कागजों पर चल रहे मदरसों के नाम पर भारी फर्जीवाड़ा, एक्शन की तैयारी में सरकार

Aug 03, 2024

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 3 अगस्त। मध्य प्रदेश में मदरसों पर बड़ा एक्शन होने की तैयारी चल रही है। चंबल संभाग के तीनों जिलों मुरैना, श्योपुर, भिंड में मदरसों की पड़ताल में हिंदू बच्चों के नाम दर्ज होने सहित कई फर्जीवाड़े सामने आए हैं। मदरसा बोर्ड के निष्क्रिय होने के बाद भी मदरसे संचालित हो रहे हैं। अनुदान बंद होने पर भी अन्य मदों से वित्तीय व्यवस्था में फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। इसलिए सरकार अब पूरे प्रदेश में कार्रवाई कर मदरसों के नाम पर गोरखधंधा कर रहे शिक्षा माफिया पर नकेल कसने की तैयारी में हैं।

श्योपुर जिले में शिक्षा विभाग ने कार्रवाई करते हुए 56 मदरसों को बंद कर दिया है. दरअसल विभाग ने जिले के मदरसों की जांच पड़ताल की थी। इस दौरान पता चला कि कई मदरसे महज कागजों पर ही चल रहे थे। खास बात ये है की इन मदरसों ने सरकार से जमकर अनुदान राशि भी वसूली। जिसके बाद मदरसों पर कार्रवाई करते हुए 80 में से 56 मदरसे बंद कर दिए गए। कुछ ऐसे छात्रों के बारे में भी पता चला जो कभी मदरसा गए ही नहीं उनके नाम भी मदरसों में लिखे गए थे। दरअसल जितने ज्यादा बच्चे उतना ज्यादा फंड सरकार की तरफ से दिया जाता है। इसी वजह से जिले के कई हिंदू बच्चों के नाम लिस्ट में लिख दिए गए थे। पूरे चंबल संभाग में मदरसों के नाम पर फर्जीवाड़े ने शिक्षा तंत्र की बड़ी पोल खोल दी है। चंबल संभाग के तीनों जिलों मुरैना, श्योपुर और भिंड में मुस्लिम आबादी प्रदेश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा कम है। इसके बाद भी इन जिलों में मदरसों की संख्या अन्य जिलों से ज्यादा है। इन मदरसों में मुस्लिम बच्चों से ज्यादा हिंदू बच्चों के नाम हैं। प्रदेश भर के मदरसों के संचालन पर नियंत्रण रखने वाला मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड करीब सात साल से निष्क्रिय है। मदरसों को मिलने वाली सरकारी ग्रांट लगभग बंद है। इसके बाद भी चंबल संभाग के इन मदरसों को तमाम सरकारी सुविधाएं मिल रही हैं। यह साफ जाहिर करता है कि मदरसों के संचालकों ने अपना काम समेट लिया तो उनके स्थान पर फर्जी मदरसे और मदरसा संचालक सक्रिय हो गए। मध्यप्रदेश में मदरसों के नाम पर शिक्षा माफिया का यह बड़ा घोटाला है। चंबल अंचल के श्योपुर, भिंड और मुरैना में भी संचालित मदरसों में हिंदू बच्चों के फर्जी दाखिले की बात सामने आई है, जिसमें अभिभावकों की जानकारी के बिना ही बच्चों के नाम मदरसों में दर्ज पाया गया है। दो साल पहले ही जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने भौतिक सत्यापन का दावा कर मान्यता अवधि 2025 तक बढ़वाई थी। श्योपुर में फर्जी मदरसों के खेल में न सिर्फ हिंदू बच्चों के नाम दर्ज करने में फर्जीवाड़ा हुआ है, बल्कि मदरसों के संचालकों को लेकर भी नियमों के अनदेखी सामने आई है। जिन 56 मदरसों की मान्यता समाप्त की गई, उनमें कई ऐसे हैं जिनके संचालक के रूप में शासकीय शिक्षक, लेक्चरर के नाम दर्ज हैं। जबकि नियमानुसार शासकीय शिक्षक या कर्मचारी मदरसे का संचालन नहीं कर सकते। कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे इब्राहिम कुरैशी के रिश्तेदार, भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के जिला महामंत्री रहे आरिफ खान और मदरसा बोर्ड की पूर्व जिला प्रभारी नफीसा के रिश्तेदार के नाम से भी कई मदरसे संचालित बताए गए हैं।मदरसों में हिंदू बच्चों को तालीम दिए जाने के मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मुख्य सचिव वीरा राणा को दिल्ली तलब किया तो उसके डेढ़ माह बाद जांच में श्योपुर में सामने आई गड़बड़ी पर मदरसों की मान्यता समाप्त की गई है। श्योपुर के अलावा चंबल अंचल के भिंड और मुरैना में भी संचालित मदरसों में हिंदू बच्चों के फर्जी दाखिले की बात सामने आई है, जिसमें अभिभावकों की जानकारी के बिना ही बच्चों के नाम मदरसों में दर्ज पाया गया है। प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने इस संबंध में जांच के निर्देश दिए हैं।जिन मदरसों की मान्यता रद्द हुई है, उनका संचालन वर्ष 2007 से शुरू हुआ था। मान्यता के लिए सात सदस्यों की सोसाइटी को मदरसा बोर्ड और वक्फ बोर्ड से पंजीयन कराना पड़ता है। इसके बाद बोर्ड में आनलाइन आवेदन कर उसकी हार्ड काफी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में जमा करनी होती है।जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से ही भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट के बाद मदरसा बोर्ड इसकी मान्यता देता है। बताया जाता है कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से वर्ष 2022 में ही जिले में संचालित 80 मदरसों का भौतिक सत्यापन कर 2025 तक मान्यता बढ़वाई गई थी।ऐसे में लंबे समय से चल रहे इस फर्जीवाड़े पर जिला शिक्षा अधिकारी, बीईओ कार्यालय, संबंधित संकुल केंद्र की निगरानी पर सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि बताया जाता है कि कई संचालक ऐसे भी हैं, जिन्होंने कुछ वर्ष पूर्व मदरसों के संचालन की जिम्मेदारी छोड़ भी दी थी, परंतु रिकार्ड में उनका ही नाम संचालक के रूप में दर्ज है। ऐसे में शासन द्वारा इन्हें अनुदानित राशि की वसूली भी आसान नहीं होगी।

भिंड और मुरैना जिलों के 137 मदरसों में 3880 हिंदू बच्चों के नाम दर्ज हैं। यह आंकड़ा ही तमाम सवाल खड़े कर देता है। अगर शिक्षा शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन के आला अफसरों ने इस पर गभीरता से ध्यान दिया होता तो यह स्थिति ही नही बनती है। मप्र आधुनिक मदरसा संघ के सचिव सोहेब कुरेशी कहते हैं कि 2016 से मदरसा बोर्ड ही निष्क्रिय पड़ा है। सरकार ने मदरसों को अनुदान राशि का भुगतान 2017 से नहीं किया है। इसलिए कई मदरसा संचालकों ने मदरसा बंद कर दिया है। अब सवाल उठता है कि जब ग्रांट नहीं मिलने के कारण मदरसों पर ताले लटकने का दावा किया जा रहा है तब हिंदू बच्चों के नाम दर्ज कर मदरसे संचालित करने वाले कौन है। एकदम साफ है कि सब कुछ कागजों पर चल रहा है। मदरसे कागजों पर चल रहे हैं, अनुदान कागजों पर मिल रहा है। हिंदू बच्चों के नाम कागजों पर दर्ज हैं। जांच रिपोर्ट कागजों पर बन रही है। मिड डे मील की सप्लाई कागजों पर हो रही है। सिर्फ भुगतान ओरिजन हो रहा है और उसमें सभी भागीदार हैं। इन भागीदारों में शिक्षा माफिया, प्रशासनिक अमला, समग्र आईडी तैयार करने वाले, मिडडे मील के ठेकेदार सब शामिल हैं। पूरे मामले में हिंदू बच्चों के फर्जी नाम दर्ज होने वाले मामले को हाईलाइट किया जा रहा है जबकि पूरी व्यवस्था ही फर्जी है। अगर मदरसा ही कागजों पर चल रहा है तो उसमें नाम किसी का भी दर्ज हो सकता है। जांच प्रक्रिया में शामिल लोग यह बताने की बजाय कि कागजों पर मदरसे संचालित हो रहे हैं, यह बता रहे है कि मदरसों में हिंदू बच्चों के नाम दर्ज हैं। शिक्षा माफिया पूरे मामले को नया मोड़ दे रहा है।