कमलनाथ का गढ़ भेदने के लिए भाजपा के निशाने पर पूरा महाकौशल
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 6 अप्रैल। मध्यप्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटें जीतने का टारगेट तय कर चुकी बीजेपी की नजर प्रदेश के महाकौशल अंचल पर सबसे अधिक है। महाकौशल में छिंदवाड़ा सीट भी आती है, जहां बीजेपी को 2019 में भी सफलता नहीं मिली थी। पार्टी को 29 में से 28 सीटों पर कब्जा करने के बाद भी छिंदवाड़ा में हार का मलाल आज तक है। इसलिए इस बार महाकौशल बीजेपी के लिए सबसे अहम रणभूमि बन गई है और इस बहाने पार्टी इस बार छिंदवाड़ा के अभेद्य किले को ढहाना चाहती है, ताकि कमलनाथ जैसे दिग्गज नेता पर शिकंजा कसा जा सके। महाकौशल में पार्टी के दिग्गजों की चुनावी सभाएं और रोड शो हो रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 7 अप्रैल को जबलपुर के जरिए महाकौशल में चुनावी हुंकार भरने जा रहे हैं।
महाकौशल अंचल को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, क्योंकि इस अंचल में आदिवासी सीटों की बहुलता है। आदिवासी कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है। भाजपा ने कड़ी मेहनत और आरएसएस के सहयोग से इस अंचल की सियासी तस्वीर बदली है। विधानसभा और लोकसभा दोनों में भाजपा ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी है। महाकौशल अंचल में विधानसभा की 38 औऱ लोकसभा की चार सीटें हैं। इस समय महाकौशल क्षेत्र की 38 विधानसभा सीटों में से 21 बीजेपी और 17 कांग्रेस के खाते में हैं। महाकौशल क्षेत्र की चार लोकसभा सीटों में से तीन जबलपुर, मंडला,बालाघाट पर बीजेपी का कब्जा है। कमलनाथ का गढ़ कही जाने वाली छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस के खाते में है। वहां से कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ सांसद हैं। महाकौशल अंचल की 38 में से 31 विधानसभा सीटें इस अंचल की चार लोकसभा सीटों में बंटी हैं। अंचल की सात विधानसभा सीटें दूसरे लोकसभा क्षेत्रों में आती हैं। नरसिंहपुर जिले की चार विधानसभा सीटों में से तीन सीटें होशंगाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा हैं। कटनी जिले की तीन विधानसभा सीटें खजुराहो और शहडोल लोकसभा सीट का हिस्सा है। इस सातों सीटों पर भाजपा का कब्जा है। महाकौशल के चार लोकसभा क्षेत्रों में आने वाली 31 विधानसभा सीटों में से 17 पर कांग्रेस और 14 पर बीजेपी का कब्जा है। आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि महाकौशल में कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंदी भाजपा से थोड़ा मजबूत है। इसलिए भाजपा का टारगेट महाकौशल है।
जबलपुर लोकसभा क्षेत्र
जबलपुर महाकौशल का मुख्यालय माना जाता है। यह बुंदेलखंड और विंध्य से भी जुड़ा हुआ है। जबलपुर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें से सात पर बीजेपी और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अंतिम बार इस सीट पर जीत हासिल की थी। करीब 28 साल से वनवास झेल रही कांग्रेस पूरी ताकत झोंक रही है। वहीं, बीजेपी ने मजबूत स्थिति में होने के बावजूद ग्राउंड पर आक्रामक प्रचार की रणनीति पर फोकस किया है, जिसके तहत आगामी सात अप्रैल को खुद पीएम नरेंद्र मोदी जबलपुर में एक बड़ा रोड शो करने आ रहे हैं> इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी से आशीष दुबे और कांग्रेस से दिनेश यादव उम्मीदवार बनाए गए हैं। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर का सियासी मिजाज बीजेपी के पक्ष में भले है लेकिन महाकौशल का मुख्यालय होने के कारण बीजेपी यहां थोड़ी भी ढील नहीं देना चाहती है।
छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र
छिंदवाड़ा को देश के कद्दावर नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री और मप्र के पूर्व सीएम कमलनाथ का अजेय गढ़ माना जाता है। सिर्फ एक बार को छोड़कर बीजेपी यहां कभी भी जीत का परचम नहीं लहरा पाई है। कमलनाथ इस सीट पर 1980 से 2014 तक लगातार सांसद रहे हैं। उन्हें 1996 में हवाला कांड के चलते टिकट नहीं मिला। उऩकी जगह उऩकी पत्नी अलका नाथ चुनाव लड़ी और जीतकर सांसद बनीं। लेकिन कमलनाथ ने 8 महीने बाद ही पत्नी का इस्तीफा करना दिया। इसके चलते 1997 में इस सीट पर उपचुनाव हुए। कांग्रेस की ओऱ से कमलनाथ चुनाव मैदान में थे। भाजपा ने रणनीति के तहत अपने वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा को मैदान में उतारा। इस रणनीति में अलका नाथ के इस्तीफे को महिलाओं का अपमान साबित किया गया। भाजपा के इमोशनल दांव कमलनाथ के गढ़ में काम कर गया और पहली बार कमलनाथ को पराजय का सामना करना पड़ा। उसके बाद 2019 में कमलनाथ ने अपनी जगह अपने बेटे नकुल को टिकट दिलवाया क्योंकि वे खुद विधायक बनकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे थे। मोदी लहर के बाद भी कमलनाथ के गढ़ में उनका बेटा ही जीता। लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा सीट ही जीत पाई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट के अंतर्गत आने वालीं सात सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। हालांकि, अमरवाड़ा विधानसभा सीट से जीत हासिल करने वाले कांग्रेस विधायक कमलेश शाह ने हाल ही में बीजेपी का दामन थाम लिया है। छिंदवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने वर्तमान सांसद नकुलनाथ को चुनाव में उतारा है, जो भाजपा के बंटी साहू को टक्कर देंगे।
मंडला लोकसभा क्षेत्र
आदिवासी बाहुल्य मंडला लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। यह लोकसभा क्षेत्र चार जिलों में फैला है। डिंडोरी जिले के अंतर्गत आने वाली दो विधानसभा सीटों में से एक पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। मंडला जिले की तीन विधानसभा सीटों में से दो पर कांग्रेस और एक पर भाजपा का कब्जा है। सिवनी जिले की चार विधानसभा सीटों में से दो सीटें मंडला लोकसभा में आती हैं, जिन पर कांग्रेस का कब्जा है। नरसिंहपुर की गोटेगांव विधानसभा सीट भी इस लोकसभा क्षेत्र में आती है, जिस पर भाजपा का कब्जा है। भाजपा ने यहां एक बार फिर केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते पर दांव लगाया है। कुलस्ते सांसद रहते हुए पिछले विधानसभा चुनाव में मंडला से हार गए थे। इसलिए कांग्रेस इस सीट को हथियाने का ख्वाब देख रही है।
बालाघाट लोकसभा क्षेत्र
भाजपा के कब्जे वाले बालाघाट लोकसभा क्षेत्र में बालाघाट जिले की छह और सिवनी जिले की दो विधानसभा सीटें आती हैं। सिवनी जिले की दोनों विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। बालाघाट जिले की छह विधानसभा सीटों में से चार कांग्रेस और दो बीजेपी के पास हैं। इस सीट पर कांग्रेस ने सम्राट सारस्वत और बीजेपी ने भारती पारधी को चुनावी मैदान में उतारा है। एक दूसरे को टक्कर देने वाले दोनों ही नए उम्मीदवार हैं।