चालीस साल बाद ताले से बाहर निकले भोले नाथ और नंदी
छतरपुर। भगवान भोलेनाथ और नंदी एक मंदिर के गर्भगृह में ताले में बंद रहे। थोड़े बहुत समय के लिए नहीं बल्कि करीब चालीस साल तक। चलीस साल बाद उन्हें तालाबंद गर्भगृह से मुक्ति मिली और भोलेनाथ और नंदी पर जल चढ़ाया जा सका। यह मामला मध्यप्रदेश के विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो का है। दुनिया भर में मशहूर खजुराहो के प्रतापेश्वर मंदिर में यह सब हुआ है।
खजुराहो के पश्चिम समूह मंदिर परिसर में 18 वीं शताब्दी का प्रतापेश्वर मंदिर है। यह पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिर समूह है। अपनी स्थापत्य कला के लिए मशहूर खजुराहो के तमाम मंदिरों की तरह प्रतापेश्वर मंदिर भी पर्यटक बाहर से ही देखकर लौट जाते हैं। किसी को पता ही नहीं था कि ताला बंद इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान भोलेनाथ और नंदी स्थापित हैं। पुरातत्व विभाग ने मंदिर के गर्भगृह में चूने की बोरियां रख रखी थीं। शिवशंकर और नंदी इन्हीं बोरियों के बीच दबे पड़े थे। कुछ दिन पहले मीडिया में हंगामा मचा तो पुरातत्व विभाग की नींद खुली। कुछ हिंदुवादी संगठनों ने भी दबाव बनाया और अंततः मंदिर के गर्भगृह का ताला खोल दिया गया। वहां से बोरियां और अन्य सामान हटाया गया तो ब्लैक स्टोन से बने भोले नाथ और नंदी की प्रतिमाएं बाहर आ गईं।
इस मंदिर में मूर्तियां होने की खबर फैली तो दर्शन करने वालों की भीड़ लग गई। पुरातत्व विभाग ने मूर्तियों को विधिविधान से नहला कर पूजा अर्चना करवाई। खजुराहो में गाइड का काम करने वाले लोगों तक को आश्चर्य है कि मंदिर के अंदर इस तरह से भगवान ताले में बंद थे। अब पुरातत्व विभाग इस कोशिश में है कि मंदिर के गर्भगृह में रखा सारा सामान बाहर कर दिया जाए ताकि मंदिर आने वाले लोग भगवान के दर्शन भी कर सकें।