चंबल अंचल में सिंधिया समर्थकों की हार ने सियासी समीकरण बदले

Nov 14, 2020

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 14 नवंबर। प्रतिष्ठा का प्रश्न बने विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने 28 सीटों में से 19 जीतकर भले ही सरकार बचा ली हो, लेकिन सरकार बनाने और बचाने के खेल के मुख्य किरदार रहे ज्योतिरादत्य सिंधिया के गढ़ में पार्टी की हार ने तमाम सियासी समीकरण बदल दिए हैं। यही कारण है कि भारी-भरकम जीत के बावजूद सिंधिया खेमे के दो मंत्रियों को तुरंत शपथ दिलाने का मामला अटक गया, इससे सिंधिया का कद अपने आप घटता दिखाई पड़ रहा है। इसका असर इस बार कैबिनेट के गठन में साफ दिखाई पड़ेगा।

मध्यप्रदेश में चुनाव के पहले तक सरकार उहापोह की स्थिति में थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कई सभाओं में कह चुके थे कि अभी वह टेम्प्रेरी हैं, इसलिए परमानेंट सीएम बनाने के लिए भाजपा के प्रत्याशियों को जिताइए। उनकी इस अपील का असर पड़ा और भाजपा चुनाव जीत गई। शिवराज सिंह चौहान अब परमानेंट मुख्यमंत्री हो गए, लेकिन इस पूरे खेल के मुख्य किरदार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के घर में पार्टी को जिस तरह पराजय का सामना करना पड़ा उससे अगले सियासी समीकरण बिगड़ते दिखाई पड़ रहे हैं।पहले लग रहा था कि सिंधिया खेमे के दो कद्दावर मंत्रियों गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को जीतने के तुरंत बाद फिर से शपथ दिला दी जाएगी क्योंकि दोनों का इस्तीफा तकनीकी कारणों से भी चुनाव के बीच हुआ था… लेकिन सिंधिया के गढ चंबल ग्वालियर अंचल में 16 में से 7 सीटें गंवाने के बाद बीजेपी अब थोड़ा फ्रंट फुट पर आ गई है। सीएम ने खुद कैबिनेट विस्तार से फिलहाल इंकार कर दिया है। कांग्रेस इसका सारा श्रेय अपने ऊपर ले रही है। पार्टी का दावा है कि उसका जो टारगेट पूरा हो गया। सिंधिया के गढ़ में सिंधिया को मात दे दी। उसका असर कैबिनेट के गठन पर भी दिखाई देगा। इसलिए अब कैबिनेट विस्तार जल्दी होने की उम्मीद नहीं दिखाई पड़ रही है।

भारतीय जनता पार्टी इस बात को नहीं मानती। भाजपा का दावा है कि संगठन ने पूरी शिद्दत के साथ अपना काम किया है। ग्वालियर चंबल क्षेत्र की जिन 16 सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें सभी पर कांग्रेस का कब्जा था। सिर्फ दो साल बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने उसमें से 9 सीटें छीन लीं। पार्टी का दावा है कि कैबिनेट का विस्तार करना और उसमें विधायकों को शामिल करना मुख्यमंत्री का संवैधानिक और विशेषाधिकार है।

चुनाव के परिणाम और कैबिनेट के विस्तार पर सीएम के इंकार से इस बात के संकेत साफ लग रहे हैं कि सिंधिया खेमे को अब सरकार में पहले जैसी तवज्जो नहीं मिलेगी। अगर कैबिनेट विस्तार कुछ दिन बाद हुआ भी तो सिर्फ तुलसी सिलावट और गोविंद सिंतह राजपूत के अलावा सिंधिया खेमे से और कोई मंत्री नहीं बनेगा। भाजपा चुनाव परिणाम के संदेश को सिंधिया तक पहुंचाने की कोशिश जरूर करेगी।