससे लग रहा है कि बहुत जल्द बड़ा बदलाव होगा।
वहीं कांग्रेस इस बात से बेहद खुश है कि उसने अपनी सीटों की संख्या पिछले साल की तुलना में बढ़ा लीं। लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं की विघटनकारी नीतियों के चलते स्थतियां बिगड़ गई और कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिय़ा, कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज नेताओं के इलाकों में भाजपा को बढ़त हासिल हुई है। कमलनाथ के छिंदवाड़ा इलाकें में भाजपा भले एक ही सीट पर जीत पाई हो लेकिन सिंधिया के गढ़ में पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा। किसान आंदोलन के बहाने सरकार को सरे राह गाली देने वाले, प्याज के मुद्दे पर आंदोलन को हिंसात्मक बना देने के बावजूद कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनता में व्याप्त एंटी इनकम्बेंसी को नहीं भुला पाई। चुनाव के दौरान जब भाजपा के स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनाव क्षेत्रों की गलियों में भटक रहे थे, तब कांग्रेस एक भी बड़ा नेता मैदान में नहीं था। चुनाव परिणाम में उसकी झलक साफ दिखाई पड़ रही है। अभी भी मौका है दोनों पार्टियों के लिए कि अपने अपने नेताओँ को सबक सिखाएं तथा कार्यकर्ताओँ को एकजुट करें। अन्यथा 2018 का विधानसभा एकदम नई कहानी कहेगा।