गुजरात में बीजेपी को बचाने के लिए आनंदी बेन की सियासी बलि
नई दिल्ली। गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन के इस्तीफे की पेशकश ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौंकाया नहीं है। उनकी पेशकश ने विश्लेषकों के इस दावे को और मजबूत कर दिया है कि मोदी के गुजरात में बीजेपी का ग्राफ तेजी से गिर रहा है। बीजेपी को बचाने की कवायद में आनंदी बेन को उम्र का हवाला देकर सत्ता सिंहासन से उतारा जा रहा है। यह आनंदी बेन की नहीं बल्कि बीजेपी के बड़े रणनीतिकारों की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है।
गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने फ़ेसबुक पर इस्तीफ़ा देने की पेशकश की है, उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देते हुए कहा है कि वे नवंबर में 75 साल की हो जाएंगी, इसलिए अब संगठन के नीतिगत फैसले के तहत उनके लिए सीएम का पद छोड़ना उचित होगा। लेकिन गुजरात की राजनीति पर नज़र रखने वाले मानते हैं कि इस्तीफ़े का असल कारण गुजरात में बीजेपी का गिरता ग्राफ है। आंनदी बेन के इस फ़ैसले से गुजरात में किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। बीजेपी समेत गुजरात में एक बड़ा तबका मानता था कि गुजरात बीजेपी को बचाने के लिए नेतृत्व परिवर्तन के सिवा और कोई चारा नहीं है।
जब 2014 के लोकसभा के चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला तो नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री ना बने रहने की बात तो पक्की थी, लेकिन गुजरात में नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में आनंदीबेन पटेल का नाम सामने आने से उस समय ही गुजरात बीजेपी में हड़कंप मच गया था। कई वरिष्ठ नेताओं को एक तरफ करके उन्हें मुख्यमंत्री का पद दिया गया था। इसीलिए जब से आनंदीबेन पटेल ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तभी से उनकी स्थिति वन-वुमैन आर्मी जैसी ही गई थी।
आनंदीबेन पटेल को दो साल के कार्यकाल में एक साथ कई मोर्चों पर अकेला ही लड़ना पड़ा। सबसे पहले उन पर अपनी बेटी अनार पटेल को वन विभाग की सरकारी ज़मीन सस्ते दामों में देने का आरोप लगा था। दूसरा आरक्षण को लेकर डेढ़ साल से पाटीदार आंदोलन चल रहा है। अभी यह आंदोलन ख़त्म भी नहीं हुआ था कि दलित आंदोलन शुरू हो गया है। जानकारों के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गुट भी आनंदीबेन को हटाए जाने की मांग आला कमान से कर रहा था। आनंदीबेन पटेल पर पार्टी के सीनियर नेता ये भी आरोप लगाते थे कि वो पार्टी नेताओं के साथ विचार विर्मश नहीं करती हैं और सभी फ़ैसले ख़ुद ही करती हैं। गुजरात में पटेल और दलित आंदोलन को उन्होंने गंभीरता से लिया ही नहीं, उसी कारण से पार्टी को काफी नुकसान हुआ है। पार्टी के नेताओं की भी समझ में आ रहा है कि ऐसा ही चलता रहा तो 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है।
इसलिए बीजेपी को बचाने के लिए आनंदी बेन को कुर्सी से उतारा जा रहा है। हालांकि आधिकारिक तौर पर बीजेपी इससे सहमत नहीं है।