खाली खजानेे नेे बांधेे सरकार केे हाथ, कर्ज सेे चलेेगा काम
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। जनता से तमाम वायदे कर सत्ता में आई कांग्रेस को खस्ता वित्तीय हालत के चलते वायदे पूरे करने में पसीना आ रहा है। राज्य के खाली खजानेे ने कमलनाथ सरकार के हाथ बांध दिए हैं। कई प्रोजेक्ट पर ब्रेेक लग रहा है और कई विभागों में वेेतन नहीं बंट पाने की स्थिति बन रही है। राज्य सरकार को केंद्र से मिलने वाली वित्तीय मदद भी अब समय पर नहीं मिल रही है। यहां तक कि जीएसटी में मिलने वाली राज्य सरकार के हिस्से के मासिक किस्त भी पिछले दो महीने से नहीं आ रही है। इसके चलते सरकार के पास कर्ज लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बच रहा है। अब सरकार केंद्र पर राशि के लिए दबाव बनाने के साथ ही बाजार से एक हजार करोड़ का कर्जा और उठाने जा रही है।
मध्यप्रदेश की नवगठित कमलनाथ सरकार ने किसानों की ऋण माफी सहित अपने तमाम चुनावी वायदों पर अमल तो शुरू कर दिया है, लेकिन प्रदेश की खस्ता वित्तीय हालत तमाम मुश्किल खड़ी कर रही है। सरकार के खजाने में योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए राशि नहीं बची है। इसके चलते कर्मचारियों को समय पर वेतन और अन्य भुगतान करने में काफी दिक्कत आ रही है। सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि केंद्र से माली मदद नहीं मिलने के कारण भी स्थितियां और खराब हो रही है। केंद्र ने कई योजनाओं के लिए अपने हिस्से की राशि का भुगतान नहीं किया है। बताया जाता है कि प्रशासनिक अमले के चुनाव में उलझे होने के कारण कई योजनाओं में पहले मिली राशि का हिसाब किताब केंद्र को नहीं पहुंचा। इसके चलते भी मदद समय पर नहीं मिल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र से मिलने वाली राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र समय पर केंद्र को नहीं मिलता तो मैचिंग ग्रांट नहीं आती है। यह पहले से चली आ रही समस्या है, लेकिन यह भी सच है कि राज्य में सरकार बदल जाने के कारण अब मध्यप्रदेश केंद्र की नजर में टाप प्रायरटी पर नहीं रहा। इसलिए भी समय पर राशि आने में दिक्कत हो रही है।
सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कई योजनाओं में राशि का उपयोगित प्रमाणत्र केंद्र को पहुंचा दिए जाने के बाद भी अगली किश्त जारी नहीं हुई। अगर यह किश्त मार्च तक आएगी तो खर्च कर पाना मुश्किल होगा। इसके लिए शासन स्तर पर पत्र व्यवहार शुरू हो गया है। सूत्रों का कहना है कि इससे बड़ी समस्या जीएसटी में मिलने वाले हिस्से की मासिक राशि का रुक जाना है। बताते हैं कि जीएसटी के हिस्से की मासिक राशि राज्य के खाते में हर महीने की पहली तारीख को आ जाती थी। सरकार बदलने के बाद यह स्थिति नहीं रही। दिसंबर की राशि पांच तारीख के बाद आई और जनवरी की राशि अभी तक नहीं आई है। फरवरी की राशि का अभी कोई संकेत नहीं है। इस मद में हर महीने करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए राज्य के खाते में आते हैं। इसके रुक जाने से सरकार के रूटीन खर्चे प्रभावित हो रहे हैं।
राज्य सरकार की बड़ी चिंता इस बात की है कि कुछ दिनों बाद वित्तीय वर्ष समाप्त हो जाएगा और उसके बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग जाएगी। ऐसे में सरकार की कई योजनाओं पर ब्रेक लग जाएगा। इसलिए सरकार को वित्तीय संसाधन अभी जुटाने पड़ेंगे। इसके लिए आनन फानन में नए कर्ज लेने की तैयारी की जा रही है। अपने छोटे से कार्यकाल में कमलनाथ सरकार को पहले 16 सौ करोड़ का और फिर एक हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ा। अब एक बार फिर एक हजार करोड़ का कर्ज लेने की तैयारी हो गई है। संभवत: इसी मंगलवार तक इसका नोटीफिकेशन जारी हो जाएगा। इसे मिलाकर चालू वित्तीय वर्ष (2018-19) में सरकार पर करीब चौदह हजार करोड़ का कर्जा हो जाएगा। इसमें 3600 करोड़ कमलनाथ सरकार के कार्यकाल का होगा। राज्य सरकार पर कुल कर्ज लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। ऐसे में अगर केंद्र से समय पर वित्तीय मदद नहीं मिली तो राज्य सरकार को और मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।