खूनी संर्घष में बदलती वैचारिक लड़ाई

Mar 04, 2017

नई दिल्ली, 4 मार्च। देश के दक्षिणी हिस्से में वामपंथियों और आरएसएस के बीच वैचारिक विवाद गहराता जा रहा है। केरल में वामपंथी विचारधारा की सरकार बनने के बाद यह लड़ाई और तेज हो गई है और अब यह खूनी संर्घष में बदल रही है। दोनों विचारों के लोगों के बीच हिंसात्मक झड़पों में दोनों पक्षों के लोग मारे जा रहे हैं। दोनों ही पक्ष इसके लिए एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं, लेकिन कोई भी न तो अपनी गलती मानने को तैयार है और न ही पीछे हटने को। इसके चलते स्थिति अभी और गंभीर होने की आशंका बढ़ती जा रही है।

केरल में संघ कार्यकर्ताओं पर हमले का आरोप लगाने वाले संघ ने पिछले दिनों देश भर में धरना दिया। संघ किसी भी मुद्दे को लेकर सड़क पर बहुत कम उतरता है, इसलिए संघ ने धरना दिया तो देशभर में इसकी चर्चा हुई। संघ के बड़े नेता माने जाने वाले केरल के जेके नंदकुमारन आरोप लगाते हैं कि माकपा केरल से आरएसएस को मिटा देना चाहती है। अब केरल में माकपा की सरकार है तो उसे यह आसान लगने लगा है। इसके जवाब में माकपा नेता ए.के. पद्मनाभन उल्टे आरएसएस के लोगों पर नफरत और हिंसा फैलाने का आरोप लगाते हैं। उनका आरोप है कि मध्यप्रदेश के एक संघ नेता ने केरल के मुख्यमंत्री का सिर काटकर लाने वाले को एक करोड़ का ईनाम देने की घोषणा कर दी। संघ ने उसके बयान से किनारा तो कर लिया लेकिन उस शख्स के खिलाफ कोई पुलिस कार्रवाई तक नहीं हुई। इससे साफ है कि संघ के लोग हिंसा को बढ़ावा देने वालों के साथ हैं और वे खुद विवाद की स्थिति बनाते हैं। वहीं संघ नेता नंदकुमारन कहते हैं कि केरल में आरएसएस के प्रचारक की हत्या हो जाती है और सरकार कुछ एक्शन नहीं लेती है। इससे साफ है कि माकपा सरकार किसी भी तरह संघ को खत्म करने की रणनीति पर विचार कर रही है।

केरल में संघ और वाम मोर्चा के बीच लड़ाई दशकों पुरानी है। एक-दूसरे के ख़िलाफ़ आरोप भी उतने ही पुराने हैं। आरोप है कि वाम मोर्चा ने 1947 में संघ प्रमुख गोलवलकर की एक सभा पर हमला किया था। केरल में संघ की स्थापना 1942 में हुई थी और संघ को उसी समय से दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन माकपा इस आरोप को सिरे से खारिज करती है। माकपा का कहना है कि संघ के लोग गलत बयानबाजी करते हैं। आकंड़ों के अनुसार केरल में पिछले एक साल में हिंसा की वारदातों में 30 फ़ीसदी का इजाफ़ा हुआ है। अकेले कन्नूर ज़िले में पिछले साल मई से अब तक हिंसा की 400 घटनाएं हुई हैं। इनमें सीपीएम के 600 और बीजेपी-संघ से जुड़े 280 लोग गिरफ़्तार किए गए हैं। माकपा का आरोप है कि केंद्र में भाजपा की सरकार के आने के बाद से संघ के नफ़रत फैलाने के काम में तेज़ी आई है। दूसरी ओर आरएसएस का दावा है कि बढ़ती हिंसा के पीछे पिछले साल के विधानसभा चुनाव के नतीजे हैं। इस चुनाव में भाजपा ने न केवल एक सीट हासिल करके केरल में अपना खाता खोला बल्कि 2011 विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले अपना वोट शेयर सौ फ़ीसद बढ़ा लिया। पार्टी को पिछले चुनाव में 15 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे जबकि, 2011 में इसे सिर्फ़ 7 प्रतिशत से वोट हासिल हुए थे। आरएसएस नेताओं के अनुसार केरल में संघ की स्थापना के 75 साल हो चुके हैं. सियासी तौर पर उसे अधिक सफलता भले न मिली हो, लेकिन सांस्कृतिक रूप से संघ आगे बढ़ा है। नंदकुमार के अनुसार, केरल में आरएसएस की 4,000 शाखाएं हैं। यह संघ के किसी भी दूसरे संगठनात्मक प्रान्त की शाखाओं से ज़्यादा है। वहीं वाम मोर्चा ने हमेशा संघ पर देश और समाज को बांटने के एजेंडे पर काम करने का आरोप लगाया है। माकपा नेता पद्मनाभन कहते हैं,  कि केरल सेक्युलर भारत के लिए एक मिसाल है। इसकी रक्षा करने के लिए हमने अपनी जान दांव पर लगा दी है। एक बास त तय है कि हालात बदतर होते जा रहे हैं। अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई तो अभी कई और जानें जा सकती हैं।